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| { | |
| "title": "५. चूळयमकवग्गो", | |
| "book_name": "५. चूळयमकवग्गो", | |
| "chapter": "४. महायमकवग्गो", | |
| "gathas": [ | |
| "‘‘बाहुकं अधिकक्कञ्च, गयं सुन्दरिकं मपि", | |
| "सरस्सतिं पयागञ्च, अथो बाहुमतिं नदिं।", | |
| "निच्चम्पि बालो पक्खन्दो", | |
| "‘‘किं", | |
| "वेरिं कतकिब्बिसं नरं, न हि नं सोधये पापकम्मिनं॥", | |
| "‘‘सुद्धस्स", | |
| "सुद्धस्स सुचिकम्मस्स, सदा सम्पज्जते वतं।", | |
| "इधेव सिनाहि ब्राह्मण, सब्बभूतेसु करोहि खेमतं॥", | |
| "‘‘सचे मुसा न भणसि, सचे पाणं न हिंससि।", | |
| "सचे अदिन्नं नादियसि, सद्दहानो अमच्छरी।", | |
| "किं काहसि गयं गन्त्वा, उदपानोपि ते गया’’ति॥", | |
| "चतुत्तालीसपदा वुत्ता, सन्धयो पञ्च देसिता।", | |
| "सल्लेखो नाम सुत्तन्तो, गम्भीरो सागरूपमोति॥", | |
| "मूलसुसंवरधम्मदायादा, भेरवानङ्गणाकङ्खेय्यवत्थं।", | |
| "सल्लेखसम्मादिट्ठिसतिपट्ठं, वग्गवरो असमो सुसमत्तो॥", | |
| "‘‘सोतत्तो सोसिन्नो", | |
| "नग्गो न चग्गिमासीनो, एसनापसुतो मुनी’’ति॥", | |
| "चूळसीहनादलोमहंसवरो, महाचूळदुक्खक्खन्धअनुमानिकसुत्तं।", | |
| "खिलपत्थमधुपिण्डिकद्विधावितक्क, पञ्चनिमित्तकथा पुन वग्गो॥", | |
| "‘किच्छेन मे अधिगतं, हलं दानि पकासितुं।", | |
| "रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
| "‘पटिसोतगामिं निपुणं, गम्भीरं दुद्दसं अणुं।", | |
| "रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा’’’ति", | |
| "‘पातुरहोसि", | |
| "धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
| "अपापुरेतं", | |
| "सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
| "‘सेले", | |
| "यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
| "तथूपमं धम्ममयं सुमेध,", | |
| "पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
| "सोकावतिण्णं", | |
| "अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
| "‘उट्ठेहि", | |
| "सत्थवाह अणण विचर लोके।", | |
| "देसस्सु", | |
| "अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’’ति॥", | |
| "‘अपारुता", | |
| "ये सोतवन्तो पमुञ्चन्तु सद्धं।", | |
| "विहिंससञ्ञी पगुणं न भासिं,", | |
| "धम्मं पणीतं मनुजेसु ब्रह्मे’’’ति॥", | |
| "‘सब्बाभिभू सब्बविदूहमस्मि, सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो।", | |
| "सब्बञ्जहो तण्हाक्खये विमुत्तो, सयं अभिञ्ञाय कमुद्दिसेय्यं॥", | |
| "‘न", | |
| "सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि मे पटिपुग्गलो॥", | |
| "‘अहञ्हि अरहा लोके, अहं सत्था अनुत्तरो।", | |
| "एकोम्हि सम्मासम्बुद्धो, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो॥", | |
| "‘धम्मचक्कं पवत्तेतुं, गच्छामि कासिनं पुरं।", | |
| "अन्धीभूतस्मिं", | |
| "‘मादिसा", | |
| "जिता मे पापका धम्मा, तस्माहमुपक जिनो’ति॥", | |
| "मोळियफग्गुनरिट्ठञ्च", | |
| "रासिकणेरुमहागजनामो, सारूपमो", | |
| "‘‘अयं लोको परो लोको, जानता सुप्पकासितो।", | |
| "यञ्च मारेन सम्पत्तं, अप्पत्तं यञ्च मच्चुना॥", | |
| "‘‘सब्बं लोकं अभिञ्ञाय, सम्बुद्धेन पजानता।", | |
| "विवटं अमतद्वारं, खेमं निब्बानपत्तिया॥", | |
| "‘‘छिन्नं पापिमतो सोतं, विद्धस्तं विनळीकतं।", | |
| "पामोज्जबहुला होथ, खेमं पत्तत्थ", | |
| "गिञ्जकसालवनं परिहरितुं, पञ्ञवतो पुन सच्चकनिसेधो।", | |
| "मुखवण्णपसीदनतापिन्दो, केवट्टअस्सपुरजटिलेन॥", | |
| "‘‘यावता चन्दिमसूरिया, परिहरन्ति दिसा भन्ति विरोचना।", | |
| "ताव सहस्सधा लोको, एत्थ ते वत्तते", | |
| "‘‘परोपरञ्च", | |
| "इत्थभावञ्ञथाभावं, सत्तानं आगतिं गति’’न्ति॥", | |
| "‘‘भवेवाहं भयं दिस्वा, भवञ्च विभवेसिनं।", | |
| "भवं नाभिवदिं किञ्चि, नन्दिञ्च न उपादियि’’न्ति॥", | |
| "‘‘कीदिसो निरयो आसि, यत्थ दूसी अपच्चथ।", | |
| "विधुरं सावकमासज्ज, ककुसन्धञ्च ब्राह्मणं॥", | |
| "‘‘सतं आसि अयोसङ्कू, सब्बे पच्चत्तवेदना।", | |
| "ईदिसो निरयो आसि, यत्थ दूसी अपच्चथ।", | |
| "विधुरं सावकमासज्ज, ककुसन्धञ्च ब्राह्मणं॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं", | |
| "‘‘मज्झे सरस्स तिट्ठन्ति, विमाना कप्पट्ठायिनो।", | |
| "वेळुरियवण्णा रुचिरा, अच्चिमन्तो पभस्सरा।", | |
| "अच्छरा तत्थ नच्चन्ति, पुथु नानत्तवण्णियो॥", | |
| "‘‘यो", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘यो वे बुद्धेन चोदितो, भिक्खु सङ्घस्स पेक्खतो।", | |
| "मिगारमातुपासादं, पादङ्गुट्ठेन कम्पयि॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘यो वेजयन्तं पासादं, पादङ्गुट्ठेन कम्पयि।", | |
| "इद्धिबलेनुपत्थद्धो, संवेजेसि च देवता॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘यो वेजयन्तपासादे, सक्कं सो परिपुच्छति।", | |
| "अपि वासव जानासि, तण्हाक्खयविमुत्तियो।", | |
| "तस्स सक्को वियाकासि, पञ्हं पुट्ठो यथातथं॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘यो ब्रह्मं परिपुच्छति, सुधम्मायाभितो सभं।", | |
| "अज्जापि", | |
| "पस्ससि वीतिवत्तन्तं, ब्रह्मलोके पभस्सरं॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "न मे मारिस सा दिट्ठि, या मे दिट्ठि पुरे अहु॥", | |
| "‘‘पस्सामि वीतिवत्तन्तं, ब्रह्मलोके पभस्सरं।", | |
| "सोहं अज्ज कथं वज्जं, अहं निच्चोम्हि सस्सतो॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘यो महामेरुनो कूटं, विमोक्खेन अफस्सयि।", | |
| "वनं पुब्बविदेहानं, ये च भूमिसया नरा॥", | |
| "‘‘यो एतमभिजानाति, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "तादिसं भिक्खुमासज्ज, कण्ह दुक्खं निगच्छसि॥", | |
| "‘‘न", | |
| "बालो च जलितं अग्गिं, आसज्ज नं स डय्हति॥", | |
| "‘‘एवमेव तुवं मार, आसज्ज नं तथागतं।", | |
| "सयं डहिस्ससि अत्तानं, बालो अग्गिंव संफुसं॥", | |
| "‘‘अपुञ्ञं पसवी मारो, आसज्ज नं तथागतं।", | |
| "किन्नु मञ्ञसि पापिम, न मे पापं विपच्चति॥", | |
| "‘‘करोतो चीयति पापं, चिररत्ताय अन्तक।", | |
| "मार निब्बिन्द बुद्धम्हा, आसं माकासि भिक्खुसु॥", | |
| "‘‘इति", | |
| "ततो सो दुम्मनो यक्खो, नतत्थेवन्तरधायथा’’ति॥", | |
| "सालेय्य वेरञ्जदुवे च तुट्ठि, चूळमहाधम्मसमादानञ्च।", | |
| "वीमंसका कोसम्बि च ब्राह्मणो, दूसी च मारो दसमो च वग्गो॥", | |
| "मूलपरियायो चेव, सीहनादो च उत्तमो।", | |
| "ककचो चेव गोसिङ्गो, सालेय्यो च इमे पञ्च॥" | |
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