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Sleeping
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| { | |
| "title": "१. अविज्जावग्गो", | |
| "book_name": "१२. सच्चसंयुत्तं", | |
| "chapter": "१. अविज्जासुत्तं", | |
| "gathas": [ | |
| "‘‘यस्स सद्धा च पञ्ञा च, धम्मा युत्ता सदा धुरं।", | |
| "हिरी ईसा मनो योत्तं, सति आरक्खसारथि॥", | |
| "‘‘रथो सीलपरिक्खारो, झानक्खो चक्कवीरियो।", | |
| "उपेक्खा धुरसमाधि, अनिच्छा परिवारणं॥", | |
| "‘‘अब्यापादो अविहिंसा, विवेको यस्स आवुधं।", | |
| "तितिक्खा चम्मसन्नाहो", | |
| "‘‘एतदत्तनि", | |
| "निय्यन्ति धीरा लोकम्हा, अञ्ञदत्थु जयं जय’’न्ति॥ चतुत्थं।", | |
| "अविज्जञ्च उपड्ढञ्च, सारिपुत्तो च ब्राह्मणो।", | |
| "किमत्थियो च द्वे भिक्खू, विभङ्गो सूकनन्दियाति॥", | |
| "द्वे विहारा च सेक्खो च, उप्पादा अपरे दुवे।", | |
| "परिसुद्धेन द्वे वुत्ता, कुक्कुटारामेन तयोति॥", | |
| "मिच्छत्तं अकुसलं धम्मं, दुवे पटिपदापि च।", | |
| "असप्पुरिसेन द्वे कुम्भो, समाधि वेदनुत्तियेनाति॥", | |
| "‘‘अप्पका ते मनुस्सेसु, ये जना पारगामिनो।", | |
| "अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
| "‘‘ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो।", | |
| "ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
| "‘‘कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो।", | |
| "ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
| "‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
| "परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
| "‘‘येसं", | |
| "आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
| "खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता’’ति॥ चतुत्थं।", | |
| "पटिपत्ति पटिपन्नो च, विरद्धञ्च पारंगमा।", | |
| "सामञ्ञेन च द्वे वुत्ता, ब्रह्मञ्ञा अपरे दुवे।", | |
| "ब्रह्मचरियेन द्वे वुत्ता, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "विरागसंयोजनं अनुसयं, अद्धानं आसवा खया।", | |
| "विज्जाविमुत्तिञाणञ्च, अनुपादाय अट्ठमी॥", | |
| "कल्याणमित्तं सीलञ्च, छन्दो च अत्तसम्पदा।", | |
| "दिट्ठि च अप्पमादो च, योनिसो भवति सत्तमं॥", | |
| "कल्याणमित्तं", | |
| "दिट्ठि च अप्पमादो च, योनिसो भवति सत्तमं॥", | |
| "कल्याणमित्तं सीलञ्च, छन्दो च अत्तसम्पदा।", | |
| "दिट्ठि च अप्पमादो च, योनिसो भवति सत्तमं॥", | |
| "छ पाचीनतो निन्ना, छ निन्ना च समुद्दतो।", | |
| "एते द्वे छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति।", | |
| "गङ्गापेय्याली पाचीननिन्नवाचनमग्गी, विवेकनिस्सितं द्वादसकी पठमकी॥", | |
| "छ", | |
| "एते द्वे छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति।", | |
| "निब्बाननिन्नो द्वादसकी, चतुत्थकी छट्ठा नवकी॥", | |
| "तथागतं", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया च, वत्थेन दसमं पदं॥", | |
| "बलं बीजञ्च नागो च, रुक्खो कुम्भेन सूकिया।", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता खिला।", | |
| "मलं नीघो च वेदना, द्वे तण्हा तसिनाय चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्थं अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणं, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "अविज्जावग्गो पठमो, दुतियं विहारं वुच्चति।", | |
| "मिच्छत्तं ततियो वग्गो, चतुत्थं पटिपन्नेनेव॥", | |
| "तित्थियं", | |
| "बहुकते सत्तमो वग्गो, उप्पादो अट्ठमेन च॥", | |
| "दिवसवग्गो नवमो, दसमो अप्पमादेन च।", | |
| "एकादसबलवग्गो, द्वादस एसना पाळियं।", | |
| "ओघवग्गो भवति तेरसाति॥", | |
| "हिमवन्तं", | |
| "कूटञ्च उपवानञ्च, उप्पन्ना अपरे दुवेति॥", | |
| "‘‘अप्पका", | |
| "अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
| "‘‘ये च खो सम्मदक्खाते, धम्मे धम्मानुवत्तिनो।", | |
| "ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
| "‘‘कण्हं धम्मं विप्पहाय, सुक्कं भावेथ पण्डितो।", | |
| "ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
| "‘‘तत्राभिरतिमिच्छेय्य", | |
| "परियोदपेय्य अत्तानं, चित्तक्लेसेहि पण्डितो॥", | |
| "‘‘येसं सम्बोधियङ्गेसु, सम्मा चित्तं सुभावितं।", | |
| "आदानप्पटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
| "खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता’’ति॥ सत्तमं।", | |
| "पाणा", | |
| "पारङ्गामी विरद्धो च, अरियो निब्बिदाय चाति॥", | |
| "बोधाय", | |
| "खयो निरोधो निब्बेधो, एकधम्मो उदायिनाति॥", | |
| "द्वे कुसला किलेसा च, द्वे योनिसो च बुद्धि च।", | |
| "आवरणा नीवरणा रुक्खं, नीवरणञ्च ते दसाति॥", | |
| "विधा चक्कवत्ति मारो, दुप्पञ्ञो पञ्ञवेन च।", | |
| "दलिद्दो अदलिद्दो च, आदिच्चङ्गेन ते दसाति॥", | |
| "आहारा", | |
| "अभयो पुच्छितो पञ्हं, गिज्झकूटम्हि पब्बतेति॥", | |
| "अट्ठिकपुळवकं विनीलकं, विच्छिद्दकं उद्धुमातेन पञ्चमं।", | |
| "मेत्ता करुणा मुदिता उपेक्खा, आनापानेन ते दसाति॥", | |
| "असुभमरणआहारे, पटिकूलअनभिरतेन", | |
| "अनिच्चदुक्खअनत्तपहानं, विरागनिरोधेन ते दसाति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारेन वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया च, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिनाय चाति॥", | |
| "ओघो", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियानीति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारेन वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया च, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदनातण्हा तसिनाय चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियानीति॥", | |
| "अम्बपालि", | |
| "सकुणग्धि मक्कटो सूदो, गिलानो भिक्खुनुपस्सयोति॥", | |
| "‘‘एकायनं जातिखयन्तदस्सी, मग्गं पजानाति हितानुकम्पी।", | |
| "एतेन मग्गेन तरिंसु पुब्बे, तरिस्सन्ति ये च तरन्ति ओघ’’न्ति॥ अट्ठमं।", | |
| "महापुरिसो", | |
| "उत्तियो अरियो ब्रह्मा, सेदकं जनपदेन चाति॥", | |
| "सीलं", | |
| "समत्तं लोको सिरिवड्ढो, मानदिन्नेन ते दसाति॥", | |
| "अननुस्सुतं", | |
| "अञ्ञा छन्दं परिञ्ञाय, भावना विभङ्गेन चाति॥", | |
| "‘एकायनं जातिखयन्तदस्सी, मग्गं पजानाति हितानुकम्पी।", | |
| "एतेन मग्गेन तरिंसु पुब्बे, तरिस्सन्ति ये च तरन्ति ओघ’’’न्ति॥ ततियं।", | |
| "अमतं समुदयो मग्गो, सति कुसलरासि च।", | |
| "पातिमोक्खं दुच्चरितं, मित्तवेदना आसवेन चाति॥", | |
| "छ पाचीनतो निन्ना, छ निन्ना च समुद्दतो।", | |
| "एते द्वे छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिनाय चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "सुद्धिकञ्चेव", | |
| "समणब्राह्मणा दट्ठब्बं, विभङ्गा अपरे दुवेति॥", | |
| "पटिलाभो तयो संखित्ता, वित्थारा अपरे तयो।", | |
| "पटिपन्नो च सम्पन्नो", | |
| "पुनब्भवो जीवितञ्ञाय, एकबीजी च सुद्धकं।", | |
| "सोतो अरहसम्बुद्धो, द्वे च समणब्राह्मणाति॥", | |
| "सुद्धिकञ्च सोतो अरहा, दुवे समणब्राह्मणा।", | |
| "विभङ्गेन तयो वुत्ता, कट्ठो उप्पटिपाटिकन्ति॥", | |
| "‘‘धी तं जम्मि जरे अत्थु, दुब्बण्णकरणी जरे।", | |
| "ताव मनोरमं बिम्बं, जराय अभिमद्दितं॥", | |
| "‘‘योपि वस्ससतं जीवे, सोपि मच्चुपरायणो", | |
| "न किञ्चि परिवज्जेति, सब्बमेवाभिमद्दती’’ति॥ पठमं।", | |
| "जरा उण्णाभो ब्राह्मणो, साकेतो पुब्बकोट्ठको।", | |
| "पुब्बारामे च चत्तारि, पिण्डोलो आपणेन चाति", | |
| "सालं मल्लिकं सेखो च, पदं सारं पतिट्ठितं।", | |
| "ब्रह्मसूकरखतायो, उप्पादा अपरे दुवेति॥", | |
| "संयोजना", | |
| "द्वे फला चतुरो रुक्खा, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारेन वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं बीजञ्च नागो च, रुक्खो कुम्भेन सूकिया।", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारेन वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं बीजञ्च नागो च, रुक्खो कुम्भेन सूकिया।", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारेन वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "छ पाचीनतो निन्ना, छ निन्ना च समुद्दतो।", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "‘‘तुलमतुलञ्च", | |
| "अज्झत्तरतो समाहितो, अभिन्दि कवचमिवत्तसम्भव’’न्ति॥ दसमं।", | |
| "अपारापि विरद्धो च, अरिया निब्बिदापि च।", | |
| "पदेसं समत्तं भिक्खु, बुद्धं ञाणञ्च चेतियन्ति॥", | |
| "पुब्बं महप्फलं छन्दं, मोग्गल्लानञ्च उण्णाभं।", | |
| "द्वे समणब्राह्मणा भिक्खु, देसना विभङ्गेन चाति॥", | |
| "मग्गो अयोगुळो भिक्खु, सुद्धिकञ्चापि द्वे फला।", | |
| "द्वे चानन्दा दुवे भिक्खू, मोग्गल्लानो तथागतोति॥", | |
| "छ पाचीनतो निन्ना, छ निन्ना च समुद्दतो।", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं बीजञ्च नागो च, रुक्खो कुम्भेन सूकिया।", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "रहोगतेन", | |
| "तण्हक्खयसलळागारं, अम्बपालि च गिलानन्ति॥", | |
| "महाभिञ्ञं", | |
| "सब्बत्थधातुधिमुत्ति, इन्द्रियं झानं तिस्सो विज्जाति॥", | |
| "छ", | |
| "द्वेते छ द्वादस होन्ति, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "तथागतं पदं कूटं, मूलं सारो च वस्सिकं।", | |
| "राजा चन्दिमसूरिया, वत्थेन दसमं पदन्ति॥", | |
| "बलं", | |
| "आकासेन च द्वे मेघा, नावा आगन्तुका नदीति॥", | |
| "एसना विधा आसवो, भवो च दुक्खता तिस्सो।", | |
| "खिलं मलञ्च नीघो च, वेदना तण्हा तसिना चाति॥", | |
| "ओघो योगो उपादानं, गन्था अनुसयेन च।", | |
| "कामगुणा नीवरणा, खन्धा ओरुद्धम्भागियाति॥", | |
| "एकधम्मो", | |
| "अरिट्ठो कप्पिनो दीपो, वेसाली किमिलेन चाति॥", | |
| "इच्छानङ्गलं", | |
| "भिक्खू संयोजनानुसया, अद्धानं आसवक्खयन्ति॥", | |
| "‘‘येसं सद्धा च सीलञ्च, पसादो धम्मदस्सनं।", | |
| "ते वे कालेन पच्चेन्ति, ब्रह्मचरियोगधं सुख’’न्ति॥ दुतियं।", | |
| "राजा ओगधदीघावु, सारिपुत्तापरे दुवे।", | |
| "थपती वेळुद्वारेय्या, गिञ्जकावसथे तयोति॥", | |
| "सहस्सब्राह्मणानन्द", | |
| "मित्तामच्चा दुवे वुत्ता, तयो च देवचारिकाति॥", | |
| "‘‘यस्स सद्धा तथागते, अचला सुप्पतिट्ठिता।", | |
| "सीलञ्च यस्स कल्याणं, अरियकन्तं पसंसितं॥", | |
| "‘‘सङ्घे पसादो यस्सत्थि, उजुभूतञ्च दस्सनं।", | |
| "अदलिद्दोति", | |
| "‘‘तस्मा", | |
| "अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धानसासन’’न्ति॥", | |
| "महानामेन द्वे वुत्ता, गोधा च सरणा दुवे।", | |
| "दुवे अनाथपिण्डिका, दुवे वेरभयेन च।", | |
| "लिच्छवी दसमो वुत्तो, वग्गो तेन पवुच्चतीति॥", | |
| "अभिसन्दा तयो वुत्ता, दुवे देवपदानि च।", | |
| "सभागतं महानामो, वस्सं काळी च नन्दियाति॥", | |
| "‘‘महोदधिं अपरिमितं महासरं,", | |
| "बहुभेरवं रतनगणानमालयं।", | |
| "नज्जो यथा नरगणसङ्घसेविता,", | |
| "पुथू सवन्ती उपयन्ति सागरं॥", | |
| "‘‘एवं नरं अन्नपानवत्थददं,", | |
| "सेय्यानि पच्चत्थरणस्स", | |
| "पुञ्ञस्स धारा उपयन्ति पण्डितं,", | |
| "नज्जो यथा वारिवहाव सागर’’न्ति॥ पठमं।", | |
| "‘‘महोदधिं अपरिमितं महासरं,", | |
| "बहुभेरवं रतनगणानमालयं।", | |
| "नज्जो यथा नरगणसङ्घसेविता,", | |
| "पुथू सवन्ती उपयन्ति सागरं॥", | |
| "‘‘एवं", | |
| "सेय्यानि पच्चत्थरणस्स दायकं।", | |
| "पुञ्ञस्स धारा उपयन्ति पण्डितं,", | |
| "नज्जो यथा वारिवहाव सागर’’न्ति॥ दुतियं।", | |
| "‘‘यो पुञ्ञकामो कुसले पतिट्ठितो,", | |
| "भावेति मग्गं अमतस्स पत्तिया।", | |
| "सो धम्मसाराधिगमो खये रतो,", | |
| "न वेधति मच्चुराजागमनस्मि’’न्ति", | |
| "अभिसन्दा तयो वुत्ता, दुवे महद्धनेन च।", | |
| "सुद्धं नन्दियं भद्दियं, महानामङ्गेन ते दसाति॥", | |
| "‘‘यस्स", | |
| "सीलञ्च यस्स कल्याणं, अरियकन्तं पसंसितं॥", | |
| "‘‘सङ्घे पसादो यस्सत्थि, उजुभूतञ्च दस्सनं।", | |
| "अदलिद्दोति तं आहु, अमोघं तस्स जीवितं॥", | |
| "‘‘तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च, पसादं धम्मदस्सनं।", | |
| "अनुयुञ्जेथ मेधावी, सरं बुद्धानसासन’’न्ति॥ पठमं।", | |
| "सगाथकं", | |
| "चतुरो फला पटिलाभो, वुद्धि वेपुल्लताय चाति॥", | |
| "महा", | |
| "सीघ-लहु-हास-जवन, तिक्ख-निब्बेधिकाय चाति॥", | |
| "समाधि", | |
| "समणब्राह्मणा वितक्कं, चिन्ता विग्गाहिका कथाति॥", | |
| "धम्मचक्कं", | |
| "धारणा च द्वे अविज्जा, विज्जा सङ्कासना तथाति॥", | |
| "‘‘चतुन्नं अरियसच्चानं, यथाभूतं अदस्सना।", | |
| "संसितं", | |
| "‘‘तानि", | |
| "उच्छिन्नं मूलं दुक्खस्स, नत्थिदानि पुनब्भवो’’ति॥ पठमं।", | |
| "‘‘ये दुक्खं नप्पजानन्ति, अथो दुक्खस्स सम्भवं।", | |
| "यत्थ च सब्बसो दुक्खं, असेसं उपरुज्झति॥", | |
| "‘‘तञ्च मग्गं न जानन्ति, दुक्खूपसमगामिनं।", | |
| "चेतोविमुत्तिहीना", | |
| "अभब्बा ते अन्तकिरियाय, ते वे जातिजरूपगा॥", | |
| "‘‘ये", | |
| "यत्थ च सब्बसो दुक्खं, असेसं उपरुज्झति॥", | |
| "‘‘तञ्च मग्गं पजानन्ति, दुक्खूपसमगामिनं।", | |
| "चेतोविमुत्तिसम्पन्ना, अथो पञ्ञाविमुत्तिया।", | |
| "सब्बा ते अन्तकिरियाय, न ते जातिजरूपगा’’ति॥ दुतियं।", | |
| "द्वे वज्जी सम्मासम्बुद्धो, अरहं आसवक्खयो।", | |
| "मित्तं तथा च लोको च, परिञ्ञेय्यं गवम्पतीति॥", | |
| "सीसपा", | |
| "पाणा सुरियूपमा द्वेधा, इन्दखीलो च वादिनोति॥", | |
| "चिन्ता पपातो परिळाहो, कूटं वालन्धकारो च।", | |
| "छिग्गळेन च द्वे वुत्ता, सिनेरु अपरे दुवेति॥", | |
| "नखसिखा पोक्खरणी, संभेज्ज अपरे दुवे।", | |
| "पथवी द्वे समुद्दा द्वे, द्वेमा च पब्बतूपमाति॥", | |
| "अञ्ञत्र पच्चन्तं पञ्ञा, सुरामेरयओदका।", | |
| "मत्तेय्य पेत्तेय्या चापि, सामञ्ञं ब्रह्मपचायिकन्ति॥", | |
| "पाणं अदिन्नं कामेसु, मुसावादञ्च पेसुञ्ञं।", | |
| "फरुसं सम्फप्पलापं, बीजञ्च विकालं गन्धन्ति॥", | |
| "नच्चं सयनं रजतं, धञ्ञं मंसं कुमारिका।", | |
| "दासी अजेळकञ्चेव, कुक्कुटसूकरहत्थीति॥", | |
| "खेत्तं", | |
| "छेदनं वधबन्धनं, विपरालोपं साहसन्ति॥", | |
| "मनुस्सतो चुता छापि, देवा चुता निरयतो।", | |
| "तिरच्छानपेत्तिविसया, तिंसमत्तो गतिवग्गोति॥", | |
| "मग्गबोज्झङ्गं", | |
| "बलिद्धिपादानुरुद्धा, झानानापानसंयुतं।", | |
| "सोतापत्ति सच्चञ्चाति, महावग्गोति वुच्चतीति॥" | |
| ] | |
| } |