Spaces:
Sleeping
Sleeping
| { | |
| "title": "९. मेत्तसुत्तं", | |
| "book_name": "९. मेत्तसुत्तं", | |
| "chapter": "८. निधिकण्डसुत्तं", | |
| "gathas": [ | |
| "बुद्धं", | |
| "धम्मं सरणं गच्छामि।", | |
| "सङ्घं सरणं गच्छामि॥", | |
| "दुतियम्पि बुद्धं सरणं गच्छामि।", | |
| "दुतियम्पि धम्मं सरणं गच्छामि।", | |
| "दुतियम्पि सङ्घं सरणं गच्छामि॥", | |
| "ततियम्पि", | |
| "ततियम्पि धम्मं सरणं गच्छामि।", | |
| "ततियम्पि सङ्घं सरणं गच्छामि॥", | |
| "केसा लोमा नखा दन्ता तचो,", | |
| "मंसं न्हारु", | |
| "हदयं यकनं किलोमकं पिहकं पप्फासं,", | |
| "अन्तं अन्तगुणं उदरियं करीसं मत्थलुङ्गं", | |
| "पित्तं सेम्हं पुब्बो लोहितं सेदो मेदो,", | |
| "अस्सु वसा खेळो सिङ्घाणिका लसिका मुत्तन्ति", | |
| "‘‘बहू", | |
| "आकङ्खमाना सोत्थानं, ब्रूहि मङ्गलमुत्तमं’’॥", | |
| "‘‘असेवना च बालानं, पण्डितानञ्च सेवना।", | |
| "पूजा च पूजनेय्यानं", | |
| "‘‘पतिरूपदेसवासो", | |
| "अत्तसम्मापणिधि", | |
| "‘‘बाहुसच्चञ्च सिप्पञ्च, विनयो च सुसिक्खितो।", | |
| "सुभासिता च या वाचा, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘मातापितु उपट्ठानं, पुत्तदारस्स सङ्गहो।", | |
| "अनाकुला च कम्मन्ता, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘दानञ्च धम्मचरिया च, ञातकानञ्च सङ्गहो।", | |
| "अनवज्जानि कम्मानि, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘आरती विरती पापा, मज्जपाना च संयमो।", | |
| "अप्पमादो च धम्मेसु, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘गारवो", | |
| "कालेन धम्मस्सवनं", | |
| "‘‘खन्ती च सोवचस्सता, समणानञ्च दस्सनं।", | |
| "कालेन धम्मसाकच्छा, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘तपो च ब्रह्मचरियञ्च, अरियसच्चान दस्सनं।", | |
| "निब्बानसच्छिकिरिया च, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘फुट्ठस्स लोकधम्मेहि, चित्तं यस्स न कम्पति।", | |
| "असोकं विरजं खेमं, एतं मङ्गलमुत्तमं॥", | |
| "‘‘एतादिसानि कत्वान, सब्बत्थमपराजिता।", | |
| "सब्बत्थ सोत्थिं गच्छन्ति, तं तेसं मङ्गलमुत्तम’’न्ति॥", | |
| "यानीध", | |
| "सब्बेव भूता सुमना भवन्तु, अथोपि सक्कच्च सुणन्तु भासितं॥", | |
| "तस्मा", | |
| "दिवा च रत्तो च हरन्ति ये बलिं, तस्मा हि ने रक्खथ अप्पमत्ता॥", | |
| "यं किञ्चि वित्तं इध वा हुरं वा, सग्गेसु", | |
| "न नो समं अत्थि तथागतेन, इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं।", | |
| "एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "खयं", | |
| "न तेन धम्मेन समत्थि किञ्चि, इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं।", | |
| "एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "यं", | |
| "समाधिना तेन समो न विज्जति, इदम्पि धम्मे रतनं पणीतं।", | |
| "एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "ये पुग्गला अट्ठ सतं पसत्था, चत्तारि एतानि युगानि होन्ति।", | |
| "ते दक्खिणेय्या सुगतस्स सावका, एतेसु दिन्नानि महप्फलानि।", | |
| "इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "ये सुप्पयुत्ता मनसा दळ्हेन, निक्कामिनो गोतमसासनम्हि।", | |
| "ते पत्तिपत्ता अमतं विगय्ह, लद्धा मुधा निब्बुतिं", | |
| "इदम्पि", | |
| "यथिन्दखीलो पथविस्सितो", | |
| "तथूपमं सप्पुरिसं वदामि, यो", | |
| "इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "ये अरियसच्चानि विभावयन्ति, गम्भीरपञ्ञेन सुदेसितानि।", | |
| "किञ्चापि ते होन्ति भुसं पमत्ता, न ते भवं अट्ठममादियन्ति।", | |
| "इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "सहावस्स", | |
| "सक्कायदिट्ठी विचिकिच्छितञ्च, सीलब्बतं वापि यदत्थि किञ्चि॥", | |
| "चतूहपायेहि च विप्पमुत्तो, छच्चाभिठानानि", | |
| "इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "किञ्चापि", | |
| "अभब्ब", | |
| "इदम्पि", | |
| "वनप्पगुम्बे यथ", | |
| "तथूपमं धम्मवरं अदेसयि", | |
| "इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "वरो वरञ्ञू वरदो वराहरो, अनुत्तरो धम्मवरं अदेसयि।", | |
| "इदम्पि बुद्धे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "खीणं पुराणं नव नत्थि सम्भवं, विरत्तचित्तायतिके भवस्मिं।", | |
| "ते खीणबीजा अविरूळ्हिछन्दा, निब्बन्ति धीरा यथायं", | |
| "इदम्पि सङ्घे रतनं पणीतं, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु॥", | |
| "यानीध भूतानि समागतानि, भुम्मानि", | |
| "तथागतं देवमनुस्सपूजितं, बुद्धं नमस्साम सुवत्थि होतु॥", | |
| "यानीध भूतानि समागतानि, भुम्मानि वा यानि व अन्तलिक्खे।", | |
| "तथागतं देवमनुस्सपूजितं, धम्मं", | |
| "यानीध", | |
| "तथागतं देवमनुस्सपूजितं, सङ्घं नमस्साम सुवत्थि होतूति॥", | |
| "तिरोकुट्टेसु", | |
| "द्वारबाहासु तिट्ठन्ति, आगन्त्वान सकं घरं॥", | |
| "पहूते अन्नपानम्हि, खज्जभोज्जे उपट्ठिते।", | |
| "न", | |
| "एवं ददन्ति ञातीनं, ये होन्ति अनुकम्पका।", | |
| "सुचिं पणीतं कालेन, कप्पियं पानभोजनं।", | |
| "इदं वो ञातीनं होतु, सुखिता होन्तु ञातयो॥", | |
| "ते च तत्थ समागन्त्वा, ञातिपेता समागता।", | |
| "पहूते अन्नपानम्हि, सक्कच्चं अनुमोदरे॥", | |
| "चिरं जीवन्तु नो ञाती, येसं हेतु लभामसे।", | |
| "अम्हाकञ्च कता पूजा, दायका च अनिप्फला॥", | |
| "न हि तत्थ कसि", | |
| "वणिज्जा तादिसी नत्थि, हिरञ्ञेन कयोकयं", | |
| "इतो दिन्नेन यापेन्ति, पेता कालङ्कता", | |
| "उन्नमे उदकं वुट्ठं, यथा निन्नं पवत्तति।", | |
| "एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति॥", | |
| "यथा वारिवहा पूरा, परिपूरेन्ति सागरं।", | |
| "एवमेव इतो दिन्नं, पेतानं उपकप्पति॥", | |
| "अदासि", | |
| "पेतानं दक्खिणं दज्जा, पुब्बे कतमनुस्सरं॥", | |
| "न हि रुण्णं वा सोको वा, या चञ्ञा परिदेवना।", | |
| "न तं पेतानमत्थाय, एवं तिट्ठन्ति ञातयो॥", | |
| "अयञ्च खो दक्खिणा दिन्ना, सङ्घम्हि सुप्पतिट्ठिता।", | |
| "दीघरत्तं", | |
| "सो ञातिधम्मो च अयं निदस्सितो, पेतान पूजा च कता उळारा।", | |
| "बलञ्च भिक्खूनमनुप्पदिन्नं", | |
| "निधिं", | |
| "अत्थे किच्चे समुप्पन्ने, अत्थाय मे भविस्सति॥", | |
| "राजतो वा दुरुत्तस्स, चोरतो पीळितस्स वा।", | |
| "इणस्स वा पमोक्खाय, दुब्भिक्खे आपदासु वा।", | |
| "एतदत्थाय लोकस्मिं, निधि नाम निधीयति॥", | |
| "तावस्सुनिहितो", | |
| "न सब्बो सब्बदा एव, तस्स तं उपकप्पति॥", | |
| "निधि वा ठाना चवति, सञ्ञा वास्स विमुय्हति।", | |
| "नागा वा अपनामेन्ति, यक्खा वापि हरन्ति नं॥", | |
| "अप्पिया", | |
| "यदा पुञ्ञक्खयो होति, सब्बमेतं विनस्सति॥", | |
| "यस्स", | |
| "निधी सुनिहितो होति, इत्थिया पुरिसस्स वा॥", | |
| "चेतियम्हि", | |
| "मातरि पितरि चापि", | |
| "एसो निधि सुनिहितो, अजेय्यो अनुगामिको।", | |
| "पहाय गमनीयेसु, एतं आदाय गच्छति॥", | |
| "असाधारणमञ्ञेसं, अचोराहरणो निधि।", | |
| "कयिराथ धीरो पुञ्ञानि, यो निधि अनुगामिको॥", | |
| "एस देवमनुस्सानं, सब्बकामददो निधि।", | |
| "यं यदेवाभिपत्थेन्ति, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "सुवण्णता सुसरता, सुसण्ठाना सुरूपता", | |
| "आधिपच्चपरिवारो, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "पदेसरज्जं इस्सरियं, चक्कवत्तिसुखं पियं।", | |
| "देवरज्जम्पि दिब्बेसु, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "मानुस्सिका च सम्पत्ति, देवलोके च या रति।", | |
| "या च निब्बानसम्पत्ति, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "मित्तसम्पदमागम्म, योनिसोव", | |
| "विज्जा विमुत्ति वसीभावो, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "पटिसम्भिदा", | |
| "पच्चेकबोधि बुद्धभूमि, सब्बमेतेन लब्भति॥", | |
| "एवं", | |
| "तस्मा धीरा पसंसन्ति, पण्डिता कतपुञ्ञतन्ति॥", | |
| "करणीयमत्थकुसलेन", | |
| "सक्को उजू च सुहुजू", | |
| "सन्तुस्सको", | |
| "सन्तिन्द्रियो च निपको च, अप्पगब्भो कुलेस्वननुगिद्धो॥", | |
| "न च खुद्दमाचरे किञ्चि, येन विञ्ञू परे उपवदेय्युं।", | |
| "सुखिनोव खेमिनो होन्तु, सब्बसत्ता", | |
| "ये केचि पाणभूतत्थि, तसा वा थावरा वनवसेसा।", | |
| "दीघा वा येव महन्ता", | |
| "दिट्ठा वा येव अदिट्ठा", | |
| "भूता व", | |
| "न परो परं निकुब्बेथ, नातिमञ्ञेथ कत्थचि न कञ्चि", | |
| "ब्यारोसना पटिघसञ्ञा, नाञ्ञमञ्ञस्स दुक्खमिच्छेय्य॥", | |
| "माता", | |
| "एवम्पि सब्बभूतेसु, मानसं भावये अपरिमाणं॥", | |
| "मेत्तञ्च", | |
| "उद्धं अधो च तिरियञ्च, असम्बाधं अवेरमसपत्तं॥", | |
| "तिट्ठं चरं निसिन्नो व", | |
| "एतं सतिं अधिट्ठेय्य, ब्रह्ममेतं विहारमिधमाहु॥", | |
| "दिट्ठिञ्च", | |
| "कामेसु विनय" | |
| ] | |
| } |