Spaces:
Sleeping
Sleeping
| { | |
| "title": "२६. ब्राह्मणवग्गो", | |
| "book_name": "२६. ब्राह्मणवग्गो", | |
| "chapter": "२५. भिक्खुवग्गो", | |
| "gathas": [ | |
| "मनोपुब्बङ्गमा", | |
| "मनसा चे पदुट्ठेन, भासति वा करोति वा।", | |
| "ततो नं दुक्खमन्वेति, चक्कंव वहतो पदं॥", | |
| "मनोपुब्बङ्गमा धम्मा, मनोसेट्ठा मनोमया।", | |
| "मनसा चे पसन्नेन, भासति वा करोति वा।", | |
| "ततो नं सुखमन्वेति, छायाव अनपायिनी", | |
| "अक्कोच्छि", | |
| "ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति॥", | |
| "अक्कोच्छि मं अवधि मं, अजिनि मं अहासि मे।", | |
| "ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति॥", | |
| "न", | |
| "अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥", | |
| "परे", | |
| "ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा॥", | |
| "सुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु असंवुतं।", | |
| "भोजनम्हि चामत्तञ्ञुं, कुसीतं हीनवीरियं।", | |
| "तं वे पसहति मारो, वातो रुक्खंव दुब्बलं॥", | |
| "असुभानुपस्सिं विहरन्तं, इन्द्रियेसु सुसंवुतं।", | |
| "भोजनम्हि च मत्तञ्ञुं, सद्धं आरद्धवीरियं।", | |
| "तं वे नप्पसहति मारो, वातो सेलंव पब्बतं॥", | |
| "अनिक्कसावो कासावं, यो वत्थं परिदहिस्सति।", | |
| "अपेतो दमसच्चेन, न सो कासावमरहति॥", | |
| "यो च वन्तकसावस्स, सीलेसु सुसमाहितो।", | |
| "उपेतो दमसच्चेन, स वे कासावमरहति॥", | |
| "असारे सारमतिनो, सारे चासारदस्सिनो।", | |
| "ते सारं नाधिगच्छन्ति, मिच्छासङ्कप्पगोचरा॥", | |
| "सारञ्च", | |
| "ते सारं अधिगच्छन्ति, सम्मासङ्कप्पगोचरा॥", | |
| "यथा अगारं दुच्छन्नं, वुट्ठी समतिविज्झति।", | |
| "एवं अभावितं चित्तं, रागो समतिविज्झति॥", | |
| "यथा", | |
| "एवं सुभावितं चित्तं, रागो न समतिविज्झति॥", | |
| "इध", | |
| "सो सोचति सो विहञ्ञति, दिस्वा कम्मकिलिट्ठमत्तनो॥", | |
| "इध मोदति पेच्च मोदति, कतपुञ्ञो उभयत्थ मोदति।", | |
| "सो मोदति सो पमोदति, दिस्वा कम्मविसुद्धिमत्तनो॥", | |
| "इध तप्पति पेच्च तप्पति, पापकारी", | |
| "‘‘पापं मे कत’’न्ति तप्पति, भिय्यो", | |
| "इध नन्दति पेच्च नन्दति, कतपुञ्ञो उभयत्थ नन्दति।", | |
| "‘‘पुञ्ञं मे कत’’न्ति नन्दति, भिय्यो नन्दति सुग्गतिं गतो॥", | |
| "बहुम्पि चे संहित", | |
| "गोपोव", | |
| "अप्पम्पि चे संहित भासमानो, धम्मस्स होति", | |
| "रागञ्च दोसञ्च पहाय मोहं, सम्मप्पजानो सुविमुत्तचित्तो।", | |
| "अनुपादियानो इध वा हुरं वा, स भागवा सामञ्ञस्स होति॥", | |
| "अप्पमादो", | |
| "अप्पमत्ता न मीयन्ति, ये पमत्ता यथा मता॥", | |
| "एवं", | |
| "अप्पमादे पमोदन्ति, अरियानं गोचरे रता॥", | |
| "ते झायिनो साततिका, निच्चं दळ्हपरक्कमा।", | |
| "फुसन्ति धीरा निब्बानं, योगक्खेमं अनुत्तरं॥", | |
| "उट्ठानवतो सतीमतो", | |
| "सञ्ञतस्स धम्मजीविनो, अप्पमत्तस्स", | |
| "उट्ठानेनप्पमादेन", | |
| "दीपं कयिराथ मेधावी, यं ओघो नाभिकीरति॥", | |
| "पमादमनुयुञ्जन्ति, बाला दुम्मेधिनो जना।", | |
| "अप्पमादञ्च मेधावी, धनं सेट्ठंव रक्खति॥", | |
| "मा पमादमनुयुञ्जेथ, मा कामरतिसन्थवं", | |
| "अप्पमत्तो हि झायन्तो, पप्पोति विपुलं सुखं॥", | |
| "पमादं अप्पमादेन, यदा नुदति पण्डितो।", | |
| "पञ्ञापासादमारुय्ह, असोको सोकिनिं पजं।", | |
| "पब्बतट्ठोव भूमट्ठे", | |
| "अप्पमत्तो", | |
| "अबलस्संव", | |
| "अप्पमादेन मघवा, देवानं सेट्ठतं गतो।", | |
| "अप्पमादं पसंसन्ति, पमादो गरहितो सदा॥", | |
| "अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सि वा।", | |
| "संयोजनं अणुं थूलं, डहं अग्गीव गच्छति॥", | |
| "अप्पमादरतो भिक्खु, पमादे भयदस्सि वा।", | |
| "अभब्बो परिहानाय, निब्बानस्सेव सन्तिके॥", | |
| "फन्दनं", | |
| "उजुं करोति मेधावी, उसुकारोव तेजनं॥", | |
| "वारिजोव थले खित्तो, ओकमोकतउब्भतो।", | |
| "परिफन्दतिदं चित्तं, मारधेय्यं पहातवे॥", | |
| "दुन्निग्गहस्स लहुनो, यत्थकामनिपातिनो।", | |
| "चित्तस्स दमथो साधु, चित्तं दन्तं सुखावहं॥", | |
| "सुदुद्दसं", | |
| "चित्तं रक्खेथ मेधावी, चित्तं गुत्तं सुखावहं॥", | |
| "दूरङ्गमं एकचरं", | |
| "ये", | |
| "अनवट्ठितचित्तस्स, सद्धम्मं अविजानतो।", | |
| "परिप्लवपसादस्स, पञ्ञा न परिपूरति॥", | |
| "अनवस्सुतचित्तस्स, अनन्वाहतचेतसो।", | |
| "पुञ्ञपापपहीनस्स, नत्थि जागरतो भयं॥", | |
| "कुम्भूपमं कायमिमं विदित्वा, नगरूपमं चित्तमिदं ठपेत्वा।", | |
| "योधेथ मारं पञ्ञावुधेन, जितञ्च रक्खे अनिवेसनो सिया॥", | |
| "अचिरं", | |
| "छुद्धो अपेतविञ्ञाणो, निरत्थंव कलिङ्गरं॥", | |
| "दिसो दिसं यं तं कयिरा, वेरी वा पन वेरिनं।", | |
| "मिच्छापणिहितं चित्तं, पापियो", | |
| "न तं माता पिता कयिरा, अञ्ञे वापि च ञातका।", | |
| "सम्मापणिहितं चित्तं, सेय्यसो नं ततो करे॥", | |
| "को", | |
| "को धम्मपदं सुदेसितं, कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति", | |
| "सेखो पथविं विचेस्सति, यमलोकञ्च इमं सदेवकं।", | |
| "सेखो धम्मपदं सुदेसितं, कुसलो पुप्फमिव पचेस्सति॥", | |
| "फेणूपमं", | |
| "छेत्वान मारस्स पपुप्फकानि", | |
| "पुप्फानि हेव पचिनन्तं, ब्यासत्तमनसं", | |
| "सुत्तं गामं महोघोव, मच्चु आदाय गच्छति॥", | |
| "पुप्फानि हेव पचिनन्तं, ब्यासत्तमनसं नरं।", | |
| "अतित्तञ्ञेव कामेसु, अन्तको कुरुते वसं॥", | |
| "यथापि भमरो पुप्फं, वण्णगन्धमहेठयं", | |
| "पलेति रसमादाय, एवं गामे मुनी चरे॥", | |
| "न परेसं विलोमानि, न परेसं कताकतं।", | |
| "अत्तनोव अवेक्खेय्य, कतानि अकतानि च॥", | |
| "यथापि", | |
| "एवं सुभासिता वाचा, अफला होति अकुब्बतो॥", | |
| "यथापि", | |
| "एवं सुभासिता वाचा, सफला होति कुब्बतो", | |
| "यथापि", | |
| "एवं जातेन मच्चेन, कत्तब्बं कुसलं बहुं॥", | |
| "न पुप्फगन्धो पटिवातमेति, न चन्दनं तगरमल्लिका", | |
| "सतञ्च गन्धो पटिवातमेति, सब्बा दिसा सप्पुरिसो पवायति॥", | |
| "चन्दनं तगरं वापि, उप्पलं अथ वस्सिकी।", | |
| "एतेसं गन्धजातानं, सीलगन्धो अनुत्तरो॥", | |
| "अप्पमत्तो अयं गन्धो, य्वायं तगरचन्दनं", | |
| "यो च सीलवतं गन्धो, वाति देवेसु उत्तमो॥", | |
| "तेसं सम्पन्नसीलानं, अप्पमादविहारिनं।", | |
| "सम्मदञ्ञा विमुत्तानं, मारो मग्गं न विन्दति॥", | |
| "यथा सङ्कारठानस्मिं", | |
| "पदुमं तत्थ जायेथ, सुचिगन्धं मनोरमं॥", | |
| "एवं", | |
| "अतिरोचति पञ्ञाय, सम्मासम्बुद्धसावको॥", | |
| "दीघा", | |
| "दीघो बालानं संसारो, सद्धम्मं अविजानतं॥", | |
| "चरञ्चे नाधिगच्छेय्य, सेय्यं सदिसमत्तनो।", | |
| "एकचरियं", | |
| "पुत्ता मत्थि धनम्मत्थि", | |
| "अत्ता हि", | |
| "यो बालो मञ्ञति बाल्यं, पण्डितो वापि तेन सो।", | |
| "बालो च पण्डितमानी, स वे ‘‘बालो’’ति वुच्चति॥", | |
| "यावजीवम्पि चे बालो, पण्डितं पयिरुपासति।", | |
| "न सो धम्मं विजानाति, दब्बी सूपरसं यथा॥", | |
| "मुहुत्तमपि", | |
| "खिप्पं धम्मं विजानाति, जिव्हा सूपरसं यथा॥", | |
| "चरन्ति बाला दुम्मेधा, अमित्तेनेव अत्तना।", | |
| "करोन्ता पापकं कम्मं, यं होति कटुकप्फलं॥", | |
| "न", | |
| "यस्स अस्सुमुखो रोदं, विपाकं पटिसेवति॥", | |
| "तञ्च", | |
| "यस्स पतीतो सुमनो, विपाकं पटिसेवति॥", | |
| "मधुवा", | |
| "यदा च पच्चति पापं, बालो", | |
| "मासे मासे कुसग्गेन, बालो भुञ्जेय्य भोजनं।", | |
| "न सो सङ्खातधम्मानं", | |
| "न हि पापं कतं कम्मं, सज्जु खीरंव मुच्चति।", | |
| "डहन्तं बालमन्वेति, भस्मच्छन्नोव", | |
| "यावदेव अनत्थाय, ञत्तं", | |
| "हन्ति बालस्स सुक्कंसं, मुद्धमस्स विपातयं॥", | |
| "असन्तं", | |
| "आवासेसु च इस्सरियं, पूजा परकुलेसु च॥", | |
| "ममेव", | |
| "ममेवातिवसा अस्सु, किच्चाकिच्चेसु किस्मिचि।", | |
| "इति बालस्स सङ्कप्पो, इच्छा मानो च वड्ढति॥", | |
| "अञ्ञा हि लाभूपनिसा, अञ्ञा निब्बानगामिनी।", | |
| "एवमेतं अभिञ्ञाय, भिक्खु बुद्धस्स सावको।", | |
| "सक्कारं नाभिनन्देय्य, विवेकमनुब्रूहये॥", | |
| "निधीनंव", | |
| "निग्गय्हवादिं मेधाविं, तादिसं पण्डितं भजे।", | |
| "तादिसं भजमानस्स, सेय्यो होति न पापियो॥", | |
| "ओवदेय्यानुसासेय्य, असब्भा च निवारये।", | |
| "सतञ्हि सो पियो होति, असतं होति अप्पियो॥", | |
| "न भजे पापके मित्ते, न भजे पुरिसाधमे।", | |
| "भजेथ मित्ते कल्याणे, भजेथ पुरिसुत्तमे॥", | |
| "धम्मपीति", | |
| "अरियप्पवेदिते धम्मे, सदा रमति पण्डितो॥", | |
| "उदकञ्हि", | |
| "दारुं नमयन्ति तच्छका, अत्तानं दमयन्ति पण्डिता॥", | |
| "सेलो यथा एकघनो", | |
| "एवं निन्दापसंसासु, न समिञ्जन्ति पण्डिता॥", | |
| "यथापि रहदो गम्भीरो, विप्पसन्नो अनाविलो।", | |
| "एवं धम्मानि सुत्वान, विप्पसीदन्ति पण्डिता॥", | |
| "सब्बत्थ वे सप्पुरिसा चजन्ति, न", | |
| "सुखेन फुट्ठा अथ वा दुखेन, न उच्चावचं", | |
| "न", | |
| "न इच्छेय्य", | |
| "अप्पका ते मनुस्सेसु, ये जना पारगामिनो।", | |
| "अथायं इतरा पजा, तीरमेवानुधावति॥", | |
| "ये", | |
| "ते जना पारमेस्सन्ति, मच्चुधेय्यं सुदुत्तरं॥", | |
| "कण्हं", | |
| "ओका अनोकमागम्म, विवेके यत्थ दूरमं॥", | |
| "तत्राभिरतिमिच्छेय्य, हित्वा कामे अकिञ्चनो।", | |
| "परियोदपेय्य", | |
| "येसं सम्बोधियङ्गेसु, सम्मा चित्तं सुभावितं।", | |
| "आदानपटिनिस्सग्गे, अनुपादाय ये रता।", | |
| "खीणासवा जुतिमन्तो, ते लोके परिनिब्बुता॥", | |
| "गतद्धिनो", | |
| "सब्बगन्थप्पहीनस्स, परिळाहो न विज्जति॥", | |
| "उय्युञ्जन्ति", | |
| "हंसाव पल्ललं हित्वा, ओकमोकं जहन्ति ते॥", | |
| "येसं", | |
| "सुञ्ञतो अनिमित्तो च, विमोक्खो येसं गोचरो।", | |
| "आकासे व सकुन्तानं", | |
| "यस्सासवा", | |
| "सुञ्ञतो अनिमित्तो च, विमोक्खो यस्स गोचरो।", | |
| "आकासे व सकुन्तानं, पदं तस्स दुरन्नयं॥", | |
| "यस्सिन्द्रियानि समथङ्गतानि", | |
| "पहीनमानस्स अनासवस्स, देवापि तस्स पिहयन्ति तादिनो॥", | |
| "पथविसमो नो विरुज्झति, इन्दखिलुपमो", | |
| "रहदोव अपेतकद्दमो, संसारा न भवन्ति तादिनो॥", | |
| "सन्तं", | |
| "सम्मदञ्ञा विमुत्तस्स, उपसन्तस्स तादिनो॥", | |
| "अस्सद्धो अकतञ्ञू च, सन्धिच्छेदो च यो नरो।", | |
| "हतावकासो वन्तासो, स वे उत्तमपोरिसो॥", | |
| "गामे वा यदि वारञ्ञे, निन्ने वा यदि वा थले।", | |
| "यत्थ अरहन्तो विहरन्ति, तं भूमिरामणेय्यकं॥", | |
| "रमणीयानि", | |
| "वीतरागा रमिस्सन्ति, न ते कामगवेसिनो॥", | |
| "सहस्समपि", | |
| "एकं अत्थपदं सेय्यो, यं सुत्वा उपसम्मति॥", | |
| "सहस्समपि चे गाथा, अनत्थपदसंहिता।", | |
| "एकं गाथापदं सेय्यो, यं सुत्वा उपसम्मति॥", | |
| "यो च गाथा सतं भासे, अनत्थपदसंहिता", | |
| "एकं धम्मपदं सेय्यो, यं सुत्वा उपसम्मति॥", | |
| "यो सहस्सं सहस्सेन, सङ्गामे मानुसे जिने।", | |
| "एकञ्च जेय्यमत्तानं", | |
| "अत्ता", | |
| "अत्तदन्तस्स पोसस्स, निच्चं सञ्ञतचारिनो॥", | |
| "नेव देवो न गन्धब्बो, न मारो सह ब्रह्मुना।", | |
| "जितं अपजितं कयिरा, तथारूपस्स जन्तुनो॥", | |
| "मासे", | |
| "एकञ्च भावितत्तानं, मुहुत्तमपि पूजये।", | |
| "सायेव पूजना सेय्यो, यञ्चे वस्ससतं हुतं॥", | |
| "यो च वस्ससतं जन्तु, अग्गिं परिचरे वने।", | |
| "एकञ्च भावितत्तानं, मुहुत्तमपि पूजये।", | |
| "सायेव पूजना सेय्यो, यञ्चे वस्ससतं हुतं॥", | |
| "यं", | |
| "सब्बम्पि तं न चतुभागमेति, अभिवादना उज्जुगतेसु सेय्यो॥", | |
| "अभिवादनसीलिस्स, निच्चं वुड्ढापचायिनो", | |
| "चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति, आयु वण्णो सुखं बलं॥", | |
| "यो च वस्ससतं जीवे, दुस्सीलो असमाहितो।", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, सीलवन्तस्स झायिनो॥", | |
| "यो च वस्ससतं जीवे, दुप्पञ्ञो असमाहितो।", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, पञ्ञवन्तस्स झायिनो॥", | |
| "यो", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, वीरियमारभतो दळ्हं॥", | |
| "यो", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, पस्सतो उदयब्बयं॥", | |
| "यो", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, पस्सतो अमतं पदं॥", | |
| "यो च वस्ससतं जीवे, अपस्सं धम्ममुत्तमं।", | |
| "एकाहं जीवितं सेय्यो, पस्सतो धम्ममुत्तमं॥", | |
| "अभित्थरेथ", | |
| "दन्धञ्हि करोतो पुञ्ञं, पापस्मिं रमती मनो॥", | |
| "पापञ्चे पुरिसो कयिरा, न नं", | |
| "न तम्हि छन्दं कयिराथ, दुक्खो पापस्स उच्चयो॥", | |
| "पुञ्ञञ्चे पुरिसो कयिरा, कयिरा नं", | |
| "तम्हि छन्दं कयिराथ, सुखो पुञ्ञस्स उच्चयो॥", | |
| "पापोपि", | |
| "यदा च पच्चति पापं, अथ पापो पापानि", | |
| "भद्रोपि", | |
| "यदा च पच्चति भद्रं, अथ भद्रो भद्रानि", | |
| "मावमञ्ञेथ", | |
| "उदबिन्दुनिपातेन, उदकुम्भोपि पूरति।", | |
| "बालो पूरति", | |
| "मावमञ्ञेथ पुञ्ञस्स, न मन्तं आगमिस्सति।", | |
| "उदबिन्दुनिपातेन, उदकुम्भोपि पूरति।", | |
| "धीरो पूरति पुञ्ञस्स, थोकं थोकम्पि आचिनं॥", | |
| "वाणिजोव भयं मग्गं, अप्पसत्थो महद्धनो।", | |
| "विसं जीवितुकामोव, पापानि परिवज्जये॥", | |
| "पाणिम्हि", | |
| "नाब्बणं विसमन्वेति, नत्थि पापं अकुब्बतो॥", | |
| "यो", | |
| "तमेव बालं पच्चेति पापं, सुखुमो रजो पटिवातंव खित्तो॥", | |
| "गब्भमेके उप्पज्जन्ति, निरयं पापकम्मिनो।", | |
| "सग्गं सुगतिनो यन्ति, परिनिब्बन्ति अनासवा॥", | |
| "न", | |
| "न", | |
| "न अन्तलिक्खे न समुद्दमज्झे, न पब्बतानं विवरं पविस्स।", | |
| "न विज्जती सो जगतिप्पदेसो, यत्थट्ठितं", | |
| "सब्बे तसन्ति दण्डस्स, सब्बे भायन्ति मच्चुनो।", | |
| "अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय्य न घातये॥", | |
| "सब्बे", | |
| "अत्तानं उपमं कत्वा, न हनेय्य न घातये॥", | |
| "सुखकामानि", | |
| "अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो न लभते सुखं॥", | |
| "सुखकामानि", | |
| "अत्तनो सुखमेसानो, पेच्च सो लभते सुखं॥", | |
| "मावोच फरुसं कञ्चि, वुत्ता पटिवदेय्यु तं", | |
| "दुक्खा हि सारम्भकथा, पटिदण्डा फुसेय्यु तं", | |
| "सचे", | |
| "एस पत्तोसि निब्बानं, सारम्भो ते न विज्जति॥", | |
| "यथा दण्डेन गोपालो, गावो पाजेति गोचरं।", | |
| "एवं जरा च मच्चु च, आयुं पाजेन्ति पाणिनं॥", | |
| "अथ पापानि कम्मानि, करं बालो न बुज्झति।", | |
| "सेहि कम्मेहि दुम्मेधो, अग्गिदड्ढोव तप्पति॥", | |
| "यो दण्डेन अदण्डेसु, अप्पदुट्ठेसु दुस्सति।", | |
| "दसन्नमञ्ञतरं ठानं, खिप्पमेव निगच्छति॥", | |
| "वेदनं", | |
| "गरुकं वापि आबाधं, चित्तक्खेपञ्च", | |
| "राजतो वा उपसग्गं", | |
| "परिक्खयञ्च", | |
| "अथ वास्स अगारानि, अग्गि डहति", | |
| "कायस्स भेदा दुप्पञ्ञो, निरयं सोपपज्जति", | |
| "न", | |
| "रजोजल्लं उक्कुटिकप्पधानं, सोधेन्ति मच्चं अवितिण्णकङ्खं॥", | |
| "अलङ्कतो चेपि समं चरेय्य, सन्तो दन्तो नियतो ब्रह्मचारी।", | |
| "सब्बेसु", | |
| "हिरीनिसेधो पुरिसो, कोचि लोकस्मि विज्जति।", | |
| "यो निद्दं", | |
| "अस्सो", | |
| "सद्धाय सीलेन च वीरियेन च, समाधिना धम्मविनिच्छयेन च।", | |
| "सम्पन्नविज्जाचरणा पतिस्सता, जहिस्सथ", | |
| "उदकञ्हि नयन्ति नेत्तिका, उसुकारा नमयन्ति तेजनं।", | |
| "दारुं नमयन्ति तच्छका, अत्तानं दमयन्ति सुब्बता॥", | |
| "को", | |
| "अन्धकारेन ओनद्धा, पदीपं न गवेसथ॥", | |
| "पस्स चित्तकतं बिम्बं, अरुकायं समुस्सितं।", | |
| "आतुरं बहुसङ्कप्पं, यस्स नत्थि धुवं ठिति॥", | |
| "परिजिण्णमिदं", | |
| "भिज्जति पूतिसन्देहो, मरणन्तञ्हि जीवितं॥", | |
| "यानिमानि", | |
| "कापोतकानि अट्ठीनि, तानि दिस्वान का रति॥", | |
| "अट्ठीनं नगरं कतं, मंसलोहितलेपनं।", | |
| "यत्थ जरा च मच्चु च, मानो मक्खो च ओहितो॥", | |
| "जीरन्ति वे राजरथा सुचित्ता, अथो सरीरम्पि जरं उपेति।", | |
| "सतञ्च धम्मो न जरं उपेति, सन्तो हवे सब्भि पवेदयन्ति॥", | |
| "अप्पस्सुतायं पुरिसो, बलिबद्धोव", | |
| "मंसानि तस्स वड्ढन्ति, पञ्ञा तस्स न वड्ढति॥", | |
| "अनेकजातिसंसारं", | |
| "गहकारं", | |
| "गहकारक दिट्ठोसि, पुन गेहं न काहसि।", | |
| "सब्बा", | |
| "विसङ्खारगतं चित्तं, तण्हानं खयमज्झगा॥", | |
| "अचरित्वा ब्रह्मचरियं, अलद्धा योब्बने धनं।", | |
| "जिण्णकोञ्चाव झायन्ति, खीणमच्छेव पल्लले॥", | |
| "अचरित्वा", | |
| "सेन्ति चापातिखीणाव, पुराणानि अनुत्थुनं॥", | |
| "अत्तानञ्चे", | |
| "तिण्णं अञ्ञतरं यामं, पटिजग्गेय्य पण्डितो॥", | |
| "अत्तानमेव पठमं, पतिरूपे निवेसये।", | |
| "अथञ्ञमनुसासेय्य, न किलिस्सेय्य पण्डितो॥", | |
| "अत्तानं", | |
| "सुदन्तो वत दमेथ, अत्ता हि किर दुद्दमो॥", | |
| "अत्ता हि अत्तनो नाथो, को हि नाथो परो सिया।", | |
| "अत्तना हि सुदन्तेन, नाथं लभति दुल्लभं॥", | |
| "अत्तना हि कतं पापं, अत्तजं अत्तसम्भवं।", | |
| "अभिमत्थति", | |
| "यस्स", | |
| "करोति सो तथत्तानं, यथा नं इच्छती दिसो॥", | |
| "सुकरानि", | |
| "यं वे हितञ्च साधुञ्च, तं वे परमदुक्करं॥", | |
| "यो सासनं अरहतं, अरियानं धम्मजीविनं।", | |
| "पटिक्कोसति दुम्मेधो, दिट्ठिं निस्साय पापिकं।", | |
| "फलानि कट्ठकस्सेव, अत्तघाताय", | |
| "अत्तना", | |
| "अत्तना अकतं पापं, अत्तनाव विसुज्झति।", | |
| "सुद्धी असुद्धि पच्चत्तं, नाञ्ञो अञ्ञं", | |
| "अत्तदत्थं", | |
| "अत्तदत्थमभिञ्ञाय, सदत्थपसुतो सिया॥", | |
| "हीनं धम्मं न सेवेय्य, पमादेन न संवसे।", | |
| "मिच्छादिट्ठिं न सेवेय्य, न सिया लोकवड्ढनो॥", | |
| "उत्तिट्ठे नप्पमज्जेय्य, धम्मं सुचरितं चरे।", | |
| "धम्मचारी सुखं सेति, अस्मिं लोके परम्हि च॥", | |
| "धम्मं", | |
| "धम्मचारी सुखं सेति, अस्मिं लोके परम्हि च॥", | |
| "यथा पुब्बुळकं", | |
| "एवं लोकं अवेक्खन्तं, मच्चुराजा न पस्सति॥", | |
| "एथ पस्सथिमं लोकं, चित्तं राजरथूपमं।", | |
| "यत्थ बाला विसीदन्ति, नत्थि सङ्गो विजानतं॥", | |
| "यो", | |
| "सोमं लोकं पभासेति, अब्भा मुत्तोव चन्दिमा॥", | |
| "यस्स पापं कतं कम्मं, कुसलेन पिधीयति", | |
| "सोमं लोकं पभासेति, अब्भा मुत्तोव चन्दिमा॥", | |
| "अन्धभूतो", | |
| "सकुणो जालमुत्तोव, अप्पो सग्गाय गच्छति॥", | |
| "हंसादिच्चपथे यन्ति, आकासे यन्ति इद्धिया।", | |
| "नीयन्ति धीरा लोकम्हा, जेत्वा मारं सवाहिनिं", | |
| "एकं धम्मं अतीतस्स, मुसावादिस्स जन्तुनो।", | |
| "वितिण्णपरलोकस्स, नत्थि पापं अकारियं॥", | |
| "न", | |
| "धीरो च दानं अनुमोदमानो, तेनेव", | |
| "पथब्या एकरज्जेन, सग्गस्स गमनेन वा।", | |
| "सब्बलोकाधिपच्चेन, सोतापत्तिफलं वरं॥", | |
| "यस्स", | |
| "तं बुद्धमनन्तगोचरं, अपदं केन पदेन नेस्सथ॥", | |
| "यस्स जालिनी विसत्तिका, तण्हा नत्थि कुहिञ्चि नेतवे।", | |
| "तं बुद्धमनन्तगोचरं, अपदं केन पदेन नेस्सथ॥", | |
| "ये झानपसुता धीरा, नेक्खम्मूपसमे रता।", | |
| "देवापि तेसं पिहयन्ति, सम्बुद्धानं सतीमतं॥", | |
| "किच्छो", | |
| "किच्छं सद्धम्मस्सवनं, किच्छो बुद्धानमुप्पादो॥", | |
| "सब्बपापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसम्पदा", | |
| "सचित्तपरियोदपनं", | |
| "खन्ती परमं तपो तितिक्खा, निब्बानं", | |
| "न हि पब्बजितो परूपघाती, न", | |
| "अनूपवादो अनूपघातो", | |
| "मत्तञ्ञुता च भत्तस्मिं, पन्तञ्च सयनासनं।", | |
| "अधिचित्ते च आयोगो, एतं बुद्धान सासनं॥", | |
| "न", | |
| "अप्पस्सादा दुखा कामा, इति विञ्ञाय पण्डितो॥", | |
| "अपि", | |
| "तण्हक्खयरतो होति, सम्मासम्बुद्धसावको॥", | |
| "बहुं वे सरणं यन्ति, पब्बतानि वनानि च।", | |
| "आरामरुक्खचेत्यानि, मनुस्सा भयतज्जिता॥", | |
| "नेतं खो सरणं खेमं, नेतं सरणमुत्तमं।", | |
| "नेतं सरणमागम्म, सब्बदुक्खा पमुच्चति॥", | |
| "यो", | |
| "चत्तारि अरियसच्चानि, सम्मप्पञ्ञाय पस्सति॥", | |
| "दुक्खं दुक्खसमुप्पादं, दुक्खस्स च अतिक्कमं।", | |
| "अरियं चट्ठङ्गिकं मग्गं, दुक्खूपसमगामिनं॥", | |
| "एतं", | |
| "एतं सरणमागम्म, सब्बदुक्खा पमुच्चति॥", | |
| "दुल्लभो पुरिसाजञ्ञो, न सो सब्बत्थ जायति।", | |
| "यत्थ सो जायति धीरो, तं कुलं सुखमेधति॥", | |
| "सुखो बुद्धानमुप्पादो, सुखा सद्धम्मदेसना।", | |
| "सुखा सङ्घस्स सामग्गी, समग्गानं तपो सुखो॥", | |
| "पूजारहे पूजयतो, बुद्धे यदि व सावके।", | |
| "पपञ्चसमतिक्कन्ते, तिण्णसोकपरिद्दवे॥", | |
| "ते", | |
| "न सक्का पुञ्ञं सङ्खातुं, इमेत्तमपि केनचि॥", | |
| "सुसुखं", | |
| "वेरिनेसु मनुस्सेसु, विहराम अवेरिनो॥", | |
| "सुसुखं", | |
| "आतुरेसु मनुस्सेसु, विहराम अनातुरा॥", | |
| "सुसुखं वत जीवाम, उस्सुकेसु अनुस्सुका।", | |
| "उस्सुकेसु", | |
| "सुसुखं वत जीवाम, येसं नो नत्थि किञ्चनं।", | |
| "पीतिभक्खा भविस्साम, देवा आभस्सरा यथा॥", | |
| "जयं वेरं पसवति, दुक्खं सेति पराजितो।", | |
| "उपसन्तो सुखं सेति, हित्वा जयपराजयं॥", | |
| "नत्थि रागसमो अग्गि, नत्थि दोससमो कलि।", | |
| "नत्थि खन्धसमा", | |
| "जिघच्छापरमा", | |
| "एतं ञत्वा यथाभूतं, निब्बानं परमं सुखं॥", | |
| "आरोग्यपरमा लाभा, सन्तुट्ठिपरमं धनं।", | |
| "विस्सासपरमा ञाति", | |
| "पविवेकरसं", | |
| "निद्दरो होति निप्पापो, धम्मपीतिरसं पिवं॥", | |
| "साहु", | |
| "अदस्सनेन बालानं, निच्चमेव सुखी सिया॥", | |
| "बालसङ्गतचारी", | |
| "दुक्खो बालेहि संवासो, अमित्तेनेव सब्बदा।", | |
| "धीरो च सुखसंवासो, ञातीनंव समागमो॥", | |
| "तस्मा हि –", | |
| "धीरञ्च पञ्ञञ्च बहुस्सुतञ्च, धोरय्हसीलं", | |
| "तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं, भजेथ नक्खत्तपथंव चन्दिमा", | |
| "अयोगे", | |
| "अत्थं हित्वा पियग्गाही, पिहेतत्तानुयोगिनं॥", | |
| "मा", | |
| "पियानं अदस्सनं दुक्खं, अप्पियानञ्च दस्सनं॥", | |
| "तस्मा पियं न कयिराथ, पियापायो हि पापको।", | |
| "गन्था तेसं न विज्जन्ति, येसं नत्थि पियाप्पियं॥", | |
| "पियतो जायती सोको, पियतो जायती", | |
| "पियतो विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥", | |
| "पेमतो", | |
| "पेमतो विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥", | |
| "रतिया जायती सोको, रतिया जायती भयं।", | |
| "रतिया विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥", | |
| "कामतो जायती सोको, कामतो जायती भयं।", | |
| "कामतो", | |
| "तण्हाय जायती", | |
| "तण्हाय विप्पमुत्तस्स, नत्थि सोको कुतो भयं॥", | |
| "सीलदस्सनसम्पन्नं", | |
| "अत्तनो कम्म कुब्बानं, तं जनो कुरुते पियं॥", | |
| "छन्दजातो अनक्खाते, मनसा च फुटो सिया।", | |
| "कामेसु च अप्पटिबद्धचित्तो", | |
| "चिरप्पवासिं पुरिसं, दूरतो सोत्थिमागतं।", | |
| "ञातिमित्ता सुहज्जा च, अभिनन्दन्ति आगतं॥", | |
| "तथेव", | |
| "पुञ्ञानि पटिगण्हन्ति, पियं ञातीव आगतं॥", | |
| "कोधं", | |
| "तं नामरूपस्मिमसज्जमानं, अकिञ्चनं नानुपतन्ति दुक्खा॥", | |
| "यो वे उप्पतितं कोधं, रथं भन्तंव वारये", | |
| "तमहं", | |
| "अक्कोधेन जिने कोधं, असाधुं साधुना जिने।", | |
| "जिने कदरियं दानेन, सच्चेनालिकवादिनं॥", | |
| "सच्चं भणे न कुज्झेय्य, दज्जा अप्पम्पि", | |
| "एतेहि तीहि ठानेहि, गच्छे देवान सन्तिके॥", | |
| "अहिंसका", | |
| "ते यन्ति अच्चुतं ठानं, यत्थ गन्त्वा न सोचरे॥", | |
| "सदा जागरमानानं, अहोरत्तानुसिक्खिनं।", | |
| "निब्बानं अधिमुत्तानं, अत्थं गच्छन्ति आसवा॥", | |
| "पोराणमेतं", | |
| "निन्दन्ति तुण्हिमासीनं, निन्दन्ति बहुभाणिनं।", | |
| "मितभाणिम्पि निन्दन्ति, नत्थि लोके अनिन्दितो॥", | |
| "न चाहु न च भविस्सति, न चेतरहि विज्जति।", | |
| "एकन्तं निन्दितो पोसो, एकन्तं वा पसंसितो॥", | |
| "यं चे विञ्ञू पसंसन्ति, अनुविच्च सुवे सुवे।", | |
| "अच्छिद्दवुत्तिं", | |
| "निक्खं", | |
| "देवापि नं पसंसन्ति, ब्रह्मुनापि पसंसितो॥", | |
| "कायप्पकोपं रक्खेय्य, कायेन संवुतो सिया।", | |
| "कायदुच्चरितं हित्वा, कायेन सुचरितं चरे॥", | |
| "वचीपकोपं", | |
| "वचीदुच्चरितं हित्वा, वाचाय सुचरितं चरे॥", | |
| "मनोपकोपं रक्खेय्य, मनसा संवुतो सिया।", | |
| "मनोदुच्चरितं हित्वा, मनसा सुचरितं चरे॥", | |
| "कायेन", | |
| "मनसा संवुता धीरा, ते वे सुपरिसंवुता॥", | |
| "पण्डुपलासोव", | |
| "उय्योगमुखे च तिट्ठसि, पाथेय्यम्पि च ते न विज्जति॥", | |
| "सो", | |
| "निद्धन्तमलो अनङ्गणो, दिब्बं अरियभूमिं उपेहिसि", | |
| "उपनीतवयो च दानिसि, सम्पयातोसि", | |
| "वासो", | |
| "सो करोहि दीपमत्तनो, खिप्पं वायम पण्डितो भव।", | |
| "निद्धन्तमलो अनङ्गणो, न पुनं जातिजरं", | |
| "अनुपुब्बेन मेधावी, थोकं थोकं खणे खणे।", | |
| "कम्मारो रजतस्सेव, निद्धमे मलमत्तनो॥", | |
| "अयसाव मलं समुट्ठितं", | |
| "एवं अतिधोनचारिनं, सानि कम्मानि", | |
| "असज्झायमला", | |
| "मलं वण्णस्स कोसज्जं, पमादो रक्खतो मलं॥", | |
| "मलित्थिया दुच्चरितं, मच्छेरं ददतो मलं।", | |
| "मला वे पापका धम्मा, अस्मिं लोके परम्हि च॥", | |
| "ततो मला मलतरं, अविज्जा परमं मलं।", | |
| "एतं मलं पहन्त्वान, निम्मला होथ भिक्खवो॥", | |
| "सुजीवं", | |
| "पक्खन्दिना पगब्भेन, संकिलिट्ठेन जीवितं॥", | |
| "हिरीमता", | |
| "अलीनेनाप्पगब्भेन, सुद्धाजीवेन पस्सता॥", | |
| "यो पाणमतिपातेति, मुसावादञ्च भासति।", | |
| "लोके अदिन्नमादियति, परदारञ्च गच्छति॥", | |
| "सुरामेरयपानञ्च, यो नरो अनुयुञ्जति।", | |
| "इधेवमेसो लोकस्मिं, मूलं खणति अत्तनो॥", | |
| "एवं भो पुरिस जानाहि, पापधम्मा असञ्ञता।", | |
| "मा तं लोभो अधम्मो च, चिरं दुक्खाय रन्धयुं॥", | |
| "ददाति वे यथासद्धं, यथापसादनं", | |
| "तत्थ यो मङ्कु भवति", | |
| "न सो दिवा वा रत्तिं वा, समाधिमधिगच्छति॥", | |
| "यस्स", | |
| "स वे दिवा वा रत्तिं वा, समाधिमधिगच्छति॥", | |
| "नत्थि रागसमो अग्गि, नत्थि दोससमो गहो।", | |
| "नत्थि मोहसमं जालं, नत्थि तण्हासमा नदी॥", | |
| "सुदस्सं वज्जमञ्ञेसं, अत्तनो पन दुद्दसं।", | |
| "परेसं हि सो वज्जानि, ओपुनाति", | |
| "अत्तनो पन छादेति, कलिंव कितवा सठो॥", | |
| "परवज्जानुपस्सिस्स", | |
| "आसवा तस्स वड्ढन्ति, आरा सो आसवक्खया॥", | |
| "आकासेव पदं नत्थि, समणो नत्थि बाहिरे।", | |
| "पपञ्चाभिरता पजा, निप्पपञ्चा तथागता॥", | |
| "आकासेव पदं नत्थि, समणो नत्थि बाहिरे।", | |
| "सङ्खारा सस्सता नत्थि, नत्थि बुद्धानमिञ्जितं॥", | |
| "न", | |
| "यो च अत्थं अनत्थञ्च, उभो निच्छेय्य पण्डितो॥", | |
| "असाहसेन", | |
| "धम्मस्स गुत्तो मेधावी, ‘‘धम्मट्ठो’’ति पवुच्चति॥", | |
| "न तेन पण्डितो होति, यावता बहु भासति।", | |
| "खेमी अवेरी अभयो, ‘‘पण्डितो’’ति पवुच्चति॥", | |
| "न तावता धम्मधरो, यावता बहु भासति।", | |
| "यो च अप्पम्पि सुत्वान, धम्मं कायेन पस्सति।", | |
| "स वे धम्मधरो होति, यो धम्मं नप्पमज्जति॥", | |
| "न", | |
| "परिपक्को", | |
| "यम्हि सच्चञ्च धम्मो च, अहिंसा संयमो दमो।", | |
| "स वे वन्तमलो धीरो, ‘‘थेरो’’ इति", | |
| "न वाक्करणमत्तेन, वण्णपोक्खरताय वा।", | |
| "साधुरूपो नरो होति, इस्सुकी मच्छरी सठो॥", | |
| "यस्स चेतं समुच्छिन्नं, मूलघच्चं समूहतं।", | |
| "स वन्तदोसो मेधावी, ‘‘साधुरूपो’’ति वुच्चति॥", | |
| "न मुण्डकेन समणो, अब्बतो अलिकं भणं।", | |
| "इच्छालोभसमापन्नो, समणो किं भविस्सति॥", | |
| "यो", | |
| "समितत्ता हि पापानं, ‘‘समणो’’ति पवुच्चति॥", | |
| "न", | |
| "विस्सं धम्मं समादाय, भिक्खु होति न तावता॥", | |
| "योध पुञ्ञञ्च पापञ्च, बाहेत्वा ब्रह्मचरियवा", | |
| "सङ्खाय लोके चरति, स वे ‘‘भिक्खू’’ति वुच्चति॥", | |
| "न मोनेन मुनी होति, मूळ्हरूपो अविद्दसु।", | |
| "यो च तुलंव पग्गय्ह, वरमादाय पण्डितो॥", | |
| "पापानि", | |
| "यो मुनाति उभो लोके, ‘‘मुनि’’ तेन पवुच्चति॥", | |
| "न तेन अरियो होति, येन पाणानि हिंसति।", | |
| "अहिंसा", | |
| "न सीलब्बतमत्तेन, बाहुसच्चेन वा पन।", | |
| "अथ वा समाधिलाभेन, विवित्तसयनेन वा॥", | |
| "फुसामि नेक्खम्मसुखं, अपुथुज्जनसेवितं।", | |
| "भिक्खु विस्सासमापादि, अप्पत्तो आसवक्खयं॥", | |
| "मग्गानट्ठङ्गिको", | |
| "विरागो सेट्ठो धम्मानं, द्विपदानञ्च चक्खुमा॥", | |
| "एसेव", | |
| "एतञ्हि तुम्हे पटिपज्जथ, मारस्सेतं पमोहनं॥", | |
| "एतञ्हि तुम्हे पटिपन्ना, दुक्खस्सन्तं करिस्सथ।", | |
| "अक्खातो वो", | |
| "तुम्हेहि किच्चमातप्पं, अक्खातारो तथागता।", | |
| "पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबन्धना॥", | |
| "‘‘सब्बे", | |
| "अथ", | |
| "‘‘सब्बे सङ्खारा दुक्खा’’ति, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
| "अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥", | |
| "‘‘सब्बे धम्मा अनत्ता’’ति, यदा पञ्ञाय पस्सति।", | |
| "अथ निब्बिन्दति दुक्खे, एस मग्गो विसुद्धिया॥", | |
| "उट्ठानकालम्हि अनुट्ठहानो, युवा बली आलसियं उपेतो।", | |
| "संसन्नसङ्कप्पमनो", | |
| "वाचानुरक्खी", | |
| "एते तयो कम्मपथे विसोधये, आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं॥", | |
| "योगा वे जायती", | |
| "एतं द्वेधापथं ञत्वा, भवाय विभवाय च।", | |
| "तथात्तानं निवेसेय्य, यथा भूरि पवड्ढति॥", | |
| "वनं", | |
| "छेत्वा वनञ्च वनथञ्च, निब्बना होथ भिक्खवो॥", | |
| "याव हि वनथो न छिज्जति, अणुमत्तोपि नरस्स नारिसु।", | |
| "पटिबद्धमनोव", | |
| "उच्छिन्द", | |
| "सन्तिमग्गमेव ब्रूहय, निब्बानं सुगतेन देसितं॥", | |
| "इध वस्सं वसिस्सामि, इध हेमन्तगिम्हिसु।", | |
| "इति बालो विचिन्तेति, अन्तरायं न बुज्झति॥", | |
| "तं पुत्तपसुसम्मत्तं, ब्यासत्तमनसं नरं।", | |
| "सुत्तं गामं महोघोव, मच्चु आदाय गच्छति॥", | |
| "न", | |
| "अन्तकेनाधिपन्नस्स, नत्थि ञातीसु ताणता॥", | |
| "एतमत्थवसं ञत्वा, पण्डितो सीलसंवुतो।", | |
| "निब्बानगमनं मग्गं, खिप्पमेव विसोधये॥", | |
| "मत्तासुखपरिच्चागा", | |
| "चजे मत्तासुखं धीरो, सम्पस्सं विपुलं सुखं॥", | |
| "परदुक्खूपधानेन, अत्तनो", | |
| "वेरसंसग्गसंसट्ठो, वेरा सो न परिमुच्चति॥", | |
| "यञ्हि", | |
| "उन्नळानं पमत्तानं, तेसं वड्ढन्ति आसवा॥", | |
| "येसञ्च सुसमारद्धा, निच्चं कायगता सति।", | |
| "अकिच्चं ते न सेवन्ति, किच्चे सातच्चकारिनो।", | |
| "सतानं सम्पजानानं, अत्थं गच्छन्ति आसवा॥", | |
| "मातरं", | |
| "रट्ठं सानुचरं हन्त्वा, अनीघो याति ब्राह्मणो॥", | |
| "मातरं पितरं हन्त्वा, राजानो द्वे च सोत्थिये।", | |
| "वेयग्घपञ्चमं हन्त्वा, अनीघो याति ब्राह्मणो॥", | |
| "सुप्पबुद्धं पबुज्झन्ति, सदा गोतमसावका।", | |
| "येसं दिवा च रत्तो च, निच्चं बुद्धगता सति॥", | |
| "सुप्पबुद्धं पबुज्झन्ति, सदा गोतमसावका।", | |
| "येसं दिवा च रत्तो च, निच्चं धम्मगता सति॥", | |
| "सुप्पबुद्धं", | |
| "येसं दिवा च रत्तो च, निच्चं सङ्घगता सति॥", | |
| "सुप्पबुद्धं पबुज्झन्ति, सदा गोतमसावका।", | |
| "येसं दिवा च रत्तो च, निच्चं कायगता सति॥", | |
| "सुप्पबुद्धं पबुज्झन्ति, सदा गोतमसावका।", | |
| "येसं दिवा च रत्तो च, अहिंसाय रतो मनो॥", | |
| "सुप्पबुद्धं पबुज्झन्ति, सदा गोतमसावका।", | |
| "येसं", | |
| "दुप्पब्बज्जं दुरभिरमं, दुरावासा घरा दुखा।", | |
| "दुक्खोसमानसंवासो, दुक्खानुपतितद्धगू।", | |
| "तस्मा न चद्धगू सिया, न च", | |
| "सद्धो सीलेन सम्पन्नो, यसोभोगसमप्पितो।", | |
| "यं यं पदेसं भजति, तत्थ तत्थेव पूजितो॥", | |
| "दूरे सन्तो पकासेन्ति, हिमवन्तोव पब्बतो।", | |
| "असन्तेत्थ न दिस्सन्ति, रत्तिं खित्ता यथा सरा॥", | |
| "एकासनं", | |
| "एको दमयमत्तानं, वनन्ते रमितो सिया॥", | |
| "अभूतवादी", | |
| "उभोपि ते पेच्च समा भवन्ति, निहीनकम्मा मनुजा परत्थ॥", | |
| "कासावकण्ठा बहवो, पापधम्मा असञ्ञता।", | |
| "पापा पापेहि कम्मेहि, निरयं ते उपपज्जरे॥", | |
| "सेय्यो", | |
| "यञ्चे भुञ्जेय्य दुस्सीलो, रट्ठपिण्डमसञ्ञतो॥", | |
| "चत्तारि ठानानि नरो पमत्तो, आपज्जति परदारूपसेवी।", | |
| "अपुञ्ञलाभं न निकामसेय्यं, निन्दं ततीयं निरयं चतुत्थं॥", | |
| "अपुञ्ञलाभो", | |
| "राजा च दण्डं गरुकं पणेति, तस्मा नरो परदारं न सेवे॥", | |
| "कुसो यथा दुग्गहितो, हत्थमेवानुकन्तति।", | |
| "सामञ्ञं दुप्परामट्ठं, निरयायुपकड्ढति॥", | |
| "यं", | |
| "सङ्कस्सरं ब्रह्मचरियं, न तं होति महप्फलं॥", | |
| "कयिरा चे कयिराथेनं", | |
| "सिथिलो हि परिब्बाजो, भिय्यो आकिरते रजं॥", | |
| "अकतं", | |
| "कतञ्च सुकतं सेय्यो, यं कत्वा नानुतप्पति॥", | |
| "नगरं यथा पच्चन्तं, गुत्तं सन्तरबाहिरं।", | |
| "एवं", | |
| "खणातीता हि सोचन्ति, निरयम्हि समप्पिता॥", | |
| "अलज्जिताये लज्जन्ति, लज्जिताये न लज्जरे।", | |
| "मिच्छादिट्ठिसमादाना, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं॥", | |
| "अभये भयदस्सिनो, भये चाभयदस्सिनो।", | |
| "मिच्छादिट्ठिसमादाना, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं॥", | |
| "अवज्जे", | |
| "मिच्छादिट्ठिसमादाना, सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिं॥", | |
| "वज्जञ्च वज्जतो ञत्वा, अवज्जञ्च अवज्जतो।", | |
| "सम्मादिट्ठिसमादाना, सत्ता गच्छन्ति सुग्गतिं॥", | |
| "अहं", | |
| "अतिवाक्यं तितिक्खिस्सं, दुस्सीलो हि बहुज्जनो॥", | |
| "दन्तं", | |
| "दन्तो सेट्ठो मनुस्सेसु, योतिवाक्यं तितिक्खति॥", | |
| "वरमस्सतरा दन्ता, आजानीया च", | |
| "कुञ्जरा च", | |
| "न", | |
| "यथात्तना सुदन्तेन, दन्तो दन्तेन गच्छति॥", | |
| "धनपालो", | |
| "बद्धो कबळं न भुञ्जति, सुमरति", | |
| "मिद्धी", | |
| "महावराहोव निवापपुट्ठो, पुनप्पुनं गब्भमुपेति मन्दो॥", | |
| "इदं", | |
| "तदज्जहं निग्गहेस्सामि योनिसो, हत्थिप्पभिन्नं विय अङ्कुसग्गहो॥", | |
| "अप्पमादरता होथ, सचित्तमनुरक्खथ।", | |
| "दुग्गा उद्धरथत्तानं, पङ्के सन्नोव", | |
| "सचे लभेथ निपकं सहायं, सद्धिं चरं साधुविहारिधीरं।", | |
| "अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि, चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा॥", | |
| "नो", | |
| "राजाव रट्ठं विजितं पहाय, एको चरे मातङ्गरञ्ञेव नागो॥", | |
| "एकस्स चरितं सेय्यो, नत्थि बाले सहायता।", | |
| "एको चरे न च पापानि कयिरा, अप्पोस्सुक्को मातङ्गरञ्ञेव नागो॥", | |
| "अत्थम्हि", | |
| "पुञ्ञं सुखं जीवितसङ्खयम्हि, सब्बस्स दुक्खस्स सुखं पहानं॥", | |
| "सुखा", | |
| "सुखा सामञ्ञता लोके, अथो ब्रह्मञ्ञता सुखा॥", | |
| "सुखं याव जरा सीलं, सुखा सद्धा पतिट्ठिता।", | |
| "सुखो पञ्ञाय पटिलाभो, पापानं अकरणं सुखं॥", | |
| "मनुजस्स", | |
| "सो प्लवती", | |
| "यं एसा सहते जम्मी, तण्हा लोके विसत्तिका।", | |
| "सोका तस्स पवड्ढन्ति, अभिवट्ठंव", | |
| "यो चेतं सहते जम्मिं, तण्हं लोके दुरच्चयं।", | |
| "सोका तम्हा पपतन्ति, उदबिन्दुव पोक्खरा॥", | |
| "तं वो वदामि भद्दं वो, यावन्तेत्थ समागता।", | |
| "तण्हाय मूलं खणथ, उसीरत्थोव बीरणं।", | |
| "मा वो नळंव सोतोव, मारो भञ्जि पुनप्पुनं॥", | |
| "यथापि", | |
| "एवम्पि तण्हानुसये अनूहते, निब्बत्तती दुक्खमिदं पुनप्पुनं॥", | |
| "यस्स छत्तिंसति सोता, मनापसवना भुसा।", | |
| "माहा", | |
| "सवन्ति", | |
| "तञ्च दिस्वा लतं जातं, मूलं पञ्ञाय छिन्दथ॥", | |
| "सरितानि सिनेहितानि च, सोमनस्सानि भवन्ति जन्तुनो।", | |
| "ते सातसिता सुखेसिनो, ते वे जातिजरूपगा नरा॥", | |
| "तसिणाय पुरक्खता पजा, परिसप्पन्ति ससोव बन्धितो", | |
| "संयोजनसङ्गसत्तका, दुक्खमुपेन्ति पुनप्पुनं चिराय॥", | |
| "तसिणाय पुरक्खता पजा, परिसप्पन्ति ससोव बन्धितो।", | |
| "तस्मा तसिणं विनोदये, आकङ्खन्त", | |
| "यो निब्बनथो वनाधिमुत्तो, वनमुत्तो वनमेव धावति।", | |
| "तं पुग्गलमेथ पस्सथ, मुत्तो बन्धनमेव धावति॥", | |
| "न", | |
| "सारत्तरत्ता", | |
| "एतं दळ्हं बन्धनमाहु धीरा, ओहारिनं सिथिलं दुप्पमुञ्चं।", | |
| "एतम्पि छेत्वान परिब्बजन्ति, अनपेक्खिनो कामसुखं पहाय॥", | |
| "ये रागरत्तानुपतन्ति सोतं, सयंकतं मक्कटकोव जालं।", | |
| "एतम्पि छेत्वान वजन्ति धीरा, अनपेक्खिनो सब्बदुक्खं पहाय॥", | |
| "मुञ्च", | |
| "सब्बत्थ विमुत्तमानसो, न पुनं जातिजरं उपेहिसि॥", | |
| "वितक्कमथितस्स जन्तुनो, तिब्बरागस्स सुभानुपस्सिनो।", | |
| "भिय्यो तण्हा पवड्ढति, एस खो दळ्हं", | |
| "वितक्कूपसमे", | |
| "एस", | |
| "निट्ठङ्गतो", | |
| "अच्छिन्दि भवसल्लानि, अन्तिमोयं समुस्सयो॥", | |
| "वीततण्हो अनादानो, निरुत्तिपदकोविदो।", | |
| "अक्खरानं सन्निपातं, जञ्ञा पुब्बापरानि च।", | |
| "स वे ‘‘अन्तिमसारीरो, महापञ्ञो महापुरिसो’’ति वुच्चति॥", | |
| "सब्बाभिभू सब्बविदूहमस्मि, सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो।", | |
| "सब्बञ्जहो तण्हक्खये विमुत्तो, सयं अभिञ्ञाय कमुद्दिसेय्यं॥", | |
| "सब्बदानं धम्मदानं जिनाति, सब्बरसं धम्मरसो जिनाति।", | |
| "सब्बरतिं धम्मरति जिनाति, तण्हक्खयो सब्बदुक्खं जिनाति॥", | |
| "हनन्ति भोगा दुम्मेधं, नो च पारगवेसिनो।", | |
| "भोगतण्हाय दुम्मेधो, हन्ति अञ्ञेव अत्तनं॥", | |
| "तिणदोसानि खेत्तानि, रागदोसा अयं पजा।", | |
| "तस्मा हि वीतरागेसु, दिन्नं होति महप्फलं॥", | |
| "तिणदोसानि", | |
| "तस्मा हि वीतदोसेसु, दिन्नं होति महप्फलं॥", | |
| "तिणदोसानि खेत्तानि, मोहदोसा अयं पजा।", | |
| "तस्मा हि वीतमोहेसु, दिन्नं होति महप्फलं॥", | |
| "(तिणदोसानि", | |
| "तस्मा हि विगतिच्छेसु, दिन्नं होति महप्फलं॥)", | |
| "तिणदोसानि खेत्तानि, तण्हादोसा अयं पजा।", | |
| "तस्मा हि वीततण्हेसु, दिन्नं होति महप्फलं॥", | |
| "चक्खुना संवरो साधु, साधु सोतेन संवरो।", | |
| "घानेन संवरो साधु, साधु जिव्हाय संवरो॥", | |
| "कायेन संवरो साधु, साधु वाचाय संवरो।", | |
| "मनसा संवरो साधु, साधु सब्बत्थ संवरो।", | |
| "सब्बत्थ संवुतो भिक्खु, सब्बदुक्खा पमुच्चति॥", | |
| "हत्थसंयतो पादसंयतो, वाचासंयतो संयतुत्तमो।", | |
| "अज्झत्तरतो समाहितो, एको सन्तुसितो तमाहु भिक्खुं॥", | |
| "यो", | |
| "अत्थं धम्मञ्च दीपेति, मधुरं तस्स भासितं॥", | |
| "धम्मारामो", | |
| "धम्मं अनुस्सरं भिक्खु, सद्धम्मा न परिहायति॥", | |
| "सलाभं नातिमञ्ञेय्य, नाञ्ञेसं पिहयं चरे।", | |
| "अञ्ञेसं पिहयं भिक्खु, समाधिं नाधिगच्छति॥", | |
| "अप्पलाभोपि चे भिक्खु, सलाभं नातिमञ्ञति।", | |
| "तं वे देवा पसंसन्ति, सुद्धाजीविं अतन्दितं॥", | |
| "सब्बसो नामरूपस्मिं, यस्स नत्थि ममायितं।", | |
| "असता च न सोचति, स वे ‘‘भिक्खू’’ति वुच्चति॥", | |
| "मेत्ताविहारी यो भिक्खु, पसन्नो बुद्धसासने।", | |
| "अधिगच्छे पदं सन्तं, सङ्खारूपसमं सुखं॥", | |
| "सिञ्च भिक्खु इमं नावं, सित्ता ते लहुमेस्सति।", | |
| "छेत्वा रागञ्च दोसञ्च, ततो निब्बानमेहिसि॥", | |
| "पञ्च छिन्दे पञ्च जहे, पञ्च चुत्तरि भावये।", | |
| "पञ्च सङ्गातिगो भिक्खु, ‘‘ओघतिण्णो’’ति वुच्चति॥", | |
| "झाय भिक्खु", | |
| "मा लोहगुळं गिली पमत्तो, मा कन्दि ‘‘दुक्खमिद’’न्ति डय्हमानो॥", | |
| "नत्थि झानं अपञ्ञस्स, पञ्ञा नत्थि अझायतो", | |
| "यम्हि झानञ्च पञ्ञा च, स वे निब्बानसन्तिके॥", | |
| "सुञ्ञागारं", | |
| "अमानुसी रति होति, सम्मा धम्मं विपस्सतो॥", | |
| "यतो यतो सम्मसति, खन्धानं उदयब्बयं।", | |
| "लभती", | |
| "तत्रायमादि भवति, इध पञ्ञस्स भिक्खुनो।", | |
| "इन्द्रियगुत्ति सन्तुट्ठि, पातिमोक्खे च संवरो॥", | |
| "मित्ते भजस्सु कल्याणे, सुद्धाजीवे अतन्दिते।", | |
| "पटिसन्थारवुत्यस्स", | |
| "ततो पामोज्जबहुलो, दुक्खस्सन्तं करिस्सति॥", | |
| "वस्सिका विय पुप्फानि, मद्दवानि", | |
| "एवं रागञ्च दोसञ्च, विप्पमुञ्चेथ भिक्खवो॥", | |
| "सन्तकायो सन्तवाचो, सन्तवा सुसमाहितो", | |
| "वन्तलोकामिसो भिक्खु, ‘‘उपसन्तो’’ति वुच्चति॥", | |
| "अत्तना चोदयत्तानं, पटिमंसेथ अत्तना", | |
| "सो अत्तगुत्तो सतिमा, सुखं भिक्खु विहाहिसि॥", | |
| "अत्ता हि अत्तनो नाथो, (को हि नाथो परो सिया)", | |
| "अत्ता हि अत्तनो गति।", | |
| "तस्मा संयममत्तानं", | |
| "पामोज्जबहुलो", | |
| "अधिगच्छे पदं सन्तं, सङ्खारूपसमं सुखं॥", | |
| "यो", | |
| "सोमं", | |
| "छिन्द सोतं परक्कम्म, कामे पनुद ब्राह्मण।", | |
| "सङ्खारानं खयं ञत्वा, अकतञ्ञूसि ब्राह्मण॥", | |
| "यदा द्वयेसु धम्मेसु, पारगू होति ब्राह्मणो।", | |
| "अथस्स सब्बे संयोगा, अत्थं गच्छन्ति जानतो॥", | |
| "यस्स पारं अपारं वा, पारापारं न विज्जति।", | |
| "वीतद्दरं विसंयुत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "झायिं विरजमासीनं, कतकिच्चमनासवं।", | |
| "उत्तमत्थमनुप्पत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "दिवा", | |
| "सन्नद्धो खत्तियो तपति, झायी तपति ब्राह्मणो।", | |
| "अथ सब्बमहोरत्तिं", | |
| "बाहितपापोति", | |
| "पब्बाजयमत्तनो मलं, तस्मा ‘‘पब्बजितो’’ति वुच्चति॥", | |
| "न", | |
| "धी", | |
| "न ब्राह्मणस्सेतदकिञ्चि सेय्यो, यदा निसेधो मनसो पियेहि।", | |
| "यतो यतो हिंसमनो निवत्तति, ततो ततो सम्मतिमेव दुक्खं॥", | |
| "यस्स कायेन वाचाय, मनसा नत्थि दुक्कटं।", | |
| "संवुतं तीहि ठानेहि, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "यम्हा धम्मं विजानेय्य, सम्मासम्बुद्धदेसितं।", | |
| "सक्कच्चं तं नमस्सेय्य, अग्गिहुत्तंव ब्राह्मणो॥", | |
| "न जटाहि न गोत्तेन, न जच्चा होति ब्राह्मणो।", | |
| "यम्हि सच्चञ्च धम्मो च, सो सुची सो च ब्राह्मणो॥", | |
| "किं", | |
| "अब्भन्तरं ते गहनं, बाहिरं परिमज्जसि॥", | |
| "पंसुकूलधरं जन्तुं, किसं धमनिसन्थतं।", | |
| "एकं वनस्मिं झायन्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "न", | |
| "भोवादि नाम सो होति, सचे होति सकिञ्चनो।", | |
| "अकिञ्चनं अनादानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "सब्बसंयोजनं छेत्वा, यो वे न परितस्सति।", | |
| "सङ्गातिगं", | |
| "छेत्वा", | |
| "उक्खित्तपलिघं बुद्धं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "अक्कोसं वधबन्धञ्च, अदुट्ठो यो तितिक्खति।", | |
| "खन्तीबलं बलानीकं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "अक्कोधनं वतवन्तं, सीलवन्तं अनुस्सदं।", | |
| "दन्तं अन्तिमसारीरं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "वारि", | |
| "यो न लिम्पति", | |
| "यो दुक्खस्स पजानाति, इधेव खयमत्तनो।", | |
| "पन्नभारं विसंयुत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "गम्भीरपञ्ञं मेधाविं, मग्गामग्गस्स कोविदं।", | |
| "उत्तमत्थमनुप्पत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "असंसट्ठं", | |
| "अनोकसारिमप्पिच्छं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "निधाय दण्डं भूतेसु, तसेसु थावरेसु च।", | |
| "यो न हन्ति न घातेति, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "अविरुद्धं विरुद्धेसु, अत्तदण्डेसु निब्बुतं।", | |
| "सादानेसु अनादानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "यस्स रागो च दोसो च, मानो मक्खो च पातितो।", | |
| "सासपोरिव", | |
| "अकक्कसं", | |
| "याय नाभिसजे कञ्चि", | |
| "योध दीघं व रस्सं वा, अणुं थूलं सुभासुभं।", | |
| "लोके अदिन्नं नादियति", | |
| "आसा यस्स न विज्जन्ति, अस्मिं लोके परम्हि च।", | |
| "निरासासं", | |
| "यस्सालया न विज्जन्ति, अञ्ञाय अकथंकथी।", | |
| "अमतोगधमनुप्पत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "योध पुञ्ञञ्च पापञ्च, उभो सङ्गमुपच्चगा।", | |
| "असोकं विरजं सुद्धं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "चन्दंव विमलं सुद्धं, विप्पसन्नमनाविलं।", | |
| "नन्दीभवपरिक्खीणं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "योमं", | |
| "तिण्णो पारगतो", | |
| "अनुपादाय निब्बुतो, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "योध", | |
| "कामभवपरिक्खीणं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं", | |
| "योध तण्हं पहन्त्वान, अनागारो परिब्बजे।", | |
| "तण्हाभवपरिक्खीणं", | |
| "हित्वा", | |
| "सब्बयोगविसंयुत्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "हित्वा रतिञ्च अरतिञ्च, सीतिभूतं निरूपधिं।", | |
| "सब्बलोकाभिभुं वीरं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "चुतिं यो वेदि सत्तानं, उपपत्तिञ्च सब्बसो।", | |
| "असत्तं सुगतं बुद्धं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "यस्स गतिं न जानन्ति, देवा गन्धब्बमानुसा।", | |
| "खीणासवं अरहन्तं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "यस्स", | |
| "अकिञ्चनं अनादानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "उसभं", | |
| "अनेजं न्हातकं", | |
| "पुब्बेनिवासं यो वेदि, सग्गापायञ्च पस्सति,", | |
| "अथो जातिक्खयं पत्तो, अभिञ्ञावोसितो मुनि।", | |
| "सब्बवोसितवोसानं, तमहं ब्रूमि ब्राह्मणं॥", | |
| "सतेवीसचतुस्सता, चतुसच्चविभाविना।", | |
| "सतत्तयञ्च वत्थूनं, पञ्चाधिकं समुट्ठिताति)", | |
| "यमकप्पमादो", | |
| "अरहन्तो सहस्सञ्च, पापं दण्डेन ते दस॥", | |
| "जरा", | |
| "कोधो मलञ्च धम्मट्ठो, मग्गवग्गेन वीसति॥", | |
| "पकिण्णं निरयो नागो, तण्हा भिक्खु च ब्राह्मणो।", | |
| "एते छब्बीसति वग्गा, देसितादिच्चबन्धुना॥", | |
| "यमके वीसति गाथा, अप्पमादम्हि द्वादस।", | |
| "एकादस चित्तवग्गे, पुप्फवग्गम्हि सोळस॥", | |
| "बाले च सोळस गाथा, पण्डितम्हि चतुद्दस।", | |
| "अरहन्ते दस गाथा, सहस्से होन्ति सोळस॥", | |
| "तेरस पापवग्गम्हि, दण्डम्हि दस सत्त च।", | |
| "एकादस जरा वग्गे, अत्तवग्गम्हि ता दस॥", | |
| "द्वादस", | |
| "सुखे च पियवग्गे च, गाथायो होन्ति द्वादस॥", | |
| "चुद्दस कोधवग्गम्हि, मलवग्गेकवीसति।", | |
| "सत्तरस च धम्मट्ठे, मग्गवग्गे सत्तरस॥", | |
| "पकिण्णे सोळस गाथा, निरये नागे च चुद्दस।", | |
| "छब्बीस तण्हावग्गम्हि, तेवीस भिक्खुवग्गिका॥", | |
| "एकतालीसगाथायो, ब्राह्मणे वग्गमुत्तमे।", | |
| "गाथासतानि चत्तारि, तेवीस च पुनापरे।", | |
| "धम्मपदे निपातम्हि, देसितादिच्चबन्धुनाति॥" | |
| ] | |
| } |