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	| { | |
| "title": "१. सङ्गहासङ्गहपदनिद्देसो", | |
| "book_name": "धातुकथापाळि", | |
| "chapter": "१. नयमातिका", | |
| "gathas": [ | |
| "दसायतना सत्तरस धातुयो,", | |
| "सत्तिन्द्रिया असञ्ञाभवो एकवोकारभवो।", | |
| "परिदेवो सनिदस्सनसप्पटिघं,", | |
| "अनिदस्सनं पुनदेव", | |
| "तयो खन्धा तथा सच्चा, इन्द्रियानि च सोळस।", | |
| "पदानि पच्चयाकारे, चुद्दसूपरि चुद्दस॥", | |
| "समतिंस पदा होन्ति, गोच्छकेसु दसस्वथ।", | |
| "दुवे चूळन्तरदुका", | |
| "द्वे सच्चा पन्नरसिन्द्रिया, एकादस पटिच्चपदा।", | |
| "उद्धं पुन एकादस, गोच्छकपदमेत्थ तिंसविधाति", | |
| "रूपञ्च धम्मायतनं धम्मधातु, इत्थिपुमं जीवितं नामरूपं।", | |
| "द्वे भवा जाति जरा मच्चुरूपं, अनारम्मणं नो चित्तं चित्तेन विप्पयुत्तं॥", | |
| "विसंसट्ठं समुट्ठान-सहभु अनुपरिवत्ति।", | |
| "बाहिरं उपादा द्वे, विसयो", | |
| "धम्मायतनं धम्मधातु, दुक्खसच्चञ्च जीवितं।", | |
| "सळायतनं नामरूपं, चत्तारो च महाभवा॥", | |
| "जाति जरा च मरणं, तिकेस्वेकूनवीसति।", | |
| "गोच्छकेसु च पञ्ञास, अट्ठ चूळन्तरे पदा॥", | |
| "महन्तरे पन्नरस, अट्ठारस ततो परे।", | |
| "तेवीस पदसतं एतं, सम्पयोगे न लब्भतीति॥", | |
| "खन्धा", | |
| "धातूसु सत्त द्वेपि च इन्द्रियतो॥", | |
| "तयो पटिच्च तथरिव फस्सपञ्चमा।", | |
| "अधिमुच्चना मनसि तिकेसु तीणि॥", | |
| "सत्तन्तरा द्वे च मनेन युत्ता।", | |
| "वितक्कविचारणा उपेक्खकाय चाति॥", | |
| "धम्मायतनं धम्मधातु, अथ जीवितं नामरूपं।", | |
| "सळायतनं जातिजरामतं, द्वे च तिके न लब्भरे॥", | |
| "पठमन्तरे सत्त च, गोच्छके दस अपरन्ते।", | |
| "चुद्दस छ च मत्थके, इच्चेते सत्तचत्तालीस धम्मा।", | |
| "समुच्छेदे न लब्भन्ति, मोघपुच्छकेन चाति॥", | |
| "अरूपक्खन्धा चत्तारो, मनायतनमेव च।", | |
| "विञ्ञाणधातुयो सत्त, द्वे सच्चा चुद्दसिन्द्रिया॥", | |
| "पच्चये द्वादस पदा, ततो उपरि सोळस।", | |
| "तिकेसु अट्ठ गोच्छके, तेचत्तालीसमेव च॥", | |
| "महन्तरदुके सत्त, पदा पिट्ठि दुकेसु छ।", | |
| "नवमस्स पदस्सेते, निद्देसे सङ्गहं गताति॥", | |
| "धम्मायतनं धम्मधातु, दुक्खसच्चञ्च जीवितं।", | |
| "सळायतनं नामरूपं, चत्तारो च महाभवा॥", | |
| "जाति जरा च मरणं, तिकेस्वेकूनवीसति।", | |
| "गोच्छकेसु च पञ्ञास, अट्ठ चूळन्तरे पदा॥", | |
| "महन्तरे पन्नरस, अट्ठारस ततो परे।", | |
| "तेवीस पदसतं एतं, सम्पयोगे न लब्भतीति॥", | |
| "द्वे सच्चा पन्नरसिन्द्रिया, एकादस पटिच्चपदा।", | |
| "उद्धं पुन एकादस, गोच्छकपदमेत्थ तिंसविधाति॥", | |
| "रूपक्खन्धा चत्तारो, मनायतनमेव च।", | |
| "विञ्ञाणधातुयो सत्त, द्वे सच्चा चुद्दसिन्द्रिया॥", | |
| "पच्चये द्वादस पदा, ततो उपरि सोळस।", | |
| "तिकेसु अट्ठ गोच्छके, तेचत्तालीसमेव च॥", | |
| "महन्तरदुके सत्त, पदा पिट्ठिदुकेसु छ।", | |
| "नवमस्स पदस्सेते, निद्देसे सङ्गहं गताति॥", | |
| "रूपञ्च धम्मायतनं धम्मधातु, इत्थिपुमं जीवितं नामरूपं।", | |
| "द्वे भवा जातिजरा मच्चुरूपं, अनारम्मणं नो चित्तं चित्तेन विप्पयुत्तं॥", | |
| "विसंसट्ठं समुट्ठानसहभु, अनुपरिवत्ति बाहिरं उपादा।", | |
| "द्वे विसयो एसनयो सुबुद्धोति॥", | |
| "धम्मायतनं धम्मधातु, अथ जीवितं नामरूपं।", | |
| "सळायतनं जातिजरामतं, द्वे च तिके न लब्भरे॥", | |
| "पठमन्तरे सत्त च, गोच्छके दस अपरन्ते।", | |
| "चुद्दस छ च मत्थके, इच्चेते सत्तचत्तालीस धम्मा।", | |
| "समुच्छेदे न लब्भन्ति, मोघपुच्छकेन चाति॥" | |
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