Spaces:
Sleeping
Sleeping
| { | |
| "title": "१०. कोसम्बकक्खन्धको", | |
| "book_name": "१०. कोसम्बकक्खन्धको", | |
| "chapter": "९. चम्पेय्यक्खन्धको", | |
| "gathas": [ | |
| "‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
| "आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
| "अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा।", | |
| "यतो पजानाति सहेतुधम्म’’न्ति॥", | |
| "‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
| "आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
| "अथस्स कङ्खा वपयन्ति सब्बा।", | |
| "यतो खयं पच्चयानं अवेदी’’ति॥", | |
| "‘‘यदा हवे पातुभवन्ति धम्मा।", | |
| "आतापिनो झायतो ब्राह्मणस्स।", | |
| "विधूपयं तिट्ठति मारसेनं।", | |
| "सूरियोव", | |
| "निहुंहुङ्को निक्कसावो यतत्तो।", | |
| "वेदन्तगू वुसितब्रह्मचरियो।", | |
| "धम्मेन सो ब्रह्मवादं वदेय्य।", | |
| "यस्सुस्सदा नत्थि कुहिञ्चि लोके’’ति॥", | |
| "अब्यापज्जं सुखं लोके, पाणभूतेसु संयमो॥", | |
| "अस्मिमानस्स यो विनयो, एतं वे परमं सुख’’न्ति॥", | |
| "‘‘किच्छेन", | |
| "रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
| "‘‘पटिसोतगामिं", | |
| "रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा", | |
| "‘‘पातुरहोसि मगधेसु पुब्बे।", | |
| "धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
| "अपापुरेतं", | |
| "सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
| "‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
| "यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
| "तथूपमं धम्ममयं सुमेध।", | |
| "पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
| "सोकावतिण्णं", | |
| "अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
| "‘‘उट्ठेहि", | |
| "सत्थवाह अणण", | |
| "देसस्सु", | |
| "अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
| "‘किच्छेन मे अधिगतं, हलं दानि पकासितुं।", | |
| "रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
| "‘पटिसोतगामिं निपुणं, गम्भीरं दुद्दसं अणुं।", | |
| "रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा’ति॥", | |
| "‘‘पातुरहोसि", | |
| "धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
| "अपापुरेतं अमतस्स द्वारं।", | |
| "सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
| "‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
| "यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
| "तथूपमं", | |
| "पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
| "सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको।", | |
| "अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
| "‘‘उट्ठेहि वीर विजितसङ्गाम।", | |
| "सत्थवाह अणण विचर लोके।", | |
| "देसस्सु भगवा धम्मं।", | |
| "अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
| "‘किच्छेन मे अधिगतं, हलं दानि पकासितुं।", | |
| "रागदोसपरेतेहि, नायं धम्मो सुसम्बुधो॥", | |
| "‘पटिसोतगामिं निपुणं, गम्भीरं दुद्दसं अणुं।", | |
| "रागरत्ता न दक्खन्ति, तमोखन्धेन आवुटा’ति॥", | |
| "‘‘पातुरहोसि मगधेसु पुब्बे।", | |
| "धम्मो असुद्धो समलेहि चिन्तितो।", | |
| "अपापुरेतं अमतस्स द्वारं।", | |
| "सुणन्तु धम्मं विमलेनानुबुद्धं॥", | |
| "‘‘सेले यथा पब्बतमुद्धनिट्ठितो।", | |
| "यथापि पस्से जनतं समन्ततो।", | |
| "तथूपमं धम्ममयं सुमेध।", | |
| "पासादमारुय्ह समन्तचक्खु।", | |
| "सोकावतिण्णं जनतमपेतसोको।", | |
| "अवेक्खस्सु जातिजराभिभूतं॥", | |
| "‘‘उट्ठेहि वीर विजितसङ्गाम।", | |
| "सत्थवाह अणण विचर लोके।", | |
| "देसस्सु भगवा धम्मं।", | |
| "अञ्ञातारो भविस्सन्ती’’ति॥", | |
| "‘‘अपारुता तेसं अमतस्स द्वारा।", | |
| "ये सोतवन्तो पमुञ्चन्तु सद्धं।", | |
| "विहिंससञ्ञी पगुणं न भासिं।", | |
| "धम्मं पणीतं मनुजेसु ब्रह्मे’’ति॥", | |
| "सब्बेसु धम्मेसु अनूपलित्तो।", | |
| "सब्बञ्जहो तण्हाक्खये विमुत्तो,", | |
| "सयं अभिञ्ञाय कमुद्दिसेय्यं॥", | |
| "सदेवकस्मिं लोकस्मिं, नत्थि मे पटिपुग्गलो॥", | |
| "एकोम्हि सम्मासम्बुद्धो, सीतिभूतोस्मि निब्बुतो॥", | |
| "अन्धीभूतस्मिं लोकस्मिं, आहञ्छं", | |
| "जिता", | |
| "‘‘बद्धोसि सब्बपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
| "महाबन्धनबद्धोसि, न मे समण मोक्खसी’’ति॥", | |
| "‘‘मुत्ताहं", | |
| "महाबन्धनमुत्तोम्हि, निहतो त्वमसि अन्तकाति॥", | |
| "तेन तं बाधयिस्सामि, न मे समण मोक्खसीति॥", | |
| "एत्थ मे विगतो छन्दो, निहतो त्वमसि अन्तका’’ति॥", | |
| "‘‘बद्धोसि मारपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
| "महाबन्धनबद्धोसि", | |
| "‘‘मुत्ताहं मारपासेहि, ये दिब्बा ये च मानुसा।", | |
| "महाबन्धनमुत्तोम्हि", | |
| "नेरञ्जरायं भगवा, उरुवेलकस्सपं जटिलं अवोच।", | |
| "‘‘सचे ते कस्सप अगरु, विहरेमु अज्जण्हो अग्गिसालम्ही’’ति", | |
| "‘‘न खो मे महासमण गरु।", | |
| "फासुकामोव तं निवारेमि।", | |
| "चण्डेत्थ नागराजा।", | |
| "इद्धिमा आसिविसो घोरविसो।", | |
| "सो", | |
| "‘‘अप्पेव मं न विहेठेय्य।", | |
| "इङ्घ त्वं कस्सप अनुजानाहि अग्यागार’’न्ति।", | |
| "दिन्नन्ति नं विदित्वा।", | |
| "अभीतो", | |
| "दिस्वा इसिं पविट्ठं, अहिनागो दुम्मनो पधूपायि।", | |
| "सुमनमनसो अधिमनो", | |
| "मक्खञ्च", | |
| "तेजोधातुसु कुसलो, मनुस्सनागोपि तत्थ पज्जलि॥", | |
| "उभिन्नं सजोतिभूतानं।", | |
| "अग्यागारं आदित्तं होति सम्पज्जलितं सजोतिभूतं।", | |
| "उदिच्छरे जटिला।", | |
| "‘‘अभिरूपो वत भो महासमणो।", | |
| "नागेन विहेठियती’’ति भणन्ति॥", | |
| "अथ", | |
| "हता नागस्स अच्चियो होन्ति", | |
| "इद्धिमतो पन ठिता", | |
| "अनेकवण्णा अच्चियो होन्ति॥", | |
| "नीला अथ लोहितिका।", | |
| "मञ्जिट्ठा पीतका फलिकवण्णायो।", | |
| "अङ्गीरसस्स काये।", | |
| "अनेकवण्णा अच्चियो होन्ति॥", | |
| "पत्तम्हि", | |
| "अहिनागं ब्राह्मणस्स दस्सेसि।", | |
| "‘‘अयं ते कस्सप नागो।", | |
| "परियादिन्नो अस्स तेजसा तेजो’’ति॥", | |
| "‘‘किमेव दिस्वा उरुवेलवासि, पहासि अग्गिं किसकोवदानो।", | |
| "पुच्छामि तं कस्सप, एतमत्थं कथं पहीनं तव अग्गिहुत्तन्ति॥", | |
| "‘‘रूपे च सद्दे च अथो रसे च।", | |
| "कामित्थियो चाभिवदन्ति यञ्ञा।", | |
| "एतं मलन्ति उपधीसु ञत्वा।", | |
| "तस्मा न यिट्ठे न हुते अरञ्जिन्ति॥", | |
| "‘‘एत्थेव ते मनो न रमित्थ (कस्सपाति भगवा)।", | |
| "रूपेसु सद्देसु अथो रसेसु।", | |
| "अथ को चरहि देवमनुस्सलोके।", | |
| "रतो मनो कस्सप, ब्रूहि मेतन्ति॥", | |
| "‘‘दिस्वा", | |
| "अकिञ्चनं कामभवे असत्तं।", | |
| "अनञ्ञथाभाविमनञ्ञनेय्यं।", | |
| "तस्मा न यिट्ठे न हुते अरञ्जि’’न्ति॥", | |
| "‘‘दन्तो दन्तेहि सह पुराणजटिलेहि, विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
| "सिङ्गीनिक्खसवण्णो, राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
| "‘‘मुत्तो", | |
| "सिङ्गीनिक्खसवण्णो, राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
| "‘‘तिण्णो", | |
| "विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
| "सिङ्गीनिक्खसुवण्णो।", | |
| "राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
| "‘‘सन्तो सन्तेहि सह पुराणजटिलेहि।", | |
| "विप्पमुत्तो विप्पमुत्तेहि।", | |
| "सिङ्गीनिक्खसवण्णो।", | |
| "राजगहं पाविसि भगवा॥", | |
| "‘‘दसवासो दसबलो, दसधम्मविदू दसभि चुपेतो।", | |
| "सो दससतपरिवारो", | |
| "‘‘यो धीरो सब्बधि दन्तो, सुद्धो अप्पटिपुग्गलो।", | |
| "अरहं सुगतो लोके, तस्साहं परिचारको’’ति॥", | |
| "‘‘अप्पं", | |
| "अत्थेनेव मे अत्थो, किं काहसि ब्यञ्जनं बहु’’न्ति॥", | |
| "तेसञ्च यो निरोधो, एवंवादी महासमणो’’ति॥", | |
| "अदिट्ठं अब्भतीतं, बहुकेहि कप्पनहुतेहीति॥", | |
| "अप्पं वा बहुं वा भासस्सु, अत्थंयेव मे ब्रूहि।", | |
| "अत्थेनेव मे अत्थो, किं काहसि ब्यञ्जनं बहु’’न्ति॥", | |
| "‘‘ये धम्मा हेतुप्पभवा, तेसं हेतुं तथागतो आह।", | |
| "तेसञ्च यो निरोधो, एवंवादी महासमणो’’ति॥", | |
| "एसेव धम्मो यदि तावदेव, पच्चब्यत्थ पदमसोकं।", | |
| "अदिट्ठं अब्भतीतं, बहुकेहि कप्पनहुतेहीति॥", | |
| "गम्भीरे", | |
| "विमुत्ते अप्पत्ते वेळुवनं, अथ ने सत्था ब्याकासि॥", | |
| "एते द्वे सहायका, आगच्छन्ति कोलितो उपतिस्सो च।", | |
| "एतं मे सावकयुगं, भविस्सति अग्गं भद्दयुगन्ति॥", | |
| "‘‘आगतो", | |
| "सब्बे सञ्चये नेत्वान", | |
| "‘‘आगतो खो महासमणो, मागधानं गिरिब्बजं।", | |
| "सब्बे सञ्चये नेत्वान, कंसु दानि नयिस्सती’’ति॥", | |
| "‘‘नयन्ति वे महावीरा, सद्धम्मेन तथागता।", | |
| "धम्मेन नयमानानं", | |
| "‘‘आगतो खो महासमणो, मागधानं गिरिब्बजं।", | |
| "सब्बे सञ्चये नेत्वान, कंसु दानि नयिस्सती’’ति॥", | |
| "‘‘नयन्ति वे महावीरा, सद्धम्मेन तथागता।", | |
| "धम्मेन नयमानानं, का उसूया विजानत’’न्ति॥", | |
| "विनयम्हि महत्थेसु, पेसलानं सुखावहे।", | |
| "निग्गहानञ्च पापिच्छे, लज्जीनं पग्गहेसु च॥", | |
| "सासनाधारणे चेव, सब्बञ्ञुजिनगोचरे।", | |
| "अनञ्ञविसये खेमे, सुपञ्ञत्ते असंसये॥", | |
| "खन्धके विनये चेव, परिवारे च मातिके।", | |
| "यथात्थकारी कुसलो, पटिपज्जति योनिसो॥", | |
| "यो", | |
| "एवं", | |
| "पमुट्ठम्हि च सुत्तन्ते, अभिधम्मे च तावदे।", | |
| "विनये", | |
| "तस्मा सङ्गाहणाहेतुं", | |
| "पवक्खामि यथाञायं, सुणाथ मम भासतो॥", | |
| "वत्थु", | |
| "दुक्करं तं असेसेतुं, नयतो तं विजानथाति॥", | |
| "बोधि राजायतनञ्च, अजपालो सहम्पति।", | |
| "ब्रह्मा आळारो उदको, भिक्खु च उपको इसि॥", | |
| "कोण्डञ्ञो वप्पो भद्दियो, महानामो च अस्सजि।", | |
| "यसो चत्तारो पञ्ञास, सब्बे पेसेसि सो दिसा॥", | |
| "वत्थु मारेहि तिंसा च, उरुवेलं तयो जटी।", | |
| "अग्यागारं महाराजा, सक्को ब्रह्मा च केवला॥", | |
| "पंसुकूलं पोक्खरणी, सिला च ककुधो सिला।", | |
| "जम्बु", | |
| "फालियन्तु उज्जलन्तु, विज्झायन्तु च कस्सप।", | |
| "निमुज्जन्ति मुखी मेघो, गया लट्ठि च मागधो॥", | |
| "उपतिस्सो कोलितो च, अभिञ्ञाता च पब्बजुं।", | |
| "दुन्निवत्था पणामना, किसो लूखो च ब्राह्मणो॥", | |
| "अनाचारं आचरति, उदरं माणवो गणो।", | |
| "वस्सं बालेहि पक्कन्तो, दस वस्सानि निस्सयो॥", | |
| "न वत्तन्ति पणामेतुं, बाला पस्सद्धि पञ्च छ।", | |
| "यो सो अञ्ञो च नग्गो च, अच्छिन्नजटिलसाकियो॥", | |
| "मगधेसु पञ्चाबाधा, एको राजा", | |
| "मागधो च अनुञ्ञासि, कारा लिखि कसाहतो॥", | |
| "लक्खणा", | |
| "सद्धं कुलं कण्टको च, आहुन्दरिकमेव च॥", | |
| "वत्थुम्हि दारको सिक्खा, विहरन्ति च किं नु खो।", | |
| "सब्बं मुखं उपज्झाये, अपलाळन कण्टको॥", | |
| "पण्डको थेय्यपक्कन्तो, अहि च मातरी पिता।", | |
| "अरहन्तभिक्खुनीभेदा, रुहिरेन च ब्यञ्जनं॥", | |
| "अनुपज्झायसङ्घेन, गणपण्डकपत्तको।", | |
| "अचीवरं", | |
| "हत्था पादा हत्थपादा, कण्णा नासा तदूभयं।", | |
| "अङ्गुलिअळकण्डरं, फणं खुज्जञ्च वामनं॥", | |
| "गलगण्डी लक्खणा चेव, कसा लिखितसीपदी।", | |
| "पापपरिसदूसी च, काणं कुणि तथेव च॥", | |
| "खञ्जं", | |
| "जरान्धमूगबधिरं, अन्धमूगञ्च यं तहिं॥", | |
| "अन्धबधिरं यं वुत्तं, मूगबधिरमेव च।", | |
| "अन्धमूगबधिरञ्च, अलज्जीनञ्च निस्सयं॥", | |
| "वत्थब्बञ्च तथाद्धानं, याचमानेन लक्खणा", | |
| "आगच्छतु विवदन्ति, एकुपज्झायेन कस्सपो॥", | |
| "दिस्सन्ति उपसम्पन्ना, आबाधेहि च पीळिता।", | |
| "अननुसिट्ठा वित्थेन्ति, तत्थेव अनुसासना॥", | |
| "सङ्घेपि", | |
| "उल्लुम्पतुपसम्पदा, निस्सयो एकको तयोति॥", | |
| "तित्थिया बिम्बिसारो च, सन्निपतितुं तुण्हिका।", | |
| "धम्मं रहो पातिमोक्खं, देवसिकं तदा सकिं॥", | |
| "यथापरिसा समग्गं, सामग्गी मद्दकुच्छि च।", | |
| "सीमा महती नदिया, अनु द्वे खुद्दकानि च॥", | |
| "नवा", | |
| "सम्मन्ने", | |
| "असम्मता", | |
| "उदकुक्खेपो भिन्दन्ति, तथेवज्झोत्थरन्ति च॥", | |
| "कति", | |
| "धम्मं विनयं तज्जेन्ति, पुन विनयतज्जना॥", | |
| "चोदना कते ओकासे, अधम्मप्पटिक्कोसना।", | |
| "चतुपञ्चपरा आवि, सञ्चिच्च चेपि वायमे॥", | |
| "सगहट्ठा अनज्झिट्ठा, चोदनम्हि न जानति।", | |
| "सम्बहुला न जानन्ति, सज्जुकं न च गच्छरे॥", | |
| "कतिमी कीवतिका दूरे, आरोचेतुञ्च नस्सरि।", | |
| "उक्लापं आसनं दीपो, दिसा अञ्ञो बहुस्सुतो॥", | |
| "सज्जुकं", | |
| "गग्गो चतुतयो द्वेको, आपत्तिसभागा सरि॥", | |
| "सब्बो सङ्घो वेमतिको, न जानन्ति बहुस्सुतो।", | |
| "बहू समसमा थोका, परिसा अवुट्ठिताय च॥", | |
| "एकच्चा वुट्ठिता सब्बा, जानन्ति च वेमतिका।", | |
| "कप्पतेवाति कुक्कुच्चा, जानं पस्सं सुणन्ति च॥", | |
| "आवासिकेन आगन्तु, चातुपन्नरसो पुन।", | |
| "पाटिपदो पन्नरसो, लिङ्गसंवासका उभो॥", | |
| "पारिवासानुपोसथो", | |
| "एते विभत्ता उद्दाना, वत्थुविभूतकारणाति॥", | |
| "उपगन्तुं", | |
| "न इच्छन्ति च सञ्चिच्च, उक्कड्ढितुं उपासको॥", | |
| "गिलानो", | |
| "भिक्खुगतिको विहारो, वाळा चापि सरीसपा॥", | |
| "चोरो चेव पिसाचा च, दड्ढा तदुभयेन च।", | |
| "वूळ्होदकेन वुट्ठासि, बहुतरा च दायका॥", | |
| "लूखप्पणीतसप्पाय, भेसज्जुपट्ठकेन", | |
| "इत्थी वेसी कुमारी च, पण्डको ञातकेन च॥", | |
| "राजा चोरा धुत्ता निधि, भेदअट्ठविधेन", | |
| "वजसत्था च नावा च, सुसिरे विटभिया च॥", | |
| "अज्झोकासे", | |
| "छवकुटिका छत्ते च, चाटिया च उपेन्ति ते॥", | |
| "कतिका पटिस्सुणित्वा, बहिद्धा च उपोसथा।", | |
| "पुरिमिका पच्छिमिका, यथाञायेन योजये॥", | |
| "अकरणी पक्कमति, सकरणी तथेव च।", | |
| "द्वीहतीहा च पुन च", | |
| "सत्ताहनागता चेव, आगच्छेय्य न एय्य वा।", | |
| "वत्थुद्दाने अन्तरिका, तन्तिमग्गं निसामयेति॥", | |
| "वस्संवुट्ठा कोसलेसु, अगमुं सत्थु दस्सनं।", | |
| "अफासुं पसुसंवासं, अञ्ञमञ्ञानुलोमता॥", | |
| "पवारेन्ता पणामञ्च", | |
| "राजा चोरा च धुत्ता च, भिक्खुपच्चत्थिका तथा॥", | |
| "पञ्च चतुतयो द्वेको, आपन्नो वेमती सरि।", | |
| "सब्बो सङ्घो वेमतिको, बहू समा च थोकिका॥", | |
| "आवासिका", | |
| "गन्तब्बं", | |
| "सवरेहि खेपिता मेघो, अन्तरा च पवारणा।", | |
| "न इच्छन्ति पुरम्हाकं, अट्ठपिता च भिक्खुनो॥", | |
| "किम्हि वाति कतमञ्च, दिट्ठेन सुतसङ्काय।", | |
| "चोदको चुदितको च, थुल्लच्चयं वत्थु भण्डनं।", | |
| "पवारणासङ्गहो च, अनिस्सरो पवारयेति॥", | |
| "नेक्खम्मं", | |
| "अब्यापज्जाधिमुत्तस्स, उपादानक्खयस्स च॥", | |
| "तण्हक्खयाधिमुत्तस्स", | |
| "दिस्वा आयतनुप्पादं, सम्मा चित्तं विमुच्चति॥", | |
| "तस्स", | |
| "कतस्स पटिचयो नत्थि, करणीयं न विज्जति॥", | |
| "सेलो यथा एकग्घनो, वातेन न समीरति।", | |
| "एवं रूपा रसा सद्दा, गन्धा फस्सा च केवला॥", | |
| "इट्ठा धम्मा अनिट्ठा च, न पवेधेन्ति तादिनो।", | |
| "ठितं", | |
| "अरियो न रमती पापे, पापे न रमती सुची’’ति॥", | |
| "राजा च मागधो सोणो, असीतिसहस्सिस्सरो।", | |
| "सागतो गिज्झकूटस्मिं, बहुं दस्सेति उत्तरिं॥", | |
| "पब्बज्जारद्धभिज्जिंसु", | |
| "नीला पीता लोहितिका, मञ्जिट्ठा कण्हमेव च॥", | |
| "महारङ्गमहानामा, वद्धिका च पटिक्खिपि।", | |
| "खल्लका पुटपालि च, तूलतित्तिरमेण्डजा॥", | |
| "विच्छिका मोरचित्रा च, सीहब्यग्घा च दीपिका।", | |
| "अजिनुद्दा मज्जारी च, काळलुवकपरिक्खटा॥", | |
| "फलितुपाहना", | |
| "तालवेळुतिणं चेव, मुञ्जपब्बजहिन्ताला॥", | |
| "कमलकम्बलसोवण्णा", | |
| "फलिका कंसकाचा च, तिपुसीसञ्च तम्बका॥", | |
| "गावी यानं गिलानो च, पुरिसायुत्तसिविका।", | |
| "सयनानि महाचम्मा, गोचम्मेहि च पापको॥", | |
| "गिहीनं चम्मवद्धेहि, पविसन्ति गिलायनो।", | |
| "महाकच्चायनो सोणो, सरेन अट्ठकवग्गिकं॥", | |
| "उपसम्पदं पञ्चहि, गुणङ्गुणा धुवसिना।", | |
| "चम्मत्थरणानुञ्ञासि, न ताव गणनूपगं।", | |
| "अदासि मे वरे पञ्च, सोणत्थेरस्स नायकोति॥", | |
| "कालेन सक्कच्च ददाति यागुं।", | |
| "दसस्स ठानानि अनुप्पवेच्छति।", | |
| "आयुञ्च वण्णञ्च सुखं बलञ्च॥", | |
| "पटिभानमस्स", | |
| "खुद्दं पिपासञ्च ब्यपनेति वातं।", | |
| "सोधेति वत्थिं परिणामेति भुत्तं।", | |
| "भेसज्जमेतं सुगतेन वण्णितं॥", | |
| "तस्मा हि यागुं अलमेव दातुं।", | |
| "निच्चं मनुस्सेन सुखत्थिकेन।", | |
| "दिब्बानि", | |
| "मनुस्ससोभग्यतमिच्छता वाति॥", | |
| "‘‘यस्मिं पदेसे कप्पेति, वासं पण्डितजातियो।", | |
| "सीलवन्तेत्थ भोजेत्वा, सञ्ञते ब्रह्मचारयो", | |
| "‘‘या तत्थ देवता आसुं, तासं दक्खिणमादिसे।", | |
| "ता पूजिता पूजयन्ति, मानिता मानयन्ति नं॥", | |
| "‘‘ततो", | |
| "देवतानुकम्पितो पोसो, सदा भद्रानि पस्सती’’ति॥", | |
| "‘‘ये तरन्ति अण्णवं सरं।", | |
| "सेतुं कत्वान विसज्ज पल्ललानि।", | |
| "कुल्लञ्हि जनो बन्धति।", | |
| "तिण्णा मेधाविनो जना’’ति॥", | |
| "चतुन्नं", | |
| "संसितं दीघमद्धानं, तासु तास्वेव जातिसु॥", | |
| "तानि", | |
| "उच्छिन्नं मूलं दुक्खस्स, नत्थिदानि पुनब्भवोति॥", | |
| "‘‘अग्गिहुत्तमुखा यञ्ञा, सावित्ती छन्दसो मुखं।", | |
| "राजा मुखं मनुस्सानं, नदीनं सागरो मुखं॥", | |
| "‘‘नक्खत्तानं मुखं चन्दो, आदिच्चो तपतं मुखं।", | |
| "पुञ्ञं आकङ्खमानानं सङ्घो, वे यजतं मुख’’न्ति॥", | |
| "सारदिके", | |
| "कसावेहि पण्णं फलं, जतु लोणं छकणञ्च॥", | |
| "चुण्णं चालिनि मंसञ्च, अञ्जनं उपपिसनी", | |
| "अञ्जनी उच्चापारुता, सलाका सलाकठानिं", | |
| "थविकंसबद्धकं", | |
| "नत्थुकरणी धूमञ्च, नेत्तञ्चापिधनत्थवि॥", | |
| "तेलपाकेसु मज्जञ्च, अतिक्खित्तं अब्भञ्जनं।", | |
| "तुम्बं सेदं सम्भारञ्च, महा भङ्गोदकं तथा॥", | |
| "दककोट्ठं लोहितञ्च, विसाणं पादब्भञ्जनं।", | |
| "पज्जं सत्थं कसावञ्च, तिलकक्कं कबळिकं॥", | |
| "चोळं", | |
| "वणतेलं विकासिकं, विकटञ्च पटिग्गहं॥", | |
| "गूथं करोन्तो लोळिञ्च, खारं मुत्तहरीतकं।", | |
| "गन्धा विरेचनञ्चेव, अच्छाकटं कटाकटं॥", | |
| "पटिच्छादनि", | |
| "गुळं मुग्गं सोवीरञ्च, सामंपाका पुनापचे॥", | |
| "पुनानुञ्ञासि दुब्भिक्खे, फलञ्च तिलखादनी।", | |
| "पुरेभत्तं कायडाहो, निब्बत्तञ्च भगन्दलं॥", | |
| "वत्थिकम्मञ्च सुप्पिञ्च, मनुस्समंसमेव च।", | |
| "हत्थिअस्सा सुनखो च, अहि सीहञ्च दीपिकं", | |
| "अच्छतरच्छमंसञ्च, पटिपाटि च यागु च।", | |
| "तरुणं अञ्ञत्र गुळं, सुनिधावसथागारं॥", | |
| "गङ्गा कोटिसच्चकथा, अम्बपाली च लिच्छवी।", | |
| "उद्दिस्स कतं सुभिक्खं, पुनदेव पटिक्खिपि॥", | |
| "मेघो यसो मेण्डको, च गोरसं पाथेय्यकेन च।", | |
| "केणि अम्बो जम्बु चोच, मोचमधुमुद्दिकसालुकं॥", | |
| "फारुसका डाकपिट्ठं, आतुमायं नहापितो।", | |
| "सावत्थियं फलं बीजं, किस्मिं ठाने च कालिकेति॥", | |
| "तिंस", | |
| "वस्संवुट्ठोकपुण्णेहि, अगमुं जिनदस्सनं॥", | |
| "इदं वत्थु कथिनस्स, कप्पिस्सन्ति च पञ्चका।", | |
| "अनामन्ता असमाचारा, तथेव गणभोजनं॥", | |
| "यावदत्थञ्च उप्पादो, अत्थतानं भविस्सति।", | |
| "ञत्ति एवत्थतञ्चेव, एवञ्चेव अनत्थतं॥", | |
| "उल्लिखि धोवना चेव, विचारणञ्च छेदनं।", | |
| "बन्धनो वट्टि कण्डुस, दळ्हीकम्मानुवातिका॥", | |
| "परिभण्डं", | |
| "कुक्कु सन्निधि निस्सग्गि, न कप्पञ्ञत्र ते तयो॥", | |
| "अञ्ञत्र पञ्चातिरेके, सञ्छिन्नेन समण्डली।", | |
| "नाञ्ञत्र पुग्गला सम्मा, निस्सीमट्ठोनुमोदति॥", | |
| "कथिनानत्थतं होति, एवं बुद्धेन देसितं।", | |
| "अहताकप्पपिलोति, पंसु पापणिकाय च॥", | |
| "अनिमित्तापरिकथा, अकुक्कु च असन्निधि।", | |
| "अनिस्सग्गि कप्पकते, तथा तिचीवरेन च॥", | |
| "पञ्चके वातिरेके वा, छिन्ने समण्डलीकते।", | |
| "पुग्गलस्सत्थारा", | |
| "एवं", | |
| "पक्कमनन्ति निट्ठानं, सन्निट्ठानञ्च नासनं॥", | |
| "सवनं", | |
| "कतचीवरमादाय, ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति गच्छति॥", | |
| "तस्स तं कथिनुद्धारा,ए होति पक्कमनन्तिको।", | |
| "आदाय चीवरं याति, निस्सीमे इदं चिन्तयि॥", | |
| "‘‘कारेस्सं न पच्चेस्स’’न्ति, निट्ठाने कथिनुद्धारो।", | |
| "आदाय निस्सीमं नेव, ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति मानसो॥", | |
| "तस्स तं कथिनुद्धारो, सन्निट्ठानन्तिको भवे।", | |
| "आदाय चीवरं याति, निस्सीमे इदं चिन्तयि॥", | |
| "‘‘कारेस्सं न पच्चेस्स’’न्ति, कयिरं तस्स नस्सति।", | |
| "तस्स तं कथिनुद्धारो, भवति नासनन्तिको॥", | |
| "आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं।", | |
| "कतचीवरो सुणाति, उब्भतं कथिनं तहिं॥", | |
| "तस्स तं कथिनुद्धारो, भवति सवनन्तिको।", | |
| "आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं॥", | |
| "कतचीवरो बहिद्धा, नामेति कथिनुद्धारं।", | |
| "तस्स तं कथिनुद्धारो, सीमातिक्कन्तिको भवे॥", | |
| "आदाय याति ‘‘पच्चेस्सं’’, बहि कारेति चीवरं।", | |
| "कतचीवरो", | |
| "तस्स", | |
| "आदाय च समादाय, सत्त-सत्तविधा गति॥", | |
| "पक्कमनन्तिका नत्थि, छक्के विप्पकते", | |
| "आदाय निस्सीमगतं, कारेस्सं इति जायति॥", | |
| "निट्ठानं सन्निट्ठानञ्च, नासनञ्च इमे तयो।", | |
| "आदाय ‘‘न पच्चेस्स’’न्ति, बहिसीमे करोमिति॥", | |
| "निट्ठानं सन्निट्ठानम्पि, नासनम्पि इदं तयो।", | |
| "अनधिट्ठितेन नेवस्स, हेट्ठा तीणि नयाविधि॥", | |
| "आदाय", | |
| "‘‘न पच्चेस्स’’न्ति कारेति, निट्ठाने कथिनुद्धारो॥", | |
| "सन्निट्ठानं नासनञ्च, सवनसीमातिक्कमा।", | |
| "सह भिक्खूहि जायेथ, एवं पन्नरसं गति॥", | |
| "समादाय विप्पकता, समादाय पुना तथा।", | |
| "इमे ते चतुरो वारा, सब्बे पन्नरसविधि॥", | |
| "अनासाय च आसाय, करणीयो च ते तयो।", | |
| "नयतो तं विजानेय्य, तयो द्वादस द्वादस॥", | |
| "अपविलाना नवेत्थ", | |
| "पलिबोधापलिबोधा, उद्दानं नयतो कतन्ति॥", | |
| "‘‘या अन्नपानं ददतिप्पमोदिता।", | |
| "सीलूपपन्ना सुगतस्स साविका।", | |
| "ददाति दानं अभिभुय्य मच्छरं।", | |
| "सोवग्गिकं सोकनुदं सुखावहं॥", | |
| "‘‘दिब्बं सा लभते आयुं", | |
| "आगम्म मग्गं विरजं अनङ्गणं।", | |
| "सा पुञ्ञकामा सुखिनी अनामया।", | |
| "सग्गम्हि कायम्हि चिरं पमोदती’’ति॥", | |
| "राजगहको", | |
| "पुन राजगहं गन्त्वा, रञ्ञो तं पटिवेदयि॥", | |
| "पुत्तो", | |
| "जीवतीति कुमारेन, सङ्खातो जीवको इति॥", | |
| "सो हि तक्कसीलं गन्त्वा, उग्गहेत्वा महाभिसो।", | |
| "सत्तवस्सिकआबाधं, नत्थुकम्मेन नासयि॥", | |
| "रञ्ञो", | |
| "ममञ्च इत्थागारञ्च, बुद्धसङ्घं चुपट्ठहि॥", | |
| "राजगहको च सेट्ठि, अन्तगण्ठि तिकिच्छितं।", | |
| "पज्जोतस्स महारोगं, घतपानेन नासयि॥", | |
| "अधिकारञ्च सिवेय्यं, अभिसन्नं सिनेहति।", | |
| "तीहि उप्पलहत्थेहि, समत्तिंसविरेचनं॥", | |
| "पकतत्तं वरं याचि, सिवेय्यञ्च पटिग्गहि।", | |
| "चीवरञ्च गिहिदानं, अनुञ्ञासि तथागतो॥", | |
| "राजगहे जनपदे बहुं, उप्पज्जि चीवरं।", | |
| "पावारो कोसियञ्चेव, कोजवो अड्ढकासिकं॥", | |
| "उच्चावचा च सन्तुट्ठि, नागमेसागमेसुं च।", | |
| "पठमं पच्छा सदिसा, कतिका च पटिहरुं॥", | |
| "भण्डागारं अगुत्तञ्च, वुट्ठापेन्ति तथेव च।", | |
| "उस्सन्नं कोलाहलञ्च, कथं भाजे कथं ददे॥", | |
| "सकातिरेकभागेन, पटिवीसो कथं ददे।", | |
| "छकणेन", | |
| "आरोपेन्ता भाजनञ्च, पातिया च छमाय च।", | |
| "उपचिकामज्झे जीरन्ति, एकतो पत्थिन्नेन च॥", | |
| "फरुसाच्छिन्नच्छिबन्धा", | |
| "वीमंसित्वा सक्यमुनि, अनुञ्ञासि तिचीवरं॥", | |
| "अञ्ञेन", | |
| "चातुद्दीपो वरं याचि, दातुं वस्सिकसाटिकं॥", | |
| "आगन्तुगमिगिलानं, उपट्ठाकञ्च भेसज्जं।", | |
| "धुवं उदकसाटिञ्च, पणीतं अतिखुद्दकं॥", | |
| "थुल्लकच्छुमुखं खोमं, परिपुण्णं अधिट्ठानं।", | |
| "पच्छिमं कतो गरुको, विकण्णो सुत्तमोकिरि॥", | |
| "लुज्जन्ति", | |
| "अन्धवने अस्सतिया, एको वस्सं उतुम्हि च॥", | |
| "द्वे भातुका राजगहे, उपनन्दो पुन द्विसु।", | |
| "कुच्छिविकारो गिलानो, उभो चेव गिलानका", | |
| "नग्गा कुसा वाकचीरं, फलको केसकम्बलं।", | |
| "वाळउलूकपक्खञ्च, अजिनं अक्कनाळकं॥", | |
| "पोत्थकं नीलपीतञ्च, लोहितं मञ्जिट्ठेन च।", | |
| "कण्हा महारङ्गनाम, अच्छिन्नदसिका तथा॥", | |
| "दीघपुप्फफणदसा", | |
| "अनुप्पन्ने पक्कमति, सङ्घो भिज्जति तावदे॥", | |
| "पक्खे ददन्ति सङ्घस्स, आयस्मा रेवतो पहि।", | |
| "विस्सासगाहाधिट्ठाति, अट्ठ चीवरमातिकाति॥", | |
| "चम्पायं", | |
| "आगन्तुकानमुस्सुक्कं, अकासि इच्छितब्बके", | |
| "पकतञ्ञुनोति ञत्वा, उस्सुक्कं न करी तदा।", | |
| "उक्खित्तो", | |
| "अधम्मेन", | |
| "धम्मेन वग्गकम्मञ्च, पतिरूपकेन वग्गिकं॥", | |
| "पतिरूपकेन समग्गं, एको उक्खिपतेककं।", | |
| "एको च द्वे सम्बहुले, सङ्घं उक्खिपतेकको॥", | |
| "दुवेपि सम्बहुलापि, सङ्घो सङ्घञ्च उक्खिपि।", | |
| "सब्बञ्ञुपवरो सुत्वा, अधम्मन्ति पटिक्खिपि॥", | |
| "ञत्तिविपन्नं यं कम्मं, सम्पन्नं अनुसावनं।", | |
| "अनुस्सावनविपन्नं, सम्पन्नं ञत्तिया च यं॥", | |
| "उभयेन विपन्नञ्च, अञ्ञत्र धम्ममेव च।", | |
| "विनया सत्थु पटिकुट्ठं, कुप्पं अट्ठानारहिकं॥", | |
| "अधम्मवग्गं", | |
| "धम्मेनेव च सामग्गिं, अनुञ्ञासि तथागतो॥", | |
| "चतुवग्गो पञ्चवग्गो, दसवग्गो च वीसति।", | |
| "परोवीसतिवग्गो च", | |
| "ठपेत्वा उपसम्पदं, यञ्च कम्मं पवारणं।", | |
| "अब्भानकम्मेन सह, चतुवग्गेहि कम्मिको॥", | |
| "दुवे कम्मे ठपेत्वान, मज्झदेसूपसम्पदं।", | |
| "अब्भानं पञ्चवग्गिको, सब्बकम्मेसु कम्मिको॥", | |
| "अब्भानेकं ठपेत्वान, ये भिक्खू दसवग्गिका।", | |
| "सब्बकम्मकरो", | |
| "भिक्खुनी", | |
| "पच्चक्खातन्तिमवत्थू, उक्खित्तापत्तिदस्सने॥", | |
| "अप्पटिकम्मे दिट्ठिया, पण्डको थेय्यसंवासकं।", | |
| "तित्थिया तिरच्छानगतं, मातु पितु च घातकं॥", | |
| "अरहं भिक्खुनीदूसि, भेदकं लोहितुप्पादं।", | |
| "ब्यञ्जनं नानासंवासं, नानासीमाय इद्धिया॥", | |
| "यस्स सङ्घो करे कम्मं, होन्तेते चतुवीसति।", | |
| "सम्बुद्धेन पटिक्खित्ता, न हेते गणपूरका॥", | |
| "पारिवासिकचतुत्थो, परिवासं ददेय्य वा।", | |
| "मूला मानत्तमब्भेय्य, अकम्मं न च करणं॥", | |
| "मूला", | |
| "न कम्मकारका पञ्च, सम्बुद्धेन पकासिता॥", | |
| "भिक्खुनी सिक्खमाना च, सामणेरो सामणेरिका।", | |
| "पच्चक्खन्तिमउम्मत्ता, खित्तावेदनदस्सने॥", | |
| "अप्पटिकम्मे दिट्ठिया, पण्डकापि च ब्यञ्जना", | |
| "नानासंवासका सीमा, वेहासं यस्स कम्म च॥", | |
| "अट्ठारसन्नमेतेसं,", | |
| "भिक्खुस्स पकतत्तस्स, रुहति पटिक्कोसना॥", | |
| "सुद्धस्स दुन्निसारितो, बालो हि सुनिस्सारितो।", | |
| "पण्डको थेय्यसंवासो, पक्कन्तो तिरच्छानगतो॥", | |
| "मातु पितु अरहन्त, दूसको सङ्घभेदको।", | |
| "लोहितुप्पादको चेव, उभतोब्यञ्जनो च यो॥", | |
| "एकादसन्नं एतेसं, ओसारणं न युज्जति।", | |
| "हत्थपादं तदुभयं, कण्णनासं तदूभयं॥", | |
| "अङ्गुलि अळकण्डरं, फणं खुज्जो च वामनो।", | |
| "गण्डी लक्खणकसा, च लिखितको च सीपदी॥", | |
| "पापा", | |
| "इरियापथदुब्बलो, अन्धो मूगो च बधिरो॥", | |
| "अन्धमूगन्धबधिरो मूगबधिरमेव च।", | |
| "अन्धमूगबधिरो च, द्वत्तिंसेते अनूनका॥", | |
| "तेसं", | |
| "दट्ठब्बा पटिकातब्बा, निस्सज्जेता न विज्जति॥", | |
| "तस्स उक्खेपना कम्मा, सत्त होन्ति अधम्मिका।", | |
| "आपन्नं अनुवत्तन्तं, सत्त तेपि अधम्मिका॥", | |
| "आपन्नं नानुवत्तन्तं, सत्त कम्मा सुधम्मिका।", | |
| "सम्मुखा पटिपुच्छा च, पटिञ्ञाय च कारणा॥", | |
| "सति", | |
| "पब्बाजनीय पटिसारो, उक्खेपपरिवास च॥", | |
| "मूला मानत्तअब्भाना, तथेव उपसम्पदा।", | |
| "अञ्ञं करेय्य अञ्ञस्स, सोळसेते अधम्मिका॥", | |
| "तं तं करेय्य तं तस्स, सोळसेते सुधम्मिका।", | |
| "पच्चारोपेय्य अञ्ञञ्ञं, सोळसेते अधम्मिका॥", | |
| "द्वे द्वे तम्मूलकं तस्स", | |
| "एकेकमूलकं चक्कं, ‘‘अधम्म’’न्ति जिनोब्रवि॥", | |
| "अकासि तज्जनीयं कम्मं, सङ्घो भण्डनकारको।", | |
| "अधम्मेन वग्गकम्मं, अञ्ञं आवासं गच्छि सो॥", | |
| "तत्थाधम्मेन समग्गा, तस्स तज्जनीयं करुं।", | |
| "अञ्ञत्थ वग्गाधम्मेन, तस्स तज्जनीयं करुं॥", | |
| "पतिरूपेन वग्गापि, समग्गापि तथा करुं।", | |
| "अधम्मेन समग्गा च, धम्मेन वग्गमेव च॥", | |
| "पतिरूपकेन वग्गा च, समग्गा च इमे पदा।", | |
| "एकेकमूलकं कत्वा, चक्कं बन्धे विचक्खणो॥", | |
| "बाला", | |
| "पटिसारणीयं कम्मं, करे अक्कोसकस्स च॥", | |
| "अदस्सनाप्पटिकम्मे", | |
| "तेसं उक्खेपनीयकम्मं, सत्थवाहेन भासितं॥", | |
| "उपरि", | |
| "तेसंयेव अनुलोमं, सम्मा वत्तति याचिते", | |
| "पस्सद्धि तेसं कम्मानं, हेट्ठा कम्मनयेन च।", | |
| "तस्मिं तस्मिं तु कम्मेसु, तत्रट्ठो च विवदति॥", | |
| "अकतं दुक्कटञ्चेव, पुनकातब्बकन्ति च।", | |
| "कम्मे पस्सद्धिया चापि, ते भिक्खू धम्मवादिनो॥", | |
| "विपत्तिब्याधिते दिस्वा, कम्मप्पत्ते महामुनि।", | |
| "पटिप्पस्सद्धिमक्खासि, सल्लकत्तोव ओसधन्ति॥", | |
| "सङ्घस्मिं भिज्जमानस्मिं, नाञ्ञं भिय्यो अमञ्ञरुं॥", | |
| "याविच्छन्ति मुखायामं, येन नीता न तं विदू॥", | |
| "ये", | |
| "ये च तं नुपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति॥", | |
| "अवेरेन च सम्मन्ति, एसधम्मो सनन्तनो॥", | |
| "ये च तत्थ विजानन्ति, ततो सम्मन्ति मेधगा॥", | |
| "रट्ठं विलुम्पमानानं, तेसम्पि होति सङ्गति॥", | |
| "‘‘कस्मा तुम्हाक नो सिया।", | |
| "सद्धिंचरं साधुविहारि धीरं।", | |
| "अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि।", | |
| "चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा॥", | |
| "सद्धिं चरं साधुविहारि धीरं।", | |
| "राजाव रट्ठं विजितं पहाय।", | |
| "एको चरे मातङ्गरञ्ञेव नागो॥", | |
| "नत्थि बाले सहायता।", | |
| "एको", | |
| "अप्पोस्सुक्को मातङ्गरञ्ञेव नागो’’ति॥", | |
| "समेति चित्तं चित्तेन, यदेको रमती वने’’ति॥", | |
| "‘‘सङ्घस्स", | |
| "अत्थेसु जातेसु विनिच्छयेसु च।", | |
| "कथंपकारोध नरो महत्थिको।", | |
| "भिक्खु कथं होतिध पग्गहारहोति॥", | |
| "‘‘अनानुवज्जो", | |
| "अवेक्खिताचारो सुसंवुतिन्द्रियो।", | |
| "पच्चत्थिका नूपवदन्ति धम्मतो।", | |
| "न हिस्स तं होति वदेय्यु येन नं॥", | |
| "‘‘सो तादिसो सीलविसुद्धिया ठितो।", | |
| "विसारदो होति विसय्ह भासति।", | |
| "नच्छम्भति परिसगतो न वेधति।", | |
| "अत्थं न हापेति अनुय्युतं भणं॥", | |
| "‘‘तथेव पञ्हं परिसासु पुच्छितो।", | |
| "न चेव पज्झायति न मङ्कु होति।", | |
| "सो कालागतं ब्याकरणारहं वचो।", | |
| "रञ्जेति विञ्ञूपरिसं विचक्खणो॥", | |
| "‘‘सगारवो वुड्ढतरेसु भिक्खुसु।", | |
| "आचेरकम्हि च सके विसारदो।", | |
| "अलं पमेतुं पगुणो कथेतवे।", | |
| "पच्चत्थिकानञ्च विरद्धिकोविदो॥", | |
| "‘‘पच्चत्थिका", | |
| "महाजनो सञ्ञपनञ्च गच्छति।", | |
| "सकञ्च", | |
| "वियाकरं", | |
| "‘‘दूतेय्यकम्मेसु", | |
| "सङ्घस्स किच्चेसु च आहु नं यथा।", | |
| "करं वचो भिक्खुगणेन पेसितो।", | |
| "अहं करोमीति न तेन मञ्ञति॥", | |
| "‘‘आपज्जति यावतकेसु वत्थुसु।", | |
| "आपत्तिया होति यथा च वुट्ठिति।", | |
| "एते विभङ्गा उभयस्स स्वागता।", | |
| "आपत्ति वुट्ठानपदस्स कोविदो॥", | |
| "‘‘निस्सारणं गच्छति यानि चाचरं।", | |
| "निस्सारितो होति यथा च वत्तना", | |
| "ओसारणं तंवुसितस्स जन्तुनो।", | |
| "एतम्पि जानाति विभङ्गकोविदो॥", | |
| "‘‘सगारवो वुड्ढतरेसु भिक्खुसु।", | |
| "नवेसु थेरेसु च मज्झिमेसु च।", | |
| "महाजनस्सत्थचरोध पण्डितो।", | |
| "सो तादिसो भिक्खु इध पग्गहारहो’’ति॥", | |
| "कोसम्बियं", | |
| "नुक्खिपेय्य यस्मिं तस्मिं, सद्धायापत्ति देसये॥", | |
| "अन्तोसीमायं", | |
| "पालिलेय्या च सावत्थि, सारिपुत्तो च कोलितो॥", | |
| "महाकस्सपकच्चाना, कोट्ठिको कप्पिनेन च।", | |
| "महाचुन्दो च अनुरुद्धो, रेवतो उपालि चुभो॥", | |
| "आनन्दो", | |
| "सेनासनं विवित्तञ्च, आमिसं समकम्पि च॥", | |
| "न केहि छन्दो दातब्बो, उपालिपरिपुच्छितो।", | |
| "अनानुवज्जो सीलेन, सामग्गी जिनसासनेति॥" | |
| ] | |
| } |