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| "title": "३. युधञ्जयवग्गो", | |
| "book_name": "३. युधञ्जयवग्गो", | |
| "chapter": "२. हत्थिनागवग्गो", | |
| "gathas": [ | |
| "‘‘कप्पे", | |
| "एत्थन्तरे यं चरितं, सब्बं तं बोधिपाचनं॥", | |
| "‘‘अतीतकप्पे चरितं, ठपयित्वा भवाभवे।", | |
| "इमम्हि कप्पे चरितं, पवक्खिस्सं सुणोहि मे॥", | |
| "‘‘यदा अहं ब्रहारञ्ञे, सुञ्ञे विपिनकानने।", | |
| "अज्झोगाहेत्वा", | |
| "‘‘तदा", | |
| "धारेन्तो ब्राह्मणवण्णं, भिक्खाय मं उपागमि॥", | |
| "‘‘पवना आभतं पण्णं, अतेलञ्च अलोणिकं।", | |
| "मम द्वारे ठितं दिस्वा, सकटाहेन आकिरिं॥", | |
| "‘‘तस्स दत्वानहं पण्णं, निक्कुज्जित्वान भाजनं।", | |
| "पुनेसनं जहित्वान, पाविसिं पण्णसालकं॥", | |
| "‘‘दुतियम्पि", | |
| "अकम्पितो अनोलग्गो, एवमेवमदासहं॥", | |
| "‘‘न", | |
| "पीतिसुखेन रतिया, वीतिनामेमि तं दिवं॥", | |
| "‘‘यदि मासम्पि द्वेमासं, दक्खिणेय्यं वरं लभे।", | |
| "अकम्पितो अनोलीनो, ददेय्यं दानमुत्तमं॥", | |
| "‘‘न तस्स दानं ददमानो, यसं लाभञ्च पत्थयिं।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पत्थयानो, तानि कम्मानि आचरि’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "महासमुद्दं तरितुकामो, उपगच्छामि पट्टनं॥", | |
| "‘‘तत्थद्दसं पटिपथे, सयम्भुं अपराजितं।", | |
| "कन्तारद्धानं पटिपन्नं", | |
| "‘‘तमहं पटिपथे दिस्वा, इममत्थं विचिन्तयिं।", | |
| "‘इदं खेत्तं अनुप्पत्तं, पुञ्ञकामस्स जन्तुनो॥", | |
| "‘‘‘यथा कस्सको पुरिसो, खेत्तं दिस्वा महागमं।", | |
| "तत्थ बीजं न रोपेति, न सो धञ्ञेन अत्थिको॥", | |
| "‘‘‘एवमेवाहं", | |
| "यदि तत्थ कारं न करोमि, नाहं पुञ्ञेन अत्थिको॥", | |
| "‘‘‘यथा अमच्चो मुद्दिकामो, रञ्ञो अन्तेपुरे जने।", | |
| "न देति तेसं धनधञ्ञं, मुद्दितो परिहायति॥", | |
| "‘‘‘एवमेवाहं पुञ्ञकामो, विपुलं दिस्वान दक्खिणं।", | |
| "यदि तस्स दानं न ददामि, परिहायिस्सामि पुञ्ञतो’॥", | |
| "‘‘एवाहं चिन्तयित्वान, ओरोहित्वा उपाहना।", | |
| "तस्स पादानि वन्दित्वा, अदासिं छत्तुपाहनं॥", | |
| "‘‘तेनेवाहं", | |
| "अपि च दानं परिपूरेन्तो, एवं तस्स अदासह’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, इन्दपत्थे", | |
| "राजा धनञ्चयो नाम, कुसले दसहुपागतो॥", | |
| "‘‘कलिङ्गरट्ठविसया, ब्राह्मणा उपगञ्छु मं।", | |
| "आयाचुं मं हत्थिनागं, धञ्ञं मङ्गलसम्मतं॥", | |
| "‘‘‘अवुट्ठिको जनपदो, दुब्भिक्खो छातको महा।", | |
| "ददाहि पवरं नागं, नीलं अञ्जनसव्हयं॥", | |
| "‘‘‘न", | |
| "मा मे भिज्जि समादानं, दस्सामि विपुलं गजं’॥", | |
| "‘‘नागं गहेत्वा सोण्डाय, भिङ्गारे", | |
| "जलं हत्थे आकिरित्वा, ब्राह्मणानं अदं गजं॥", | |
| "‘‘तस्स नागे पदिन्नम्हि, अमच्चा एतदब्रवुं।", | |
| "‘किं नु तुय्हं वरं नागं, याचकानं पदस्ससि॥", | |
| "‘‘‘धञ्ञं", | |
| "तस्मिं नागे पदिन्नम्हि, किं ते रज्जं करिस्सति॥", | |
| "‘‘‘रज्जम्पि मे ददे सब्बं, सरीरं दज्जमत्तनो।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा नागं अदासह’’’न्ति॥", | |
| "‘‘कुसावतिम्हि नगरे, यदा आसिं महीपति।", | |
| "महासुदस्सनो नाम, चक्कवत्ती महब्बलो॥", | |
| "‘‘तत्थाहं", | |
| "‘को किं इच्छति पत्थेति, कस्स किं दीयतू धनं॥", | |
| "‘‘‘को छातको को तसितो, को मालं को विलेपनं।", | |
| "नानारत्तानि वत्थानि, को नग्गो परिदहिस्सति॥", | |
| "‘‘‘को पथे छत्तमादेति, कोपाहना मुदू सुभा’।", | |
| "इति", | |
| "‘‘न तं दससु ठानेसु, नपि ठानसतेसु वा।", | |
| "अनेकसतठानेसु, पटियत्तं याचके धनं॥", | |
| "‘‘दिवा वा यदि वा रत्तिं, यदि एति वनिब्बको।", | |
| "लद्धा यदिच्छकं भोगं, पूरहत्थोव गच्छति॥", | |
| "‘‘एवरूपं महादानं, अदासिं यावजीविकं।", | |
| "नपाहं देस्सं धनं दम्मि, नपि नत्थि निचयो मयि॥", | |
| "‘‘यथापि आतुरो नाम, रोगतो परिमुत्तिया।", | |
| "धनेन वेज्जं तप्पेत्वा, रोगतो परिमुच्चति॥", | |
| "‘‘तथेवाहं जानमानो, परिपूरेतुमसेसतो।", | |
| "ऊनमनं पूरयितुं, देमि दानं वनिब्बके।", | |
| "निरालयो अपच्चासो, सम्बोधिमनुपत्तिया’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "पूजितो नरदेवेहि, महागोविन्दब्राह्मणो॥", | |
| "‘‘तदाहं सत्तरज्जेसु, यं मे आसि उपायनं।", | |
| "तेन देमि महादानं, अक्खोब्भं", | |
| "‘‘न", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा देमि वरं धन’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, मिथिलायं पुरुत्तमे।", | |
| "निमि नाम महाराजा, पण्डितो कुसलत्थिको॥", | |
| "‘‘तदाहं मापयित्वान, चतुस्सालं चतुम्मुखं।", | |
| "तत्थ दानं पवत्तेसिं, मिगपक्खिनरादिनं॥", | |
| "‘‘अच्छादनञ्च सयनं, अन्नं पानञ्च भोजनं।", | |
| "अब्बोच्छिन्नं करित्वान, महादानं पवत्तयिं॥", | |
| "‘‘यथापि सेवको सामिं, धनहेतुमुपागतो।", | |
| "कायेन वाचा मनसा, आराधनीयमेसति॥", | |
| "‘‘तथेवाहं सब्बभवे, परियेसिस्सामि बोधिजं।", | |
| "दानेन सत्ते तप्पेत्वा, इच्छामि बोधिमुत्तम’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "नगरे पुप्फवतिया, कुमारो चन्दसव्हयो॥", | |
| "‘‘तदाहं", | |
| "संवेगं जनयित्वान, महादानं पवत्तयिं॥", | |
| "‘‘नाहं पिवामि खादामि, नपि भुञ्जामि भोजनं।", | |
| "दक्खिणेय्ये अदत्वान, अपि छप्पञ्चरत्तियो॥", | |
| "‘‘यथापि", | |
| "यत्थ लाभो महा होति, तत्थ तं", | |
| "‘‘तथेव सकभुत्तापि, परे दिन्नं महप्फलं।", | |
| "तस्मा परस्स दातब्बं, सतभागो भविस्सति॥", | |
| "‘‘एतमत्थवसं ञत्वा, देमि दानं भवाभवे।", | |
| "न पटिक्कमामि दानतो, सम्बोधिमनुपत्तिया’’ति॥", | |
| "‘‘अरिट्ठसव्हये नगरे, सिविनामासि खत्तियो।", | |
| "निसज्ज पासादवरे, एवं चिन्तेसहं तदा॥", | |
| "‘‘‘यं किञ्चि मानुसं दानं, अदिन्नं मे न विज्जति।", | |
| "योपि याचेय्य मं चक्खुं, ददेय्यं अविकम्पितो’॥", | |
| "‘‘मम सङ्कप्पमञ्ञाय, सक्को देवानमिस्सरो।", | |
| "निसिन्नो देवपरिसाय, इदं वचनमब्रवि॥", | |
| "‘‘‘निसज्ज", | |
| "चिन्तेन्तो विविधं दानं, अदेय्यं सो न पस्सति॥", | |
| "‘‘‘तथं", | |
| "मुहुत्तं आगमेय्याथ, याव जानामि तं मनं’॥", | |
| "‘‘पवेधमानो पलितसिरो, वलिगत्तो", | |
| "अन्धवण्णोव हुत्वान, राजानं उपसङ्कमि॥", | |
| "‘‘सो", | |
| "सिरस्मिं अञ्जलिं कत्वा, इदं वचनमब्रवि॥", | |
| "‘‘‘याचामि तं महाराज, धम्मिक रट्ठवड्ढन।", | |
| "तव दानरता कित्ति, उग्गता देवमानुसे॥", | |
| "‘‘‘उभोपि", | |
| "एकं मे नयनं देहि, त्वम्पि एकेन यापय’॥", | |
| "‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, हट्ठो संविग्गमानसो।", | |
| "कतञ्जली वेदजातो, इदं वचनमब्रविं॥", | |
| "‘‘‘इदानाहं चिन्तयित्वान, पासादतो इधागतो।", | |
| "त्वं मम चित्तमञ्ञाय, नेत्तं याचितुमागतो॥", | |
| "‘‘‘अहो मे मानसं सिद्धं, सङ्कप्पो परिपूरितो।", | |
| "अदिन्नपुब्बं दानवरं, अज्ज दस्सामि याचके॥", | |
| "‘‘‘एहि सिवक उट्ठेहि, मा दन्धयि मा पवेधयि।", | |
| "उभोपि नयनं देहि, उप्पाटेत्वा वणिब्बके’॥", | |
| "‘‘ततो", | |
| "उद्धरित्वान पादासि, तालमिञ्जंव याचके॥", | |
| "‘‘ददमानस्स देन्तस्स, दिन्नदानस्स मे सतो।", | |
| "चित्तस्स अञ्ञथा नत्थि, बोधियायेव कारणा॥", | |
| "‘‘न मे देस्सा उभो चक्खू, अत्ता न मे न देस्सियो।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा चक्खुं अदासह’’न्ति॥", | |
| "‘‘या", | |
| "सा अतीतासु जातीसु, सक्कस्स महेसी पिया॥", | |
| "‘‘तस्सा आयुक्खयं ञत्वा, देविन्दो एतदब्रवि।", | |
| "‘ददामि ते दस वरे, वरभद्दे यदिच्छसि’॥", | |
| "‘‘एवं वुत्ता च सा देवी, सक्कं पुनिदमब्रवि।", | |
| "‘किं नु मे अपराधत्थि, किं नु देस्सा अहं तव।", | |
| "रम्मा चावेसि मं ठाना, वातोव धरणीरुहं’॥", | |
| "‘‘एवं", | |
| "‘न चेव ते कतं पापं, न च मे त्वंसि अप्पिया॥", | |
| "‘‘‘एत्तकंयेव", | |
| "पटिग्गण्ह मया दिन्ने, वरे दस वरुत्तमे’॥", | |
| "‘‘सक्केन", | |
| "ममं अब्भन्तरं कत्वा, फुस्सती दस वरे वरी॥", | |
| "‘‘ततो चुता सा फुस्सती, खत्तिये उपपज्जथ।", | |
| "जेतुत्तरम्हि नगरे, सञ्जयेन समागमि॥", | |
| "‘‘यदाहं फुस्सतिया कुच्छिं, ओक्कन्तो पियमातुया।", | |
| "मम तेजेन मे माता, सदा दानरता अहु॥", | |
| "‘‘अधने आतुरे जिण्णे, याचके अद्धिके", | |
| "समणे ब्राह्मणे खीणे, देति दानं अकिञ्चने॥", | |
| "‘‘दस मासे धारयित्वान, करोन्ते पुरं पदक्खिणं।", | |
| "वेस्सानं वीथिया मज्झे, जनेसि फुस्सती ममं॥", | |
| "‘‘न मय्हं मत्तिकं नामं, नपि पेत्तिकसम्भवं।", | |
| "जातेत्थ वेस्सवीथिया, तस्मा वेस्सन्तरो अहु॥", | |
| "‘‘यदाहं दारको होमि, जातिया अट्ठवस्सिको।", | |
| "तदा निसज्ज पासादे, दानं दातुं विचिन्तयिं॥", | |
| "‘‘‘हदयं", | |
| "ददेय्यं कायं सावेत्वा, यदि कोचि याचये ममं’॥", | |
| "‘‘सभावं चिन्तयन्तस्स, अकम्पितमसण्ठितं।", | |
| "अकम्पि तत्थ पथवी, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘अन्वद्धमासे पन्नरसे, पुण्णमासे उपोसथे।", | |
| "पच्चयं नागमारुय्ह, दानं दातुं उपागमिं॥", | |
| "‘‘कलिङ्गरट्ठविसया", | |
| "अयाचुं मं हत्थिनागं, धञ्ञं मङ्गलसम्मतं॥", | |
| "‘‘अवुट्ठिको", | |
| "ददाहि पवरं नागं, सब्बसेतं गजुत्तमं॥", | |
| "‘‘ददामि न विकम्पामि, यं मं याचन्ति ब्राह्मणा।", | |
| "सन्तं नप्पतिगूहामि", | |
| "‘‘न मे याचकमनुप्पत्ते, पटिक्खेपो अनुच्छवो।", | |
| "‘मा मे भिज्जि समादानं, दस्सामि विपुलं गजं’॥", | |
| "‘‘नागं गहेत्वा सोण्डाय, भिङ्गारे रतनामये।", | |
| "जलं हत्थे आकिरित्वा, ब्राह्मणानं अदं गजं॥", | |
| "‘‘पुनापरं ददन्तस्स, सब्बसेतं गजुत्तमं।", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘तस्स नागस्स दानेन, सिवयो कुद्धा समागता।", | |
| "पब्बाजेसुं सका रट्ठा, ‘वङ्कं गच्छतु पब्बतं’॥", | |
| "‘‘तेसं निच्छुभमानानं, अकम्पित्थमसण्ठितं।", | |
| "महादानं पवत्तेतुं, एकं वरमयाचिसं॥", | |
| "‘‘याचिता", | |
| "सावयित्वा कण्णभेरिं, महादानं ददामहं॥", | |
| "‘‘अथेत्थ वत्तती सद्दो, तुमुलो भेरवो महा।", | |
| "दानेनिमं नीहरन्ति, पुन दानं ददातयं॥", | |
| "‘‘हत्थिं", | |
| "महादानं ददित्वान, नगरा निक्खमिं तदा॥", | |
| "‘‘निक्खमित्वान", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘चतुवाहिं रथं दत्वा, ठत्वा चातुम्महापथे।", | |
| "एकाकियो अदुतियो, मद्दिदेविं इदमब्रविं॥", | |
| "‘‘‘त्वं मद्दि कण्हं गण्हाहि, लहुका एसा कनिट्ठिका।", | |
| "अहं जालिं गहेस्सामि, गरुको भातिको हि सो’॥", | |
| "‘‘पदुमं", | |
| "अहं सुवण्णबिम्बंव, जालिं खत्तियमग्गहिं॥", | |
| "‘‘अभिजाता सुखुमाला, खत्तिया चतुरो जना।", | |
| "विसमं समं अक्कमन्ता, वङ्कं गच्छाम पब्बतं॥", | |
| "‘‘ये केचि मनुजा एन्ति, अनुमग्गे पटिप्पथे।", | |
| "मग्गन्ते पटिपुच्छाम, ‘कुहिं वङ्कन्त", | |
| "‘‘ते तत्थ अम्हे पस्सित्वा, करुणं गिरमुदीरयुं।", | |
| "दुक्खं ते पटिवेदेन्ति, दूरे वङ्कन्तपब्बतो॥", | |
| "‘‘यदि पस्सन्ति पवने, दारका फलिने दुमे।", | |
| "तेसं फलानं हेतुम्हि, उपरोदन्ति दारका॥", | |
| "‘‘रोदन्ते दारके दिस्वा, उब्बिद्धा", | |
| "सयमेवोणमित्वान, उपगच्छन्ति दारके॥", | |
| "‘‘इदं", | |
| "साहुकारं", | |
| "‘‘अच्छेरं वत लोकस्मिं, अब्भुतं लोमहंसनं।", | |
| "वेस्सन्तरस्स तेजेन, सयमेवोणता दुमा॥", | |
| "‘‘सङ्खिपिंसु पथं यक्खा, अनुकम्पाय दारके।", | |
| "निक्खन्तदिवसेनेव", | |
| "‘‘सट्ठिराजसहस्सानि, तदा वसन्ति मातुले।", | |
| "सब्बे पञ्जलिका हुत्वा, रोदमाना उपागमुं॥", | |
| "‘‘तत्थ वत्तेत्वा सल्लापं, चेतेहि चेतपुत्तेहि।", | |
| "ते ततो निक्खमित्वान, वङ्कं अगमु पब्बतं॥", | |
| "‘‘आमन्तयित्वा", | |
| "अस्समं सुकतं रम्मं, पण्णसालं सुमापय॥", | |
| "‘‘सक्कस्स वचनं सुत्वा, विस्सकम्मो महिद्धिको।", | |
| "अस्समं", | |
| "‘‘अज्झोगाहेत्वा", | |
| "चतुरो जना मयं तत्थ, वसाम पब्बतन्तरे॥", | |
| "‘‘अहञ्च मद्दिदेवी च, जाली कण्हाजिना चुभो।", | |
| "अञ्ञमञ्ञं सोकनुदा, वसाम अस्समे तदा॥", | |
| "‘‘दारके अनुरक्खन्तो, असुञ्ञो होमि अस्समे।", | |
| "मद्दी फलं आहरित्वा, पोसेति सा तयो जने॥", | |
| "‘‘पवने", | |
| "आयाचि पुत्तके मय्हं, जालिं कण्हाजिनं चुभो॥", | |
| "‘‘याचकं उपगतं दिस्वा, हासो मे उपपज्जथ।", | |
| "उभो पुत्ते गहेत्वान, अदासिं ब्राह्मणे तदा॥", | |
| "‘‘सके पुत्ते चजन्तस्स, जूजके ब्राह्मणे यदा।", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘पुनदेव सक्को ओरुय्ह, हुत्वा ब्राह्मणसन्निभो।", | |
| "आयाचि मं मद्दिदेविं, सीलवन्तिं पतिब्बतं॥", | |
| "‘‘मद्दिं हत्थे गहेत्वान, उदकञ्जलि पूरिय।", | |
| "पसन्नमनसङ्कप्पो, तस्स मद्दिं अदासहं॥", | |
| "‘‘मद्दिया दीयमानाय, गगने देवा पमोदिता।", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘जालिं कण्हाजिनं धीतं, मद्दिदेविं पतिब्बतं।", | |
| "चजमानो न चिन्तेसिं, बोधियायेव कारणा॥", | |
| "‘‘न मे देस्सा उभो पुत्ता, मद्दिदेवी न देस्सिया।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा पिये अदासहं॥", | |
| "‘‘पुनापरं ब्रहारञ्ञे, मातापितुसमागमे।", | |
| "करुणं परिदेवन्ते, सल्लपन्ते सुखं दुखं॥", | |
| "‘‘हिरोत्तप्पेन", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "पविसामि पुरं रम्मं, जेतुत्तरं पुरुत्तमं॥", | |
| "‘‘रतनानि सत्त वस्सिंसु, महामेघो पवस्सथ।", | |
| "तदापि पथवी कम्पि, सिनेरुवनवटंसका॥", | |
| "‘‘अचेतनायं पथवी, अविञ्ञाय सुखं दुखं।", | |
| "सापि दानबला मय्हं, सत्तक्खत्तुं पकम्पथा’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "तिणपण्णसाकफलभक्खो, परहेठनविवज्जितो॥", | |
| "‘‘मक्कटो च सिङ्गालो च, सुत्तपोतो चहं तदा।", | |
| "वसाम एकसामन्ता, सायं पातो च दिस्सरे", | |
| "‘‘अहं ते अनुसासामि, किरिये कल्याणपापके।", | |
| "‘पापानि परिवज्जेथ, कल्याणे अभिनिविस्सथ’॥", | |
| "‘‘उपोसथम्हि दिवसे, चन्दं दिस्वान पूरितं।", | |
| "एतेसं तत्थ आचिक्खिं, दिवसो अज्जुपोसथो॥", | |
| "‘‘दानानि पटियादेथ, दक्खिणेय्यस्स दातवे।", | |
| "दत्वा दानं दक्खिणेय्ये, उपवस्सथुपोसथं॥", | |
| "‘‘ते", | |
| "दानानि पटियादेत्वा, दक्खिणेय्यं गवेसिसुं", | |
| "‘‘अहं निसज्ज चिन्तेसिं, दानं दक्खिणनुच्छवं।", | |
| "‘यदिहं लभे दक्खिणेय्यं, किं मे दानं भविस्सति॥", | |
| "‘‘‘न", | |
| "अहं तिणेन यापेमि, न सक्का तिण दातवे॥", | |
| "‘‘‘यदि", | |
| "दज्जाहं सकमत्तानं, न सो तुच्छो गमिस्सति’॥", | |
| "‘‘मम सङ्कप्पमञ्ञाय, सक्को ब्राह्मणवण्णिना।", | |
| "आसयं मे उपागच्छि, दानवीमंसनाय मे॥", | |
| "‘‘तमहं दिस्वान सन्तुट्ठो, इदं वचनमब्रविं।", | |
| "‘साधु खोसि अनुप्पत्तो, घासहेतु ममन्तिके॥", | |
| "‘‘‘अदिन्नपुब्बं दानवरं, अज्ज दस्सामि ते अहं।", | |
| "तुवं सीलगुणूपेतो, अयुत्तं ते परहेठनं॥", | |
| "‘‘‘एहि अग्गिं पदीपेहि, नानाकट्ठे समानय।", | |
| "अहं पचिस्समत्तानं, पक्कं त्वं भक्खयिस्ससि’॥", | |
| "‘‘‘साधू’ति सो हट्ठमनो, नानाकट्ठे समानयि।", | |
| "महन्तं अकासि चितकं, कत्वा अङ्गारगब्भकं॥", | |
| "‘‘अग्गिं तत्थ पदीपेसि, यथा सो खिप्पं महा भवे।", | |
| "फोटेत्वा रजगते गत्ते, एकमन्तं उपाविसिं॥", | |
| "‘‘यदा", | |
| "तदुप्पतित्वा पपतिं, मज्झे जालसिखन्तरे॥", | |
| "‘‘यथा", | |
| "समेति दरथपरिळाहं, अस्सादं देति पीति च॥", | |
| "‘‘तथेव जलितं अग्गिं, पविट्ठस्स ममं तदा।", | |
| "सब्बं समेति दरथं, यथा सीतोदकं विय॥", | |
| "‘‘छविं चम्मं मंसं न्हारुं, अट्ठिं हदयबन्धनं।", | |
| "केवलं सकलं कायं, ब्राह्मणस्स अदासह’’न्ति॥", | |
| "अकित्तिब्राह्मणो", | |
| "महासुदस्सनो राजा, महागोविन्दब्राह्मणो॥", | |
| "निमि चन्दकुमारो च, सिवि वेस्सन्तरो ससो।", | |
| "अहमेव तदा आसिं, यो ते दानवरे अदा॥", | |
| "एते दानपरिक्खारा, एते दानस्स पारमी।", | |
| "जीवितं याचके दत्वा, इमं पारमि पूरयिं॥", | |
| "भिक्खाय उपगतं दिस्वा, सकत्तानं परिच्चजिं।", | |
| "दानेन मे समो नत्थि, एसा मे दानपारमीति॥", | |
| "‘‘यदा", | |
| "न तदा अत्थि महिया, गुणेन मम सादिसो॥", | |
| "‘‘पवने दिस्वा वनचरो, रञ्ञो मं पटिवेदयि।", | |
| "‘तवानुच्छवो महाराज, गजो वसति कानने॥", | |
| "‘‘‘न तस्स परिक्खायत्थो, नपि आळककासुया।", | |
| "सह गहिते", | |
| "‘‘तस्स तं वचनं सुत्वा, राजापि तुट्ठमानसो।", | |
| "पेसेसि हत्थिदमकं, छेकाचरियं सुसिक्खितं॥", | |
| "‘‘गन्त्वा सो हत्थिदमको, अद्दस पदुमस्सरे।", | |
| "भिसमुळालं", | |
| "‘‘विञ्ञाय मे सीलगुणं, लक्खणं उपधारयि।", | |
| "‘एहि पुत्ता’ति पत्वान, मम सोण्डाय अग्गहि॥", | |
| "‘‘यं मे तदा पाकतिकं, सरीरानुगतं बलं।", | |
| "अज्ज नागसहस्सानं, बलेन समसादिसं॥", | |
| "‘‘यदिहं तेसं पकुप्पेय्यं, उपेतानं गहणाय मं।", | |
| "पटिबलो भवे तेसं, याव रज्जम्पि मानुसं॥", | |
| "‘‘अपि", | |
| "न करोमि चित्ते अञ्ञथत्तं, पक्खिपन्तं ममाळके॥", | |
| "‘‘यदि ते मं तत्थ कोट्टेय्युं, फरसूहि तोमरेहि च।", | |
| "नेव तेसं पकुप्पेय्यं, सीलखण्डभया ममा’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "विरूपक्खेन महारञ्ञा, देवलोकमगञ्छहं॥", | |
| "‘‘तत्थ पस्सित्वाहं देवे, एकन्तं सुखसमप्पिते।", | |
| "तं सग्गगमनत्थाय, सीलब्बतं समादियिं॥", | |
| "‘‘सरीरकिच्चं कत्वान, भुत्वा यापनमत्तकं।", | |
| "चतुरो अङ्गे अधिट्ठाय, सेमि वम्मिकमुद्धनि॥", | |
| "‘‘छविया चम्मेन मंसेन, नहारुअट्ठिकेहि वा।", | |
| "यस्स एतेन करणीयं, दिन्नंयेव हरातु सो॥", | |
| "‘‘संसितो अकतञ्ञुना, आलम्पायनो", | |
| "पेळाय पक्खिपित्वान, कीळेति मं तहिं तहिं॥", | |
| "‘‘पेळाय पक्खिपन्तेपि, सम्मद्दन्तेपि पाणिना।", | |
| "आलम्पायने", | |
| "‘‘सकजीवितपरिच्चागो", | |
| "सीलवीतिक्कमो मय्हं, पथवीउप्पतनं विय॥", | |
| "‘‘निरन्तरं जातिसतं, चजेय्यं मम जीवितं।", | |
| "नेव सीलं पभिन्देय्यं, चतुद्दीपान हेतुपि॥", | |
| "‘‘अपि चाहं सीलरक्खाय, सीलपारमिपूरिया।", | |
| "न करोमि चित्ते अञ्ञथत्तं, पक्खिपन्तम्पि पेळके’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, चम्पेय्यको महिद्धिको।", | |
| "तदापि धम्मिको आसिं, सीलब्बतसमप्पितो॥", | |
| "‘‘तदापि", | |
| "अहितुण्डिको गहेत्वान, राजद्वारम्हि कीळति॥", | |
| "‘‘यं", | |
| "तस्स चित्तानुवत्तन्तो, होमि चिन्तितसन्निभो॥", | |
| "‘‘थलं", | |
| "यदिहं तस्स पकुप्पेय्यं, खणेन छारिकं करे॥", | |
| "‘‘यदि चित्तवसी हेस्सं, परिहायिस्सामि सीलतो।", | |
| "सीलेन परिहीनस्स, उत्तमत्थो न सिज्झति॥", | |
| "‘‘कामं", | |
| "नेव सीलं पभिन्देय्यं, विकिरन्ते भुसं विया’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, चूळबोधि सुसीलवा।", | |
| "भवं दिस्वान भयतो, नेक्खम्मं अभिनिक्खमिं॥", | |
| "‘‘या मे दुतियिका आसि, ब्राह्मणी कनकसन्निभा।", | |
| "सापि वट्टे अनपेक्खा, नेक्खम्मं अभिनिक्खमि॥", | |
| "‘‘निरालया छिन्नबन्धू, अनपेक्खा कुले गणे।", | |
| "चरन्ता गामनिगमं, बाराणसिमुपागमुं॥", | |
| "‘‘तत्थ वसाम निपका, असंसट्ठा कुले गणे।", | |
| "निराकुले अप्पसद्दे, राजुय्याने वसामुभो॥", | |
| "‘‘उय्यानदस्सनं गन्त्वा, राजा अद्दस ब्राह्मणिं।", | |
| "उपगम्म ममं पुच्छि, ‘तुय्हेसा का कस्स भरिया’॥", | |
| "‘‘एवं वुत्ते अहं तस्स, इदं वचनमब्रविं।", | |
| "‘न मय्हं भरिया एसा, सहधम्मा एकसासनी’॥", | |
| "‘‘तिस्सा", | |
| "निप्पीळयन्तो बलसा, अन्तेपुरं पवेसयि॥", | |
| "‘‘ओदपत्तकिया", | |
| "आकड्ढित्वा नयन्तिया, कोपो मे उपपज्जथ॥", | |
| "‘‘सह", | |
| "तत्थेव कोपं निग्गण्हिं, नादासिं वड्ढितूपरि॥", | |
| "‘‘यदि नं ब्राह्मणिं कोचि, कोट्टेय्य तिण्हसत्तिया।", | |
| "नेव सीलं पभिन्देय्यं, बोधियायेव कारणा॥", | |
| "‘‘न मेसा ब्राह्मणी देस्सा, नपि मे बलं न विज्जति।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा सीलानुरक्खिस’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "पवड्ढकायो बलवा, महन्तो भीमदस्सनो॥", | |
| "‘‘पब्भारे गिरिदुग्गे", | |
| "होतेत्थ ठानं महिंसानं, कोचि कोचि तहिं तहिं॥", | |
| "‘‘विचरन्तो ब्रहारञ्ञे, ठानं अद्दस भद्दकं।", | |
| "तं ठानं उपगन्त्वान, तिट्ठामि च सयामि च॥", | |
| "‘‘अथेत्थ कपिमागन्त्वा, पापो अनरियो लहु।", | |
| "खन्धे नलाटे भमुके, मुत्तेति ओहनेतितं॥", | |
| "‘‘सकिम्पि दिवसं दुतियं, ततियं चतुत्थम्पि च।", | |
| "दूसेति मं सब्बकालं, तेन होमि उपद्दुतो॥", | |
| "‘‘ममं", | |
| "‘नासेहेतं छवं पापं, सिङ्गेहि च खुरेहि च’॥", | |
| "‘‘एवं", | |
| "‘किं त्वं मक्खेसि कुणपेन, पापेन अनरियेन मं॥", | |
| "‘‘‘यदिहं", | |
| "सीलञ्च मे पभिज्जेय्य, विञ्ञू च गरहेय्यु मं॥", | |
| "‘‘‘हीळिता जीविता वापि, परिसुद्धेन मतं वरं।", | |
| "क्याहं जीवितहेतूपि, काहामिं परहेठनं’॥", | |
| "‘‘ममेवायं मञ्ञमानो, अञ्ञेपेवं करिस्सति।", | |
| "तेव तस्स वधिस्सन्ति, सा मे मुत्ति भविस्सति॥", | |
| "‘‘हीनमज्झिमउक्कट्ठे, सहन्तो अवमानितं।", | |
| "एवं लभति सप्पञ्ञो, मनसा यथा पत्थित’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, सुतत्तकनकसन्निभो।", | |
| "मिगराजा रुरुनाम, परमसीलसमाहितो॥", | |
| "‘‘रम्मे पदेसे रमणीये, विवित्ते अमनुस्सके।", | |
| "तत्थ वासं उपगञ्छिं, गङ्गाकूले मनोरमे॥", | |
| "‘‘अथ", | |
| "पुरिसो गङ्गाय पपति, ‘जीवामि वा मरामि वा’॥", | |
| "‘‘रत्तिन्दिवं", | |
| "रवन्तो करुणं रवं, मज्झे गङ्गाय गच्छति॥", | |
| "‘‘तस्साहं सद्दं सुत्वान, करुणं परिदेवतो।", | |
| "गङ्गाय तीरे ठत्वान, अपुच्छिं ‘कोसि त्वं नरो’॥", | |
| "‘‘सो मे पुट्ठो च ब्याकासि, अत्तनो करणं तदा।", | |
| "‘धनिकेहि भीतो तसितो, पक्खन्दोहं महानदिं’॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "पविसित्वा नीहरिं तस्स, अन्धकारम्हि रत्तिया॥", | |
| "‘‘अस्सत्थकालमञ्ञाय, तस्साहं इदमब्रविं।", | |
| "‘एकं तं वरं याचामि, मा मं कस्सचि पावद’॥", | |
| "‘‘नगरं", | |
| "राजानं सो गहेत्वान, उपगञ्छि ममन्तिकं॥", | |
| "‘‘यावता करणं सब्बं, रञ्ञो आरोचितं मया।", | |
| "राजा सुत्वान वचनं, उसुं तस्स पकप्पयि।", | |
| "‘इधेव घातयिस्सामि, मित्तदुब्भिं", | |
| "‘‘तमहं अनुरक्खन्तो, निम्मिनिं मम अत्तना।", | |
| "‘तिट्ठतेसो महाराज, कामकारो भवामि ते’॥", | |
| "‘‘अनुरक्खिं मम सीलं, नारक्खिं मम जीवितं।", | |
| "सीलवा हि तदा आसिं, बोधियायेव कारणा’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "मातङ्गो नाम नामेन, सीलवा सुसमाहितो॥", | |
| "‘‘अहञ्च ब्राह्मणो एको, गङ्गाकूले वसामुभो।", | |
| "अहं वसामि उपरि, हेट्ठा वसति ब्राह्मणो॥", | |
| "‘‘विचरन्तो अनुकूलम्हि, उद्धं मे अस्समद्दस।", | |
| "तत्थ मं परिभासेत्वा, अभिसपि मुद्धफालनं॥", | |
| "‘‘यदिहं तस्स पकुप्पेय्यं, यदि सीलं न गोपये।", | |
| "ओलोकेत्वानहं तस्स, करेय्यं छारिकं विय॥", | |
| "‘‘यं", | |
| "तस्सेव मत्थके निपति, योगेन तं पमोचयिं॥", | |
| "‘‘अनुरक्खिं", | |
| "सीलवा हि तदा आसिं, बोधियायेव कारणा’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "धम्मो नाम महायक्खो, सब्बलोकानुकम्पको॥", | |
| "‘‘दसकुसलकम्मपथे", | |
| "चरामि गामनिगमं, समित्तो सपरिज्जनो॥", | |
| "‘‘पापो कदरियो यक्खो, दीपेन्तो दस पापके।", | |
| "सोपेत्थ महिया चरति, समित्तो सपरिज्जनो॥", | |
| "‘‘धम्मवादी अधम्मो च, उभो पच्चनिका मयं।", | |
| "धुरे धुरं घट्टयन्ता, समिम्हा पटिपथे उभो॥", | |
| "‘‘कलहो वत्तती भेस्मा, कल्याणपापकस्स च।", | |
| "मग्गा ओक्कमनत्थाय, महायुद्धो उपट्ठितो॥", | |
| "‘‘यदिहं तस्स कुप्पेय्यं, यदि भिन्दे तपोगुणं।", | |
| "सहपरिजनं तस्स, रजभूतं करेय्यहं॥", | |
| "‘‘अपिचाहं सीलरक्खाय, निब्बापेत्वान मानसं।", | |
| "सह जनेनोक्कमित्वा, पथं पापस्स दासहं॥", | |
| "‘‘सह पथतो ओक्कन्ते, कत्वा चित्तस्स निब्बुतिं।", | |
| "विवरं अदासि पथवी, पापयक्खस्स तावदे’’ति॥", | |
| "‘‘पञ्चालरट्ठे", | |
| "राजा जयद्दिसो नाम, सीलगुणमुपागतो॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "अलीनसत्तो गुणवा, अनुरक्खपरिजनो सदा॥", | |
| "‘‘पिता मे मिगवं गन्त्वा, पोरिसादं उपागमि।", | |
| "सो मे पितुमग्गहेसि, ‘भक्खोसि मम मा चलि’॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "ऊरुक्खम्भो अहु तस्स, दिस्वान पोरिसादकं॥", | |
| "‘‘मिगवं गहेत्वा मुञ्चस्सु, कत्वा आगमनं पुन।", | |
| "ब्राह्मणस्स धनं दत्वा, पिता आमन्तयी ममं॥", | |
| "‘‘‘रज्जं पुत्त पटिपज्ज, मा पमज्जि पुरं इदं।", | |
| "कतं मे पोरिसादेन, मम आगमनं पुन’॥", | |
| "‘‘मातापितू च वन्दित्वा, निम्मिनित्वान अत्तना।", | |
| "निक्खिपित्वा धनुं खग्गं, पोरिसादं उपागमिं॥", | |
| "‘‘ससत्थहत्थूपगतं, कदाचि सो तसिस्सति।", | |
| "तेन भिज्जिस्सति सीलं, परित्तासं", | |
| "‘‘सीलखण्डभया मय्हं, तस्स देस्सं न ब्याहरिं।", | |
| "मेत्तचित्तो हितवादी, इदं वचनमब्रविं॥", | |
| "‘‘‘उज्जालेहि महाअग्गिं, पपतिस्सामि रुक्खतो।", | |
| "त्वं पक्ककालमञ्ञाय", | |
| "‘‘इति सीलवतं हेतु, नारक्खिं मम जीवितं।", | |
| "पब्बाजेसिं चहं तस्स, सदा पाणातिपातिक’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "दाठावुधो घोरविसो, द्विजिव्हो उरगाधिभू॥", | |
| "‘‘चतुप्पथे महामग्गे, नानाजनसमाकुले।", | |
| "चतुरो अङ्गे अधिट्ठाय, तत्थ वासमकप्पयिं॥", | |
| "‘‘छविया चम्मेन मंसेन, नहारुअट्ठिकेहि वा।", | |
| "यस्स एतेन करणीयं, दिन्नंयेव हरातु सो॥", | |
| "‘‘अद्दसंसु", | |
| "उपगञ्छुं ममं तत्थ, दण्डमुग्गरपाणिनो॥", | |
| "‘‘नासाय विनिविज्झित्वा, नङ्गुट्ठे पिट्ठिकण्टके।", | |
| "काजे आरोपयित्वान, भोजपुत्ता हरिंसु मं॥", | |
| "‘‘ससागरन्तं पथविं, सकाननं सपब्बतं।", | |
| "इच्छमानो चहं तत्थ, नासावातेन झापये॥", | |
| "‘‘सूलेहि विनिविज्झन्ते, कोट्टयन्तेपि सत्तिभि।", | |
| "भोजपुत्ते न कुप्पामि, एसा मे सीलपारमी’’ति॥", | |
| "हत्थिनागो", | |
| "रुरु मातङ्गो धम्मो च, अत्रजो च जयद्दिसो॥", | |
| "एते नव सीलबला, परिक्खारा पदेसिका।", | |
| "जीवितं परिरक्खित्वा, सीलानि अनुरक्खिसं॥", | |
| "सङ्खपालस्स मे सतो, सब्बकालम्पि जीवितं।", | |
| "यस्स कस्सचि निय्यत्तं, तस्मा सा सीलपारमीति॥", | |
| "‘‘यदाहं", | |
| "उस्सावबिन्दुं सूरियातपे, पतितं दिस्वान संविजिं॥", | |
| "‘‘तञ्ञेवाधिपतिं कत्वा, संवेगमनुब्रूहयिं।", | |
| "मातापितू च वन्दित्वा, पब्बज्जमनुयाचहं॥", | |
| "‘‘याचन्ति मं पञ्जलिका, सनेगमा सरट्ठका।", | |
| "‘अज्जेव पुत्त पटिपज्ज, इद्धं फीतं महामहिं’॥", | |
| "‘‘सराजके सहोरोधे, सनेगमे सरट्ठके।", | |
| "करुणं परिदेवन्ते, अनपेक्खोव परिच्चजिं॥", | |
| "‘‘केवलं पथविं रज्जं, ञातिपरिजनं यसं।", | |
| "चजमानो न चिन्तेसिं, बोधियायेव कारणा॥", | |
| "‘‘मातापिता न मे देस्सा, नपि मे देस्सं महायसं।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा रज्जं परिच्चजि’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "कामितो दयितो पुत्तो, सोमनस्सोति विस्सुतो॥", | |
| "‘‘सीलवा गुणसम्पन्नो, कल्याणपटिभानवा।", | |
| "वुड्ढापचायी हिरीमा, सङ्गहेसु च कोविदो॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "आरामं मालावच्छञ्च, रोपयित्वान जीवति॥", | |
| "‘‘तमहं", | |
| "दुमंव अन्तो सुसिरं, कदलिंव असारकं॥", | |
| "‘‘नत्थिमस्स", | |
| "हिरीसुक्कधम्मजहितो, जीवितवुत्तिकारणा॥", | |
| "‘‘कुपितो अहु", | |
| "तं निसेधेतुं गच्छन्तो, अनुसासि पिता ममं॥", | |
| "‘‘‘मा पमज्जि तुवं तात, जटिलं उग्गतापनं।", | |
| "यदिच्छकं पवत्तेहि, सब्बकामददो हि सो’॥", | |
| "‘‘तमहं गन्त्वानुपट्ठानं, इदं वचनमब्रविं।", | |
| "‘कच्चि ते गहपति कुसलं, किं वा ते आहरीयतु’॥", | |
| "‘‘तेन सो कुपितो आसि, कुहको माननिस्सितो।", | |
| "‘घातापेमि तुवं अज्ज, रट्ठा पब्बाजयामि वा’॥", | |
| "‘‘निसेधयित्वा", | |
| "‘कच्चि ते भन्ते खमनीयं, सम्मानो ते पवत्तितो’॥", | |
| "‘‘तस्स आचिक्खती पापो, कुमारो यथा नासियो।", | |
| "तस्स तं वचनं सुत्वा, आणापेसि महीपति॥", | |
| "‘‘‘सीसं तत्थेव छिन्दित्वा, कत्वान चतुखण्डिकं।", | |
| "रथिया रथियं दस्सेथ, सा गति जटिलहीळिता’॥", | |
| "‘‘तत्थ कारणिका गन्त्वा, चण्डा लुद्दा अकारुणा।", | |
| "मातुअङ्के निसिन्नस्स, आकड्ढित्वा नयन्ति मं॥", | |
| "‘‘तेसाहं एवमवचं, बन्धतं गाळ्हबन्धनं।", | |
| "‘रञ्ञो दस्सेथ मं खिप्पं, राजकिरियानि अत्थि मे’॥", | |
| "‘‘ते मं रञ्ञो दस्सयिंसु, पापस्स पापसेविनो।", | |
| "दिस्वान तं सञ्ञापेसिं, ममञ्च वसमानयिं॥", | |
| "‘‘सो मं तत्थ खमापेसि, महारज्जमदासि मे।", | |
| "सोहं तमं दालयित्वा, पब्बजिं अनगारियं॥", | |
| "‘‘न", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा रज्जं परिच्चजि’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "अयोघरम्हि संवड्ढो, नामेनासि अयोघरो॥", | |
| "‘‘दुक्खेन जीवितो लद्धो, संपीळे पतिपोसितो।", | |
| "अज्जेव पुत्त पटिपज्ज, केवलं वसुधं इमं॥", | |
| "‘‘सरट्ठकं सनिगमं, सजनं वन्दित्व खत्तियं।", | |
| "अञ्जलिं पग्गहेत्वान, इदं वचनमब्रविं॥", | |
| "‘‘‘ये केचि महिया सत्ता, हीनमुक्कट्ठमज्झिमा।", | |
| "निरारक्खा सके गेहे, वड्ढन्ति सकञातिभि॥", | |
| "‘‘‘इदं लोके उत्तरियं, संपीळे मम पोसनं।", | |
| "अयोघरम्हि संवड्ढो, अप्पभे चन्दसूरिये॥", | |
| "‘‘‘पूतिकुणपसम्पुण्णा, मुच्चित्वा मातु कुच्छितो।", | |
| "ततो घोरतरे दुक्खे, पुन पक्खित्तयोघरे॥", | |
| "‘‘‘यदिहं तादिसं पत्वा, दुक्खं परमदारुणं।", | |
| "रज्जेसु यदि रज्जामि", | |
| "‘‘‘उक्कण्ठितोम्हि कायेन, रज्जेनम्हि अनत्थिको।", | |
| "निब्बुतिं परियेसिस्सं, यत्थ मं मच्चु न मद्दिये’॥", | |
| "‘‘एवाहं चिन्तयित्वान, विरवन्ते महाजने।", | |
| "नागोव बन्धनं छेत्वा, पाविसिं काननं वनं॥", | |
| "‘‘मातापिता", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा रज्जं परिच्चजि’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, कासीनं पुरवरुत्तमे।", | |
| "भगिनी च भातरो सत्त, निब्बत्ता सोत्थिये कुले॥", | |
| "‘‘एतेसं", | |
| "भवं दिस्वान भयतो, नेक्खम्माभिरतो अहं॥", | |
| "‘‘मातापितूहि", | |
| "कामेहि मं निमन्तेन्ति, ‘कुलवंसं धरेहि’ति॥", | |
| "‘‘यं तेसं वचनं वुत्तं, गिहीधम्मे सुखावहं।", | |
| "तं मे अहोसि कठिनं, तत्त", | |
| "‘‘ते मं तदा उक्खिपन्तं, पुच्छिंसु पत्थितं मम।", | |
| "‘किं त्वं पत्थयसे सम्म, यदि कामे न भुञ्जसि’॥", | |
| "‘‘तेसाहं एवमवचं, अत्थकामो हितेसिनं।", | |
| "‘नाहं पत्थेमि गिहीभावं, नेक्खम्माभिरतो अहं’॥", | |
| "‘‘ते मय्हं वचनं सुत्वा, पितुमातु च सावयुं।", | |
| "मातापिता एवमाहु, ‘सब्बेव पब्बजाम भो’॥", | |
| "‘‘उभो", | |
| "अमितधनं छड्डयित्वा, पाविसिम्हा महावन’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "तत्थ कुलवरे सेट्ठे, महासाले अजायहं॥", | |
| "‘‘तदापि लोकं दिस्वान, अन्धीभूतं तमोत्थटं।", | |
| "चित्तं भवतो पतिकुटति, तुत्तवेगहतं विय॥", | |
| "‘‘दिस्वान विविधं पापं, एवं चिन्तेसहं तदा।", | |
| "‘कदाहं गेहा निक्खम्म, पविसिस्सामि काननं’॥", | |
| "‘‘तदापि मं निमन्तेसुं, कामभोगेहि ञातयो।", | |
| "तेसम्पि छन्दमाचिक्खिं, ‘मा निमन्तेथ तेहि मं’॥", | |
| "‘‘यो", | |
| "सोपि मं अनुसिक्खन्तो, पब्बज्जं समरोचयि॥", | |
| "‘‘अहं सोणो च नन्दो च, उभो मातापिता मम।", | |
| "तदापि भोगे छड्डेत्वा, पाविसिम्हा महावन’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "मूगपक्खोति नामेन, तेमियोति वदन्ति मं॥", | |
| "‘‘सोळसित्थिसहस्सानं, न विज्जति पुमो तदा", | |
| "अहोरत्तानं अच्चयेन, निब्बत्तो अहमेकको॥", | |
| "‘‘किच्छा लद्धं पियं पुत्तं, अभिजातं जुतिन्धरं।", | |
| "सेतच्छत्तं धारयित्वान, सयने पोसेति मं पिता॥", | |
| "‘‘निद्दायमानो सयनवरे, पबुज्झित्वानहं तदा।", | |
| "अद्दसं पण्डरं छत्तं, येनाहं निरयं गतो॥", | |
| "‘‘सह", | |
| "विनिच्छयं समापन्नो, ‘कथाहं इमं मुञ्चिस्सं’॥", | |
| "‘‘पुब्बसालोहिता मय्हं, देवता अत्थकामिनी।", | |
| "सा मं दिस्वान दुक्खितं, तीसु ठानेसु योजयि॥", | |
| "‘‘‘मा पण्डिच्चयं विभावय, बालमतो भव सब्बपाणिनं।", | |
| "सब्बो तं जनो ओचिनायतु, एवं तव अत्थो भविस्सति’॥", | |
| "‘‘एवं वुत्तायहं तस्सा, इदं वचनमब्रविं।", | |
| "‘करोमि ते तं वचनं, यं त्वं भणसि देवते।", | |
| "अत्थकामासि मे अम्म, हितकामासि देवते’॥", | |
| "‘‘तस्साहं वचनं सुत्वा, सागरेव थलं लभिं।", | |
| "हट्ठो", | |
| "‘‘मूगो", | |
| "एते अङ्गे अधिट्ठाय, वस्सानि सोळसं वसिं॥", | |
| "‘‘ततो मे हत्थपादे च, जिव्हं सोतञ्च मद्दिय।", | |
| "अनूनतं मे पस्सित्वा, ‘काळकण्णी’ति निन्दिसुं॥", | |
| "‘‘ततो जानपदा सब्बे, सेनापतिपुरोहिता।", | |
| "सब्बे एकमना हुत्वा, छड्डनं अनुमोदिसुं॥", | |
| "‘‘सोहं तेसं मतिं सुत्वा, हट्ठो संविग्गमानसो।", | |
| "यस्सत्थाय तपोचिण्णो, सो मे अत्थो समिज्झथ॥", | |
| "‘‘न्हापेत्वा अनुलिम्पित्वा, वेठेत्वा राजवेठनं।", | |
| "छत्तेन अभिसिञ्चित्वा, कारेसुं पुरं पदक्खिणं॥", | |
| "‘‘सत्ताहं धारयित्वान, उग्गते रविमण्डले।", | |
| "रथेन मं नीहरित्वा, सारथी वनमुपागमि॥", | |
| "‘‘एकोकासे", | |
| "सारथी खणती कासुं, निखातुं पथविया ममं॥", | |
| "‘‘अधिट्ठितमधिट्ठानं, तज्जेन्तो विविधकारणा।", | |
| "न भिन्दिं तमधिट्ठानं, बोधियायेव कारणा॥", | |
| "‘‘मातापिता न मे देस्सा, अत्ता मे न च देस्सियो।", | |
| "सब्बञ्ञुतं पियं मय्हं, तस्मा वतमधिट्ठहिं॥", | |
| "‘‘एते", | |
| "अधिट्ठानेन मे समो नत्थि, एसा मे अधिट्ठानपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘यदा अहं कपि आसिं, नदीकूले दरीसये।", | |
| "पीळितो सुसुमारेन, गमनं न लभामहं॥", | |
| "‘‘यम्होकासे", | |
| "तत्थच्छि सत्तु वधको, कुम्भीलो लुद्ददस्सनो॥", | |
| "‘‘सो मं असंसि ‘एही’ति, ‘अहंपेमी’ति तं वतिं।", | |
| "तस्स मत्थकमक्कम्म, परकूले पतिट्ठहिं॥", | |
| "‘‘न तस्स अलिकं भणितं, यथा वाचं अकासहं।", | |
| "सच्चेन मे समो नत्थि, एसा मे सच्चपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, तापसो सच्चसव्हयो।", | |
| "सच्चेन लोकं पालेसिं, समग्गं जनमकासह’’न्ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "अजातपक्खो तरुणो, मंसपेसि कुलावके॥", | |
| "‘‘मुखतुण्डकेनाहरित्वा", | |
| "तस्सा फस्सेन जीवामि, नत्थि मे कायिकं बलं॥", | |
| "‘‘संवच्छरे गिम्हसमये, दवडाहो", | |
| "उपगच्छति अम्हाकं, पावको कण्हवत्तनी॥", | |
| "‘‘धमधमा इतिएवं, सद्दायन्तो महासिखी।", | |
| "अनुपुब्बेन झापेन्तो, अग्गि मममुपागमि॥", | |
| "‘‘अग्गिवेगभयातीता, तसिता मातापिता मम।", | |
| "कुलावके मं छड्डेत्वा, अत्तानं परिमोचयुं॥", | |
| "‘‘पादे", | |
| "सोहं अगतिको तत्थ, एवं चिन्तेसहं तदा॥", | |
| "‘‘‘येसाहं उपधावेय्यं, भीतो तसितवेधितो।", | |
| "ते मं ओहाय पक्कन्ता, कथं मे अज्ज कातवे॥", | |
| "‘‘‘अत्थि लोके सीलगुणो, सच्चं सोचेय्यनुद्दया।", | |
| "तेन सच्चेन काहामि, सच्चकिरियमुत्तमं॥", | |
| "‘‘‘आवेज्जेत्वा धम्मबलं, सरित्वा पुब्बके जिने।", | |
| "सच्चबलमवस्साय, सच्चकिरियमकासहं॥", | |
| "‘‘‘सन्ति", | |
| "मातापिता च निक्खन्ता, जातवेद पटिक्कम’॥", | |
| "‘‘सहसच्चे कते मय्हं, महापज्जलितो सिखी।", | |
| "वज्जेसि सोळसकरीसानि, उदकं पत्वा यथा सिखी।", | |
| "सच्चेन मे समो नत्थि, एसा मे सच्चपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "उण्हे सूरियसन्तापे, सरे उदक खीयथ॥", | |
| "‘‘ततो काका च गिज्झा च, कङ्का", | |
| "भक्खयन्ति दिवारत्तिं, मच्छे उपनिसीदिय॥", | |
| "‘‘एवं चिन्तेसहं तत्थ, सह ञातीहि पीळितो।", | |
| "‘केन नु खो उपायेन, ञाती दुक्खा पमोचये’॥", | |
| "‘‘विचिन्तयित्वा धम्मत्थं, सच्चं अद्दस पस्सयं।", | |
| "सच्चे ठत्वा पमोचेसिं, ञातीनं तं अतिक्खयं॥", | |
| "‘‘अनुस्सरित्वा सतं धम्मं, परमत्थं विचिन्तयं।", | |
| "अकासि सच्चकिरियं, यं लोके धुवसस्सतं॥", | |
| "‘‘‘यतो", | |
| "नाभिजानामि सञ्चिच्च, एकपाणम्पि हिंसितं॥", | |
| "‘‘‘एतेन", | |
| "अभित्थनय पज्जुन्न, निधिं काकस्स नासय।", | |
| "काकं सोकाय रन्धेहि, मच्छे सोका पमोचय’॥", | |
| "‘‘सहकते सच्चवरे, पज्जुन्नो अभिगज्जिय।", | |
| "थलं निन्नञ्च पूरेन्तो, खणेन अभिवस्सथ॥", | |
| "‘‘एवरूपं सच्चवरं, कत्वा वीरियमुत्तमं।", | |
| "वस्सापेसिं महामेघं, सच्चतेजबलस्सितो।", | |
| "सच्चेन मे समो नत्थि, एसा मे सच्चपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं", | |
| "परोपञ्ञासवस्सानि, अनभिरतोचरिं अहं॥", | |
| "‘‘न कोचि एतं जानाति, अनभिरतिमनं मम।", | |
| "अहञ्हि कस्सचि नाचिक्खिं, अरति मे चरति मानसे॥", | |
| "‘‘सब्रह्मचारी", | |
| "पुब्बकम्मसमायुत्तो, सूलमारोपनं लभि॥", | |
| "‘‘तमहं उपट्ठहित्वान, आरोग्यमनुपापयिं।", | |
| "आपुच्छित्वान आगञ्छिं, यं मय्हं सकमस्समं॥", | |
| "‘‘सहायो", | |
| "तयो जना समागन्त्वा, आगञ्छुं पाहुनागतं॥", | |
| "‘‘सम्मोदमानो तेहि सह, निसिन्नो सकमस्समे।", | |
| "दारको वट्टमनुक्खिपं, आसीविसमकोपयि॥", | |
| "‘‘ततो सो वट्टगतं मग्गं, अन्वेसन्तो कुमारको।", | |
| "आसीविसस्स हत्थेन, उत्तमङ्गं परामसि॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "कुपितो परमकोपेन, अडंसि दारकं खणे॥", | |
| "‘‘सहदट्ठो आसीविसेन", | |
| "तेनाहं दुक्खितो आसिं, मम वाहसि तं दुक्खं॥", | |
| "‘‘त्याहं अस्सासयित्वान, दुक्खिते सोकसल्लिते।", | |
| "पठमं अकासिं किरियं, अग्गं सच्चं वरुत्तमं॥", | |
| "‘‘‘सत्ताहमेवाहं पसन्नचित्तो, पुञ्ञत्थिको अचरिं ब्रह्मचरियं।", | |
| "अथापरं यं चरितं ममेदं, वस्सानि पञ्ञाससमाधिकानि॥", | |
| "‘‘‘अकामको वाहि अहं चरामि, एतेन सच्चेन सुवत्थि होतु।", | |
| "हतं विसं जीवतु यञ्ञदत्तो’॥", | |
| "‘‘सह", | |
| "अबुज्झित्वान वुट्ठासि, अरोगो चासि माणवो।", | |
| "सच्चेन मे समो नत्थि, एसा मे सच्चपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, सुतसोमो महीपति।", | |
| "गहितो पोरिसादेन, ब्राह्मणे सङ्गरं सरिं॥", | |
| "‘‘खत्तियानं एकसतं, आवुणित्वा करत्तले।", | |
| "एतेसं पमिलापेत्वा, यञ्ञत्थे उपनयी ममं॥", | |
| "‘‘अपुच्छि", | |
| "यथामति ते काहामि, यदि मे त्वं पुनेहिसि’॥", | |
| "‘‘तस्स", | |
| "उपगन्त्वा पुरं रम्मं, रज्जं निय्यादयिं तदा॥", | |
| "‘‘अनुस्सरित्वा सतं धम्मं, पुब्बकं जिनसेवितं।", | |
| "ब्राह्मणस्स धनं दत्वा, पोरिसादं उपागमिं॥", | |
| "‘‘नत्थि मे संसयो तत्थ, घातयिस्सति वा न वा।", | |
| "सच्चवाचानुरक्खन्तो, जीवितं चजितुमुपागमिं।", | |
| "सच्चेन मे समो नत्थि, एसा मे सच्चपारमी’’ति॥", | |
| "‘‘सामो", | |
| "पवने सीहब्यग्घे च, मेत्तायमुपनामयिं॥", | |
| "‘‘सीहब्यग्घेहि दीपीहि, अच्छेहि महिसेहि च।", | |
| "पसदमिगवराहेहि, परिवारेत्वा वने वसिं॥", | |
| "‘‘न मं कोचि उत्तसति, नपि भायामि कस्सचि।", | |
| "मेत्ताबलेनुपत्थद्धो, रमामि पवने तदा’’ति॥", | |
| "‘‘पुनापरं यदा होमि, एकराजाति विस्सुतो।", | |
| "परमं सीलं अधिट्ठाय, पसासामि महामहिं॥", | |
| "‘‘दस कुसलकम्मपथे, वत्तामि अनवसेसतो।", | |
| "चतूहि सङ्गहवत्थूहि, सङ्गण्हामि", | |
| "‘‘एवं मे अप्पमत्तस्स, इध लोके परत्थ च।", | |
| "दब्बसेनो", | |
| "‘‘राजूपजीवे", | |
| "सब्बं हत्थगतं कत्वा, कासुया निखणी ममं॥", | |
| "‘‘अमच्चमण्डलं रज्जं, फीतं अन्तेपुरं मम।", | |
| "अच्छिन्दित्वान गहितं, पियं पुत्तंव पस्सहं।", | |
| "मेत्ताय मे समो नत्थि, एसा मे मेत्तापारमी’’ति॥", | |
| "‘‘सुसाने", | |
| "गामण्डला", | |
| "‘‘अपरे गन्धमालञ्च, भोजनं विविधं बहुं।", | |
| "उपायनानूपनेन्ति, हट्ठा संविग्गमानसा॥", | |
| "‘‘ये मे दुक्खं उपहरन्ति, ये च देन्ति सुखं मम।", | |
| "सब्बेसं समको होमि, दया कोपो न विज्जति॥", | |
| "‘‘सुखदुक्खे तुलाभूतो, यसेसु अयसेसु च।", | |
| "सब्बत्थ समको होमि, एसा मे उपेक्खापारमी’’ति॥", | |
| "युधञ्जयो सोमनस्सो, अयोघरभिसेन च।", | |
| "सोणनन्दो मूगपक्खो, कपिराजा सच्चसव्हयो॥", | |
| "वट्टको मच्छराजा च, कण्हदीपायनो इसि।", | |
| "सुतसोमो पुन आसिं", | |
| "उपेक्खापारमी आसि, इति वुत्थं", | |
| "एवं", | |
| "भवाभवे अनुभवित्वा, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
| "दत्वा दातब्बकं दानं, सीलं पूरेत्वा असेसतो।", | |
| "नेक्खम्मे पारमिं गन्त्वा, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
| "पण्डिते", | |
| "खन्तिया पारमिं गन्त्वा, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
| "कत्वा दळ्हमधिट्ठानं, सच्चवाचानुरक्खिय।", | |
| "मेत्ताय", | |
| "लाभालाभे", | |
| "सब्बत्थ समको हुत्वा, पत्तो सम्बोधिमुत्तमं॥", | |
| "कोसज्जं भयतो दिस्वा, वीरियारम्भञ्च खेमतो।", | |
| "आरद्धवीरिया होथ, एसा बुद्धानुसासनी॥", | |
| "विवादं भयतो दिस्वा, अविवादञ्च खेमतो।", | |
| "समग्गा सखिला होथ, एसा बुद्धानुसासनी॥", | |
| "पमादं भयतो दिस्वा, अप्पमादञ्च खेमतो।", | |
| "भावेथट्ठङ्गिकं मग्गं, एसा बुद्धानुसासनी॥" | |
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